1.44 करोड़ का पैकेज छोड़ शुरू की खेती, कभी थे MNC के इंडिया Head
1.44 करोड़ का पैकेज छोड़ शुरू की खेती, कभी थे MNC के इंडिया Head
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फरीदाबाद। सिंबायोसिस, पुणे से मार्केटिंग में एमबीए। ब्रिटिश मल्टीनेशनल कंपनी में इंडिया हेड। सेलरी 1.44 करोड़ रुपए सालाना। चकाचौंध दुनिया के इस किरदार ने अब अपनी भूमिका बदल ली है। दरअसल, 11 साल से मार्केटिंग फील्ड में सक्रिय 36 वर्षीय प्रणव शुक्ला ने जॉब रिजाइन कर कुछ अलग और मन की करने का ठान लिया है। अब वे हर सुबह फरीदाबाद सेक्टर-21 से लग्जरी आफिस की ओर नहीं, बल्कि पाली गांव में लीज पर लिए चार एकड़ जमीन पर खेती करने के लिए निकलते हैं। पहली बार उन्होंने गेहूं की आर्गेनिक खेती शुरू की है। अब इनका मिशन मार्केट आैर टारगेट नहीं, बल्कि बेसहारा बुजुर्ग, देसी गाय की सेवा अौर आधुनिक खेती है।

 

क्यों कर रहे हैं ऐसा?
प्रणव ने बताया कि शुरुआती दिनों में एमएनसी में काम करने का अलग ही क्रेज था पर समय के साथ यह घटता गया। तभी बुजुर्गों और गाय की सेवा का भाव पैदा हुआ। इसीलिए पिता डॉ. एसपी शुक्ला द्वारा स्थापित अनादि सेवा प्रकल्प संस्था ओर रुझान बढ़ता गया। प्रणव अब संस्था के अध्यक्ष हैं। वृद्धाश्रम और गोसेवा सदन का भी संचालन कर रहे हैं। जिनका कोई नहीं है, उन्हें यहां रखा जाता है। सब कुछ फ्री है। अभी 28 वृद्ध आश्रम में रहते हैं। गोधाम में करीब 70 गाएं हैं। प्रणव कहते हैं कि आश्रम चलाने के लिए गोधाम का संचालन जरूरी था, ताकि इससे होने वाले आय से वृद्धाश्रम को ठीक से चलाया जा सके। पर शहर में पशुओं के चारे के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही थी। रासायनिक खादों के उत्पादित जो चारा मिल भी रहा था, वह पशुओं की सेहत के लिए ठीक नहीं था। ऐसे में ऑर्गेनिक खेती जरूरी हो गई थी।

 


शुद्ध आहार के प्रति करेंगे जागरूक
मूल रूप से यूपी के प्रतापगढ़ के किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले शुक्ला का कहना है कि ऑर्गेनिक खेती और शुद्ध आहार के प्रति लोगों को जागरूक करेंगे, ताकि उन्नत अनाज की डिमांड बढ़े और किसानों की स्थिति में सुधार हो। प्रणव कहते हैं कि खेती फायदे का सौदा क्यों नहीं है। आखिर देश में किसान जान क्यों दे रहे हैं। वह भी तब जब अन्न के बिना दूसरे दिन का गुजारा संभव नहीं है। ऐसे में किसानी घाटे का सौदा कैसे हो सकती है। इन बातों पर गौर कर इसी जून में ही जॉब छोड़ने का मन बनाया। कृषि वैज्ञानिकों अग्रणी किसानों से सलाह-मशविरा के बाद अक्टूबर में नाैकरी छोड़ भी दी, ताकि किसानों के लिए भी नजीर पेश कर सकूं।