Soybean - NRC 37 (Ahilya 4)
Soybean - NRC 37 (Ahilya 4)

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बीज दर :- सोयाबीन की फसल

छोटे दाने वाली किस्में – 70 किलो ग्राम प्रति हेक्टर

मध्यम दाने वाली किस्में – 80 किलो ग्राम प्रति हेक्टर

बडे़ दाने वाली किस्में – 100 किलो ग्राम प्रति हेक्टर

बीज बोने का समय, विधि, बीजोपचार :- जून के अन्तिम सप्ताह में जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय सबसे उपयुक्त है बोने के समय अच्छे अंकुरण हेतु भूमि में 10 सेमी गहराई तक उपयुक्त नमी होना चाहिए। जुलाई के प्रथम सप्ताह के पश्चात बोनी की बीज दर 5- 10 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए। सोयाबीन की बोनी कतारों में करना चाहिए। कतारों की दूरी 30 सेमी. ‘’ बोनी किस्मों के लिए ‘’ तथा 45 सेमी. बड़ी किस्मों के लिए उपयुक्त है। बीज 2.5 से 3 सेमी. गहराई तक बोयें।

फसल का उत्पादन 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है, एक अच्छी पैदावार के लिए ये बहुत अच्छा साबित होता है। 96 से 102 दिनों में आपकी फसल तैयार हो जाती है।

खरपतवार प्रबंधन :- फसल के प्रारम्भिक 30 से 40 दिनों तक खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्यक होता है। बतर आने पर डोरा या कुल्फा चलाकर खरपतवार नियंत्रण करें व दूसरी निंदाई अंकुरण होने के 30 और 45 दिन बाद करें। 15 से 20 दिन की खड़ी फसल में घांस कुल के खरपतवारो को नष्ट करने के लिए क्यूजेलेफोप इथाइल एक लीटर प्रति हेक्टर अथवा घांस कुल और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए इमेजेथाफायर 750 मिली. ली. लीटर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव की अनुशंसा है। 

सिंचाई :- खरीफ मौसम की फसल होने के कारण सामान्यत: सोयाबीन को सिंचाई की आवश्यकता नही होती है। फलियों में दाना भरते समय अर्थात सितंबर माह में यदि खेत में नमी पर्याप्त न हो तो आवश्यकतानुसार दो या तीन हल्की सिंचाई करना सोयाबीन के विपुल उत्पादन लेने हेतु लाभदायक है। हमारे एक्सपर्ट के अनुसार ये खेती (राज्य): मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र (विदर्भ और मराठवाड़ा), यूपी का बुंदेलखंड क्षेत्र में की जा सकती है।

विशेषता: 

कॉलर रोट, बैक्टीरियल पुस्ट्यूल, पॉड ब्लाइट और कली ब्लाइट जैसे सिंड्रोम के लिए मामूली प्रतिरोधी। स्टेम फ्लाई और लीफ माइनर के प्रति मध्यम प्रतिरोधी। 

पौध संरक्षण -

कीट :- सोयाबीन की फसल पर बीज एवं छोटे पौधे को नुकसान पहुंचाने वाला नीलाभृंग (ब्लूबीटल) पत्ते खाने वाली इल्लियां, तने को नुकसान पहुंचाने वाली तने की मक्खी एवं चक्रभृंग (गर्डल बीटल) आदि का प्रकोप होता है एवं कीटों के आक्रमण से 5 से 50 प्रतिशत तक पैदावार में कमी आ जाती है। इन कीटों के नियंत्रण के उपाय निम्नलिखित है:

कृषिगत नियंत्रण :- खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें। मानसून की वर्षा के पूर्व बोनी नहीं करे। मानसून आगमन के पश्चात बोनी शीघ्रता से पूरी करें। खेत नींदा रहित रखें। सोयाबीन के साथ ज्वार अथवा मक्का की अंतरवर्तीय खेती करें। खेतों को फसल अवशेषों से मुक्त रखें तथा मेढ़ों की सफाई रखें।

टीकाकरण - ब्रेडीराइजोबियम जापोनिकम कल्चर + पसब /पस्म 5 कि /ग्रा बीज

जैविक नियंत्रण :- कीटों के आरम्भिक अवस्था में जैविक कट नियंत्रण हेतु बी.टी एवं ब्यूवेरीया बैसियाना आधरित जैविक कीटनाशक 1 किलोग्राम या 1 लीटर प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 35-40 दिन तथा 50-55 दिन बाद छिड़काव करें। एन.पी.वी. का 250 एल.ई समतुल्य का 500 लीटर पानी में घोलकर बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। रासायनिक कीटनाशकों की जगह जैविक कीटनाशकों को अदला बदली कर डालना लाभदायक होता है।

1.2. निंदाई के समय प्रभावित टहनियां तोड़कर नष्ट कर दें

1.3. कटाई के पश्चात बंडलों को सीधे गहराई स्थल पर ले जावें

1.4. तने की मक्खी के प्रकोप के समय छिड़काव शीघ्र करें


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