'चन्द्रसूर' औषधि फसल क्या है? कैसे दुधारू पशुओं के लिए लाभदायक
'चन्द्रसूर' औषधि फसल क्या है? कैसे दुधारू पशुओं के लिए लाभदायक
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रायपुर। किसानों को खासकर दुधारू पशु पालकों को चारे की कमी न हो इसके लिए चन्द्रसूर की फसल की पैदावार प्रदेश के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (आईजीकेवी) में शुरू किया गया है। किसान भाई इस फसल से कई तरह के लाभ उठा सकेंगे। औषधीय गुणों से भरपूर चन्द्रसूर की फसल ट्रायल के रूप में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में लगाई गई है।

 

आपको ज्ञात हो कि चिया और किनवा की तरह चन्द्रसूर भी रबी में पैदा होती है। यह विभिन्न रोगों के उपचार में भी काम आती है। विवि. जनसंपर्क अधिकारी संजय नैयर की माने तो कृषि विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन के पास औषधि खेती के रूप में इसे लगाया गया है। प्रति दिन 100 ग्राम चन्द्रसूर के बीज का पाऊडर भैंस को देने से दूध की पैदावार में वृद्धि होगी। इससे किसानों के आय में बढोतरी होगी।

 

अत्यंत लाभकारी चन्द्रसूर औषधीय पौधे

पशुचिकित्सकों की माने तो यह फसल मूलतः अफ्रीका महाद्वीप के इथोपिया में पायी जाती है। इसकी खेती यूरोप और अमेरिका सहित कई राष्ट्रों में हो रही है। देशभर के दूसरे राज्यों में इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। चन्द्रसूर के शोध में दूधारू पशुओं के आहार में शामिल करने से दूध में कार्बोहाईड्रेट, वसा, प्रोटीन एवं लैकटॉस में वृद्धि होती है। जिससे दूध की गुणवत्ता अच्छी हो जाती है। चन्द्रसूर एक अत्यंत लाभकारी औषधीय पौधा है। वैज्ञानिक तौर पर इसका कई लाभ देखे गए हैं। यह किसान के लिए उसके पशुओं के दूध की गुणवत्ता की वृद्धि के अलावा मनुष्य की कई समस्याओं जैसे खूनी बवासीर, कैंसर, अस्थमा व हड्डी को जोड़ने में बहुत ही लाभदायक है।

 

90 से 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार

चन्द्रसूर की फसल असिंचित भूमि में ली जा सकती है किन्तु यदि 2-3 सिंचाई उपलब्धता के आधार पर क्रमशः एक माह, दो माह, एवं ढाई माह पर सिंचाई करें तो यह लाभकारी होता है। नैयर ने बताया कि चन्द्रसूर की फसल 90 से 120 दिन के अंदर पक कर कटाई के लिये तैयार हो जाती है। पत्तियां जब हरे से पीली पड़ने लगे। फल में बीज लाल रंग का हो जाए तो यह समय कटाई के लिये उपयुक्त रहता है। हंसिए या हाथ से इसे उखाड़कर खलिहान में 2-3 दिन सूखने के लिए डाल दें फिर डंडे से पीटकर या ट्रैक्टर से मिंजाई कर बीज को साफ कर लें। उपज-असिंचित भूमि में 10-12 क्विंटल तथा सिंचित भूमि में 14-16 क्विंटल प्रति हेक्टर प्राप्त होती है।

 

यह है चन्द्रसूर

चन्द्रसूर का वनस्पतिक नाम लेपीडियम सटाइवम है। यह कुसीफेरी कुल का सदस्य है। इसका पौधा 30-60 सेमी ऊंचा होता है, जिसकी उम्र 3-4 माह होती है। इसके बीज लाल भूरे रंग के होते हैं, जो 2-3 मिमी लंबे बारीक और बेलनाकार होते हैं। पानी लगने पर बीज लसलसे हो जाते हैं। इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है। इसका पौधा अलसी से मिलता जुलता है। बुवाई अक्टूबर माह में की जाती है। बीजो में 22.5 प्रतिशत प्रोटीन, 27.5 प्रतिशत वसा और 30 प्रतिशत फाइबर होता है। इसके अलावा ऑयरन, कैल्शियम, फोलिक एसिड, विटामिन ए और सी का अच्छा स्त्रोत है।

 

मवेशियों से नुकसान नहीं

चन्द्रसूर को मवेशी नुकसान नहीं पहुंचाते, क्योंकि, इसकी गंध तीक्ष्ण होती है। इसके कारण पशु इस फसल के पास फटकते भी नहीं है। किनवा की तरह इस फसल को भी 1-2 सिंचाई की जरूरत होती है। वहीं, खाद-उर्वरक की मांग भी सीमित है। कीट-बीमारी भी फसल में कम लगती है।