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Sunflower (सूरजमुखी)

Basic Info

सूरजमुखी, "हेलियनथस" नाम 'हेलियस' अर्थ 'सूर्य' और 'एन्थस' अर्थ 'फूल' से लिया गया है। इसे सूरजमुखी कहा जाता है क्योंकि यह सूर्य का अनुसरण करता है, हमेशा अपनी सीधी किरणों की ओर। यह देश की महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है। सूरजमुखी का तेल अपने हल्के रंग, ब्लैंड फ्लेवर, हाई स्मोक पॉइंट और उच्च स्तर के लिनोलेइक एसिड के कारण सबसे लोकप्रिय है जो हृदय रोगी के लिए अच्छा है। सूरजमुखी के बीज में लगभग 48- 53 प्रतिशत खाद्य तेल होता है। यह भारत में 1969-70 में हुई खाद्य तेल की कमी के बाद उगाई जाने लगी है। सूरजमुखी का तिलहनी फसलों में खास स्थान है। हमारे देश में मूंगफली, सरसों, तोरिया व सोयाबीन के बाद यह भी एक खास तिलहनी फसल है।

Seed Specification

सूरजमुखी की कई किस्में पाई जाती हैं।
सूरजमुखी को मुख्यत: दो प्रजातियों में बाँटा गया है।
1. संकुल प्रजाति-  सूर्या, ज्वालामुखी, मार्डन, एम.एस.एफ.एच 4 ।  
2. संकर प्रजाति - के.वी. एस.एच 1, एस.एच.-3322, ऍफ़ एस एच-17, कावेरी 618 ।

बुवाई का समय
खरीफ के मौसम में इस फसल की बुवाई 15-25 जुलाई तक, रबी के मौसम में 20 अक्टूबर से 10 नवम्बर तक तथा जायद की फसल की बुवाई 20 फरवरी से 10 मार्च तक की जाती है।

बीज की मात्रा
सूरजमुखी की बुवाई के लिए 2-3 किलोग्राम / एकड़ की बीज दर का प्रयोग करें। हाइब्रिड उपयोग के लिए बीज दर 2-2.5 किग्रा / एकड़।

बीजोपचार
शीघ्र अंकुरण के लिए बुवाई से पहले, 24 घंटे के लिए पानी में बीज भिगोएँ और छाया में सुखाएँ। फिर बीज को थायरम  2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें। यह मृदा जनित कीट और बीमारी से बीजों की रक्षा करेगा। फसल को दलदली फफूंदी से बचाने के लिए बीजों को धातुक्षय  6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करें। बीज को इमिडाक्लोप्रिड  5-6 मिली प्रति किलो बीज से उपचारित करें।

फासला
दो पंक्तियों में 60 सै.मी. और दो पौधों के बीच में 30 सै.मी. की दूरी रखें।

बीज की गहराई
बीजों को 4-5 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई गड्ढा खोदकर की जाती है। इसके इलावा बीजों को बिजाई वाली मशीन से बैड बनाकर या मेड़ बनाकर की जाती है।

Land Preparation & Soil Health

भूमि का चयन 
- सूरजमुखी की फसल विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाई जाती है।
- बलुई भूमि इस फसल के लिये अधिक अनुकूल होती है।
- भूमि का pH मान 6-5 से 8 के बीच में होना चाहिये ।
- अम्लीय भूमियाँ सूरजमुखी की खेती के लिये उपयुक्त नहीं होती है । हल्की क्षारीयता को यह फसल सहन कर लेती है ।

खेत की तैयारी
- खेत की तैयारी के लिये मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई की जाती है ।
- खेत में उपस्थित घास - फूस व डण्ठलों आदि को इकट्ठा करके जला देना चाहिये ।
- खेत की मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिये 2-3 बार हैरो चलानी चाहिये ।
- प्रत्येक जुताई या हैरो के पश्चात् भूमि में नमी संरक्षण हेतु पाटा लगाना आवश्यक होता है।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं उर्वरक की मात्रा
सूरजमुखी की फसल के लिये बुवाई के एक माह पूर्व 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर में डालनी चाहिये । उन्नतिशील जातियों की खेती के लिये 80 किग्रा. नाइट्रोजन, 60 किग्रा. फास्फोरस व 40 किग्रा.पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये ।
संकर जातियों के लिये 150 किग्रा० नाइट्रोजन, 80 किग्रा० फास्फोरस व 70 किग्रा० पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये । कुल मात्रा का दो तिहाई, नाइट्रोजन व सम्पूर्ण फास्फोरस तथा पोटाश बुवाई के समय प्रयोग करने चाहिये ।
नाइट्रोजन की शेष मात्रा 45 दिन के पश्चात् प्रयोग करनी चाहिये। फसल की वृद्धि के लिए 19:19:19 की 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे 5-6 पत्ते आने पर और 8 दिनों के फासले पर दो बार करें। फूल खिलने के समय 2 ग्राम प्रति ली. बोरोन की स्प्रे करें। ध्यान रहे रासायनिक उर्वरको का प्रयोग मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही करे।

हानिकारक कीट और रोकथाम
तंबाकू सूण्डी :  यह सूरजमुखी का प्रमुख कीड़ा है और अप्रैल मई महीने में हमला करता है ये पत्तों को अपना भोजन बनाते हैं। सूण्डियों को पत्तों सहित नष्ट कर दें। यदि इसका हमला दिखे तो फ़िप्रोनिल एस सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। हमला बढ़ने की हालत में दो स्प्रे 10 दिनों के फासले पर करें या स्पिनोसैड 5 मि.ली. प्रति 10 ली. पानी या नुवान + इंडोएक्साकार्ब 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
अमेरिकन सूण्डी : यह कीड़ा पौधों और दानों को खाता है। इससे फफूंद लगती है और फूल गल जाते हैं। इसकी सूण्डी हरे से भूरे रंग की होती है। इसको रोकने के लिए 4 फेरोमोन कार्ड प्रति एकड़ लगाएं। यदि खतरा बढ़ जाये तो कार्बरिल 1 किलो या एसीफेट 800 ग्राम या कलोरपाइरीफॉस 1 ली.को 100 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ स्प्रे करें।
बालों वाली सूण्डी : सूण्डी पत्तों को नीचे की ओर से खाती है जिससे पौधे सूख जाते हैं। इसकी सूण्डी पीले रंग की और बाल काले होते हैं। सूण्डियों को इकट्ठा करके नष्ट करा दें। यदि हमला दिखे तो फिप्रोनिल एस सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। हमला ज्यादा होने पर 10 दिनों के अंतराल पर 2 स्प्रे करें या स्पिनोसैड 5 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
तेला : इसका हमला आंखे बनने के समय होता है। इससे पत्ते मुड़ जाते हैं और जले हुए नज़र आते हैं। यदि 10-20 प्रतिशत बूटों के ऊपर रस चूसने वाले कीड़ों का हमला दिखे तो नीम सीड करनाल एक्सटरैक 50 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।


बीमारियां और रोकथाम
कुंगी : यह बीमारी पैदावार का 20 प्रतिशत तक नुकसान करती है। यदि कुंगी का हमला दिखे तो इसकी रोकथाम के लिए ट्राइडमॉर्फ 1 ग्राम या मैनकोजेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी बार स्प्रे करें या हैक्साकोनाज़ोल 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर दो बार स्प्रे करें।
जड़ों का गलना : इस रोग वाले पौधे कमज़ोर हो जाते हैं और जल्दी पक जाते हैं। तने के ऊपर राख के रंग के धब्बे पड़ जाते हैं परागण के बाद पौधा अचानक सूख जाता है। इसको रोकने के लिए बिजाई के 30 दिन बाद टराईकोडरमा विराईड 1 किलो को 20 किलो रूड़ी की खाद या रेत में मिलाकर डालें। इसके इलावा कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
तने का गलना : फसल बीजने के 40 दिनों के बाद यह बीमारी नुकसान करती है। प्रभावित पौधे का तना और ज़मीन के नजदीक हिस्से में फफूंद बननी शुरू हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले 2 ग्राम थीरम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
ऑल्टरनेरिया झुलस रोग : इस रोग से बीज और तेल की पैदावार कम हो जाती है। पहले नीचे के पत्तों के ऊपर गहरे भूरे और काले धब्बे पड़ जाते हैं जो कि बाद में ऊपर वाले पत्तों पर पहुंच जाते हैं। नुकसान बढ़ने पर यह धब्बे तने के ऊपर भी पहुंच जाते हैं। यदि इसका नुकसान दिखे तो मैनकोजेब 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर चार बार स्प्रे करें। 
फूलों का गलना : शुरू में फूलों के ऊपर भूरे रंग के धब्बे नज़र आते हैं। बाद में यह धब्बे बड़े हो जाते हैं और फफूंद लग जाती है जो कि अंत में काले हो जाते हैं। फूल निकलने या बनने के समय यदि इसका नुकसान दिखे तो मैनकोजेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
- सूरजमुखी की रबी मौसम में उगाई जाने फसल में मोथा, बथुआ, कृष्णनील व हिरनखुरी आदि खरपतवार पाये जाते हैं।
- सूरजमुखी में खरपतवार नियंत्रण के लिए उसकी 2 से 3 गुड़ाई जरूरी है। पहली गुड़ाई बीज लगाने के 20 दिन बाद कर देनी चाहिए। जिसके बाद 15 से 20 दिन बाद फिर से गुड़ाई कर देनी चाहिए। और साथ में पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। 
- रसायानिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डिमेथालिन 30 ई.सी. की उचित मात्रा का छिडकाव बुवाई से पहले या बुवाई के दो दिन बाद खेत में करना चाहिए।

सिंचाई
- खरीफ के मौसम में उगाई गई सूरजमुखी की फसल के लिये सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
- यदि वर्षा का अभाव हो तो इस मौसम में फसल की एक सिंचाई की जा सकती है।
- रबी के मौसम में उगाई जाने वाली फसल के लिये सामान्यत: 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। ये सिंचाइयाँ बुवाई के 40, 60 व 90 दिनों के बाद करनी चाहिये।
- जायद के मौसम की फसल के लिये अधिक पानी की आवश्यकता होती है। कुल 6 से 7 सिचाइयाँ देनी पड़ती हैं। 
- प्रत्येक पखवाड़े में एक सिंचाई आवश्यक होती है।
- इस फसल की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये भूमि में फसल के पौधों पर फूल आते समय, कलियाँ बनते समय व दाना भरते समय पानी की कमी नहीं करनी चाहिये।

Harvesting & Storage

कटाई
सूरजमुखी के पत्तों के सूखने और फूलों के पीले रंग के होने पर कटाई करें। कटाई में देरी ना करें क्योंकि इससे पत्ते गिर जाते हैं और दीमक का खतरा बढ़ जाता है। फूल तोड़ने के बाद उन्हें 2-3 दिनों के लिए सुखाएं। सूखे हुए फूलों में से बीज आसानी से निकल जाते हैं। गहाई मशीन के साथ की जा सकती है।

भंडारण
गहाई के बाद बीज को भंडारण से पहले सुखाएं और उनमें पानी की मात्रा 9-10 प्रतिशत होनी चाहिए। सूरजमुखी की उपज पर इसकी प्रजाति, उगाये जाने वाले मौसम व सिंचाई आदि का विशेष प्रभाव पड़ता है । रबी के मौसम में उगाई गई सूरजमुखी की फसल की उपज 10-20 क्विटल/हैक्टेयर तक प्राप्त होती है।  

Crop Related Disease

Description:
यह कवक अल्टरनेरिया हेलियनथी (Alternaria helianthi) के कारण होता है। रोगज़नक़ बीज और पौधे के अवशेषों पर जीवित रहता है। यह बीमारी समय-समय पर बारिश के साथ गर्म, शुष्क मौसम की स्थिति में बड़े पैमाने पर फैलती है।
Organic Solution:
ट्राइकोडर्मा एसपीपी पर आधारित जैविक उत्पाद लागू करें। या फाइटोपथोगेंस (phytopathogens.) के जैविक नियंत्रण एजेंट लागू करें|
Chemical Solution:
रोपण के लिए, थायरम, फ्लैडियोक्सोनिल, आइप्रोडीन (संपर्क कवकनाशी), इमैजिल, टेबुकोनाजोल, और फ्लुट्रीफोल (प्रणालीगत कवकनाशी) वाले कवकनाशी से उपचारित बीजों का उपयोग करें।
Description:
रोगज़नक़ बीज-जनित है और प्रारंभिक चरणों में मुख्य रूप से अंकुरित ब्लाइट और कॉलर सड़ांध का कारण बनता है। उगने वाले पौधे फूलों के चरण के बाद भी लक्षण दिखाते हैं। कवक बड़ी संख्या में काले, अनियमित आकार के स्क्लेरोटिया (sclerotia)के लिए गोल पैदा करता है।
Organic Solution:
अंकुर के करीब रोपण से बचा जाना चाहिए। संयंत्र को बनाए रखने के लिए इष्टतम पोषण प्रदान किया जाना चाहिए। जब भी मिट्टी सूख जाए और मिट्टी का तापमान बढ़ जाए तब सिंचाई देनी चाहिए।
Chemical Solution:
ट्राइकोडर्मा के साथ बीजोपचार 4 ग्राम / किग्रा बीज में तैयार किया जाता है। स्थानिक क्षेत्रों में लंबे फसल चक्रण का पालन करना चाहिए। बीजों को कार्बेन्डाजिम या थिरम 2 / किलोग्राम के हिसाब से उपचारित करें 500 मिलीग्राम / लीटर पर कार्बेन्डाजिम के साथ स्पॉट खाई।
Description:
ब्राउन रस्ट फंगस प्यूकिनिया हेलियनथि श्व (Puccinia helianthi Schw) के कारण होता है। सूरजमुखी के जंग के साथ गंभीर संक्रमण बीज के आकार, सिर के आकार, तेल सामग्री और उपज में कमी का कारण बनता है। बढ़ते मौसम के दौरान कभी भी जंग लग सकती है जब तक कि पर्यावरण की स्थिति इसके लिए अनुकूल होती है।
Organic Solution:
सहिष्णु और प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग | फसल चक्रण का पालन किया जाना चाहिए। पिछली फसल अवशेष नष्ट हो जाना चाहिए। • फसल अवशेषों को निकालना।
Chemical Solution:
2 किलो / हेक्टेयर पर मैनकोजेब का छिड़काव करें।
Description:
ये मुख्य रूप से उच्च मैदानों में पाए जाते हैं। राइजोपस सबसे आम है। संक्रमित सिर भूरा और मटमैला हो जाता है। एक बार जब सिर सूख जाता है तो यह कठोर और भंगुर हो जाता है।
Organic Solution:
बीज को 2 ग्राम / किग्रा में थीरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें। • सिर पर खिलाने वाले कैटरपिलर को नियंत्रित करें।
Chemical Solution:
रुक-रुक कर बारिश के मौसम में 2 किलो / हेक्टेयर की दर से मैनकोजेब से सिर को स्प्रे करें और 10 दिनों के बाद दोहराएं, अगर आर्द्र मौसम बना रहता है।

Sunflower (सूरजमुखी) Crop Types

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Frequently Asked Questions

Q1: भारत में सूरजमुखी के प्रमुख उत्पादक राज्य कौन कौन से है ?

Ans:

कर्नाटक के साथ छह राज्य देश में सूरजमुखी के प्रमुख उत्पादक हैं। कर्नाटक 7.94 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से 3.04 लाख टन उत्पादन के साथ आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, उड़ीसा और तमिलनाडु भारत के प्रमुख सूरजमुखी उत्पादक राज्य हैं।

Q3: क्या भारत में सूरजमुखी की खेती लाभदायक है?

Ans:

एक एकड़ सूरजमुखी के खेत से लगभग किसान 8-9 क्विंटल उपज प्राप्त कर सकते हैं। सूरजमुखी का औसत बाजार मूल्य रु. 3000- 4000 प्रति क्विंटल। सूरजमुखी की फसल की अवधि लगभग 3-4 महीने की होती है जो कि किस्म के आधार पर भिन्न हो सकती है।

Q5: सूरजमुखी का तेल कब और कहां लोकप्रिय हुआ ?

Ans:

18 वीं शताब्दी के दौरान, यूरोप में सूरजमुखी तेल का प्रयोग बहुत लोकप्रिय हो गया।

Q2: भारत में सूरजमुखी की खेती किस मौसम में की जाती है?

Ans:

गर्मियों और बरसात के मौसम में फूल आने के लिए जनवरी से जून तक बीजों को सफलतापूर्वक बोया जा सकता है। तथा खरीफ के मौसम में इस फसल की बुवाई 15-25 जुलाई तक, रबी के मौसम में 20 अक्टूबर से 10 नवम्बर तक तथा जायद की फसल की बुवाई 20 फरवरी से 10 मार्च तक की जाती है।

Q4: विश्व में किन-किन देशों में सूरजमुखी को उगाया जाता है ?

Ans:

सूरजमुखी फूल अमरीका का देशज है पर रूस, अमरीका, ब्रिटेन, मिस्र, डेनमार्क, स्वीडन और भारत आदि अनेक देशों में आज उगाया जाता है।

Q6: सूरजमुखी की फसल समयावधि और पैदावार कितनी होती है ?

Ans:

सूरजमुखी की फसल 90-105 दिन में पककर तैयार हो जाती है व उन्नत विधि से उत्पादन करने पर 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।