Urad (उड़द)
Basic Info
उरद या उड़द एक मुख्य दलहनी फसल है। उड़द की खेती प्राचीन समय से होती आ रही है। उड़द की फसल कम समयावधि मे पककर तैयार हो जाती है। इसकी फसल खरीफ, रबी एवं ग्रीष्म मौसमो के लिये उपयुक्त फसल है। हमारे देश मे उड़द का उपयोग प्रमुख रूप से दाल के रूप मे किया जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश के सिंचित क्षेत्र में अल्पावधि (60-65 दिन) वाली दलहनी फसल उरद की खेती करके किसानों की वार्षिक आय में आशातीत वृद्धि संभव है। साथ ही मृदा संरक्षण/उर्वरता को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।
Seed Specification
उन्नतशील प्रजातियाँ :-
मुख्य रूप से दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती है, पहला खरीफ में उत्पादन हेतु जैसे कि – शेखर-3, आजाद उर्द-3, पन्त उर्द-31, डव्लू.वी.-108, पन्त यू.-30, आई.पी.यू.-94 एवं पी.डी.यू.-1 मुख्य रूप से है, जायद में उत्पादन हेतु पन्त यू.-19,पन्त यू.-35, टाईप-9, नरेन्द्र उर्द-1, आजाद उर्द-1, उत्तरा, आजाद उर्द-2 एवं शेखर-2 प्रजातियाँ है। कुछ ऐसे भी प्रजातियाँ है, जो खरीफ एवं जायद दोनों में उत्पादन देती है, जैसे कि टाईप-9, नरेन्द्र उर्द-1, आजाद उर्द-2, शेखर उर्द-2ये प्रजातियाँ दोनों ही फसलो में उगाई जा सकती है।
बीज दर :-
प्रति एकड़ औसतन 8-10 किग्रा।
बुवाई समय :-
खरीफ मौसम में उड़द की बुवाई का उचित समय जून का दूसरा पखवाड़ा (15 जून 30 जून) है। देर से बुवाई करने से बचना चाहिए।
बीज उपचार :-
उड़द की बुबाई के पूर्व बीज को 3 ग्राम थायरम या 2.5 ग्राम डायथेन एम-45 प्रति किलो बीज के मान से उपचारित करे। जैविक बीजोपचार के लिये ट्राइकोडर्मा फफूँद नाशक 5 से 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपयोग किया जाता है।
Land Preparation & Soil Health
भूमि :-
उड़द की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में होती है। हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि जिसमें पानी का निकास अच्छा हो उड़द के लिए अधिक उपयुक्त होती है। पी.एच.मान 7-8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिए उपजाऊ होती है। अम्लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्त नहीं है।
खेत की तैयारी :-
उड़द की खेती के लिए बुवाई से पूर्व 2-3 बार खेत की अच्छी तरह से देशी हल या कल्टीवेटर से अच्छी तरह से जुताई करे, ताकि मिट्टी भुरभुरि हो जाये फिर इसके बाद पाटा चलाकर बुवाई के लिए खेत तैयार करें।
जलवायु :-
उड़द की खेती के लिए नम और गर्म मौसम आवश्यक है। वृद्धि के समय 25-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है। 700-900 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में उड़द को आसानी से उगाया जाता है। अधिक जल भराव वाले स्थानों पर इसकी खेती उचित नहीं है। फूल अवस्था पर अधिक वर्षा हानिकारक होती है। पकने की अवस्था पर वर्षा होने पर दाना खराब हो जाता है।
Crop Spray & fertilizer Specification
रासायनिक उर्वरक एवं खाद :-
उड़द की फसल में खेत तैयार करते समय 15-20 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति एकड़ में अच्छी तरह से मिट्टी में मिला देना चाहिए। रासायनिक उर्वरकों को बुवाई से पहले मूल रूप से लगाएं। बारिश की स्थिति: 12.5 किग्रा नाइट्रोजन + 25 किग्रा फॉस्फोरस + 12.5 किग्रा पोटेशियम ऑक्साइड +10 किग्रा सल्फर / एकड़। अन्य पोषक तत्व मिट्टी परिक्षण के आधार पर प्रयोग में लाना चाहिए।
हानिकारक कीट एवं रोग और उनके रोकथाम :-
फली छेदक कीट : इस कीट की सूडियां फलियों में छेदकर दानों को खाती है। जिससे उपज को भारी नुकसान होता है।
रोकथाम : मोनोक्रोटोफास का एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें।
सफेद मक्खी : यह उड़द फसल का प्रमुख कीट है। जो पीला मोजैक वायरस के वाहक के रूप में कार्य करती है।
रोकथाम : ट्रायसजोफॉस 40 ई.सी. का एक लीटर का 500 लीटर पानी में छिडक़ाव करें। एसिटामाप्रिड या इमिडाक्लोप्रिड की 100 मिलीलीटर या 51 इमेथोएट की 25 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडक़ाव करें।
अर्ध कुंडलक (सेमी लुपर) - यह मुख्यत: कोमल पत्तियों को खाकर पत्तियों को छलनी कर देता है।
रोकथाम - क्यूनालफास या प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. 1 लीटर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें।
एफिड - यह मुलांकूर का रस चूसता है। जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है।
रोकथाम - प्रोफेनो+साईपर 1 लीटर या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. 1लीटर 600 लीटर पानी के घोल में मिलाकर छिडक़ाव करना चाहिए।
पीला मोजेक विषाणु रोग - यह उड़द का सामान्य रोग है और वायरस द्वारा फैलता है। इसका प्रभाव 4-5 सप्ताह बाद ही दिखाई देने लगता है। इस रोग में सबसे पहले पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे गोलाकार रूप में दिखाई देने लगते हैं। कुछ ही दिनों में पूरी पत्तियां पीली हो जाती है। अंत में ये पत्तियां सफेद सी होकर सूख जाती है।
रोकथाम - सफेद मक्खी की रोकथाम से रोग पर नियंत्रण संभव है। उड़द का पीला मोजैक रोग प्रतिरोधी किस्म पंत यू-19, पंत यू-30, यू.जी.218, टी.पी.यू.-4, पंत उड़द-30, बरखा, के.यू.-96-3 की बुवाई करनी चाहिए।
पत्ती मोडऩ रोग - नई पत्तियों पर हरिमाहीनता के रूप में पत्ती की मध्य शिराओं पर दिखाई देते हैं। इस रोग में पत्तियां मध्य शिराओं के ऊपर की ओर मुड़ जाती है तथा नीचे की पत्तियां अंदर की ओर मुड़ जाती है तथा पत्तियों की वृद्धि रूक जाती है और पौधे मर जाते हैं।
रोकथाम - यह विषाणु जनित रोग है। जिसका संचरण थ्रीप्स द्वारा होता हैं। थ्रीप्स के लिए ऐसीफेट 75 प्रतिशत एस.पी. या 2 मिली डाईमैथोएट प्रति लीटर के हिसाब से छिडक़ाव करना चाहिए और फसल की बुवाई समय पर करनी चाहिए।
पत्ती धब्बा रोग - यह रोग फफूंद द्वारा फैलता है। इसके लक्षण पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं।
रोकथाम - कार्बेन्डाजिम+मैंकोजेब 1 किग्रा 1000 लीटर पानी के घोल में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण :-
खरपतवार फसलो की अनुमान से कही अधिक क्षति पहुँचाते है। अतः अधिक उत्पादन के लिये समय पर निदाई-गुड़ाई कुल्पा व डोरा आदि चलाते हुये अन्य आधुनिक नींदानाशक का समुचित उपयोग करना चाहिये। फसल की बुवाई के बाद परंतु बीजों के अंकुरण से पूर्व पेन्डिमिथालीन 1.25 किग्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करके खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है।
सिंचाई :-
आमतौर पर खरीफ की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| यदि वर्षा का अभाव हो तो एक सिंचाई फलियाँ बनते समय अवश्य कर देनी चाहिए| उड़द की फसल को जायद में 3 से 4 सिंचाई की आवश्यकता होती है| प्रथम सिंचाई पलेवा के रूप में और अन्य सिंचाई 15 से 20 दिन के अन्तराल में फसल की आवश्यकतानुसार करना चाहिए| फूल के समय तथा दाने बनते समय खेत में उचित नमी होना अति आवश्यक है|
Harvesting & Storage
कटाई समय :-
जब फली और पौधे सूख जाते हैं, तो दाने सख्त हो जाते हैं, और कटाई के समय अनाज में नमी प्रतिशत 22.5% होनी चाहिए। फली बिखरना (परिपक्व होते ही फसल के बीजों को फैलाना) दाल में आम समस्या है। इसलिए, फली परिपक्व होते ही उठा देना चाहिए। कटाई की गयी फसल को 2-3 दिन बाद उठानी चाहिए।
भण्डारण :-
कटाई के बाद पौधे को फर्श पर सूखने के लिए फैला दिया जाता है। कटे हुए तनों को धूप में सूखने के लिए रख दें। सही प्रकार की किस्म प्राप्त करने के लिए कटी हुई फसल को एक किस्म से दूसरी किस्म से अलग रखें। उड़द के दानों में नमी दूर करने के लिए धूप में अच्छी तरह से सुखाना जरूरी है। इसके बाद फसल को भंडारित किया जा सकता है। फसल को नमी रहित स्थान पर भंडारित करना चाहिए।
उत्पादन :-
शुद्ध फसल में 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और मिश्रित फसल में 6-8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज हो जाती है।
Urad (उड़द) Crop Types
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Frequently Asked Questions
Q1: किस मौसम में उड़द की दाल उगाई जाती है?
Ans:
1. यह आमतौर पर खरीफ / बरसात और गर्मियों के मौसम में उगाया जाता है।2. यह 25 से 35oC के बीच आदर्श तापमान रेंज के साथ गर्म और नम स्थितियों में सबसे अच्छा बढ़ता है।
Q3: क्या काले चने रबी की फसल है?
Ans:
खरीफ के दौरान पूरे देश में इसकी खेती की जाती है। यह भारत के दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी हिस्सों में रबी के दौरान चावल की फलियों के लिए सबसे उपयुक्त है। ग्रीनग्राम की तुलना में ब्लैकग्राम को अपेक्षाकृत भारी मिट्टी की आवश्यकता होती है।Q5: क्या उड़द की दाल सेहत के लिए अच्छी होती है?
Ans:
अधिकांश फलियों की तुलना में काले चने या उड़द की दाल में उच्च प्रोटीन मूल्य होता है। यह आहार फाइबर, आइसोफ्लेवोन्स, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, लोहा, तांबा, कैल्शियम, मैग्नीशियम, जस्ता, पोटेशियम, फास्फोरस का भी एक उत्कृष्ट स्रोत है जो स्वास्थ्य लाभ के असंख्य प्रदान करता है।
Q7: भारत में उड़द की दाल के उत्पादक राज्य कौन कौन से हैं?
Ans:
भारत में प्रमुख उड़द की दाल के उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश हैं।
Q2: काला चना भारत में कहां उगा है?
Ans:
आंध्रप्रदेश देश के उत्पादन में लगभग 19 प्रतिशत का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, इसके बाद महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश क्रमशः 20 प्रतिशत और 13 प्रतिशत हैं। भारत में काले चने का प्रमुख व्यापार केंद्र मुंबई, जलगाँव, दिल्ली, गुंटूर, चेन्नई, अकोला, गुलबर्गा और लातूर हैं।Q4: उड़द किस प्रकार की फसल है?
Ans:
काला चना, जिसे उड़द बीन, मैश और ब्लैक मैश के रूप में भी जाना जाता है, एक छोटी अवधि की दलहनी फसल है जो भारत के कई हिस्सों में उगाई जाती है। भारत काले चने का सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ-साथ उपभोक्ता भी है। भारत के कुल दाल उत्पादन में काले चने की हिस्सेदारी करीब 10 फीसदी है।
Q6: उड़द की दाल किस मिट्टी में उगाई जाती है?
Ans:
इसे क्षारीय और लवणीय मिट्टी को छोड़कर, रेतीली दोमट से लेकर भारी मिट्टी तक सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है।