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Mentha (Peppermint/मेंथा/पुदीना)

Basic Info

मेंथा की खेती के लिए विस्तृत जानकारी: मेंथा की खेती बदायूं, रामपुर, मुरादाबाद, बरेली, पीलीभीत, बाराबंकी, फैजाबाद, अम्बेडकर नगर, लखनऊ आदि जिलों में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर की जाती है। विगत कुछ वर्षों से मेंथा इन जिलों में जायद की प्रमुख फसल के रूप में अपना स्थान बना रही है। इसके तेल का उपयोग सुगन्ध के लिए व औषधि बनाने में किया जाता है। मैंथा (पुदीना) एक क्रियाशील जड़ी बूटी है। पुदीना को तेल, टूथ पेस्ट, माउथ वॉश और कई व्यंजनों में स्वाद के लिए प्रयोग में लाया जाता है। मेंथा विश्व में अंगोला, थाइलैंड, चीन, अर्जेंनटीना, ब्राज़ील, जापान, भारत और पारागुए में अधिकत्तर पाया जाता है। भारत में उत्तर प्रदेश और पंजाब भारत के पुदीना उत्पादक राज्य हैं।

Seed Specification

संस्तुत प्रजातियाँ:
1. मेन्था स्पाइकाटा एम०एस०एस०-1 (देशी पोदीना)
2. कोसा (समय व देर से रोपाई हेतु उत्तम) (जापानी पोदीना)
3. हिमालय गोमती (एम०ए०एच०-9)
4. एम०एस०एस०-1 एच०वाई-77
5. मेन्था पिप्रेटा-कुकरैल

मेन्था की जड़ों को पौधशाला में लगाने का समय
मेन्था की जड़ों की बुवाई अगस्त माह में नर्सरी में कर देते हैं। नर्सरी को ऊँचे स्थान में बनाते है ताकि इसे जलभराव से रोका जा सके। अधिक वर्षा हो जाने पर जल का निकास करना चाहिए।

बुवाई/रोपाई करने का समय
समय से मेन्था की जड़ों की बुवाई का उचित समय 15 जनवरी से 15 फरवरी है। देर से बुवाई करने पर तेल की मात्रा कम हो जाती है व कम उपज मिलती है। देर बुवाई हेतु पौधों को नर्सरी में तैयार करके मार्च से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक खेत में पौधों की रोपाई अवश्य कर देना चाहिए। विलम्ब से मेंथा की खेती के लिए कोसी प्रजाति का चुनाव करें।

भूस्थिर का शोधन
रोपाई के पूर्व भूस्तरियों को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी के घोल बनाकर 5 मिनट तक डुबो-कर शोधित करना चाहिए।

बुवाई करने की विधि
जापानी मेंथा की रोपाई के लिए लाइन की दूरी 30-40 सेमी० देशी पोदीना 45-60 सेमी० तथा जापानी पोदीना में पौधों से पौधों की दूरी 15 सेमी० रखना चाहिए। जड़ों की रोपाई 3 से 5 सेमी० की गहराई पर कूंड़ों में करना चाहिए। रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। बुवाई/रोपाई हेतु 4-5 कुन्तल जड़ों के 8-10 सेमी० के टुकड़े उपयुक्त होते हैं।

Land Preparation & Soil Health

अनुकूल जलवायु
मेंथा की बढ़वार के समय बर्षा का होना बहुत बेहतर माना जाता है, ध्यान रखें कि कटाई के समय वायु मंडल साफ हो और सूर्य का प्रकाश पूरी तरह से बना रहे।

भूमि
मेंथा की खेती क लिए पर्याप्त जीवांश अच्छी जल निकास वाली पी०एच० मान 6-7.5 वाली बलुई दोमट व मटियारी दोमट भूमि उपयुक्त रहती है।

खेत की तैयारी
खेत की अच्छी तरह से जुताई करके भूमि को समतल बना लेते हैं। मेंथा की रोपाई के तुरन्त बाद में खेत में हल्का पानी लगाते हैं जिसके कारण मेन्था की पौध ठीक लग जाये।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
सामान्यतः उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना लाभदायक होता है। सामान्य परिस्थितियों में मेंथा की अच्छी उपज के लिए 120-150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50-60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश तथा 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। फास्फोरस, पोटाश तथा सल्फर की पूरी मात्रा तथा 30-35 किलोग्राम नाइट्रोजन बुवाई/रोपाई से पूर्व कूंड़ों में प्रयोग करना चाहिए। शेष नाइट्रोजन को बुवाई/रोपाई के लगभग 45 दिन, पर 70-80 दिन पर तथा पहली कटाई के 20 दिन पश्चात् देना चाहिए।

फसल सुरक्षा के लिए कुछ सावधानियां
दीमक :- दीमक जड़ों को क्षति पहुँचाती है, फलस्वरूप जमाव पर बुरा असर पड़ता है। बाद में प्रकोप होने पर पौधें सूख जाते है। खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरपाइरीफास 2.5 लीटर प्रति हे० की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें।
बालदार सूंड़ी :- यह पत्तियों की निचली सतह पर रहती है और पत्तियों को खाती है। जिससे तेल की प्रतिशत मात्रा कम हो जाती है। इस कीट से फसल की सुरक्षा के लिए डाइकलोर वास 500 मिली० या फेनवेलरेट 750 मिली० प्रति हे० की दर से 600-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। झुंड में दिये गये अण्डों एवं प्रारम्भिक अवस्था में झुण्ड में खा रही सूंड़ियों को इक्कठा कर नष्ट कर देना चाहिए। पतंगों को प्रकाश से आकर्षित कर मार देना चाहिए।
पत्ती लपेटक कीट:- इसकी सूड़ियां पत्तियों को लपेटते हुए खाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ई०सी० 1.0 लीटर प्रति हे० की दर से 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
रोग जड़गलन :- इस रोग में जड़े काली पड़ जाती है। जड़ों पर गुलाबी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। बुवाई/रोपाई से पूर्व भूस्तारियों का शोधन 0.1% कार्बेन्डाजिम से इस रोग का निदान हो जाता है। इसके अतिरिक्त रोगमुक्त भूस्तारियों का प्रयोग करें।
पर्णदाग :- पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं। इससे पत्तियां पीली पड़कर गिरने लगती हैं। इस रोग के निदान के लिए मैंकोजेब 75 डब्लू पी नामक फफूंदीनाशक की 2 किग्रा० मात्रा 600-800 लीटर में मिलाकर प्रति हे० की दर से छिड़काव करें।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
मेंथा की फसल में खरपतवार की रोकथाम के लिए निराई-गुड़ाई करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथलीन 30 ई०सी० के 3.3 लीटर प्रति हे० को 700-800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई/रोपाई के पश्चात् ओट आने पर यथाशीघ्र छिड़काव करें।

सिंचाई
मेंथा में सिंचाई भूमि की किस्म तापमान तथा हवाओं की तीव्रता पर निर्भर करती है। मेंथा में पहली सिंचाई बुवाई/रोपाई के तुरन्त बाद कर देना चाहिए। इसके पश्चात् 20-25 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए व प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करना आवश्यक है।

Harvesting & Storage

कटाई
मेंथा फसल की कटाई प्रायः दो बार की जाती है। पहली कटाई के लगभग 100-120 दिन पर जब पौधों में कलियां आने लगे की जाती है। पौधों की कटाई जमीन की सतह से 4-5 सेमी० ऊंचाई पर करनी चाहिए। दूसरी कटाई, पहली कटाई के लगभग 70-80 दिन पर करें। कटाई के बाद पौधों को 2-3 घंटे तक खुली धूप में छोड़ दें तत्पश्चात् कटी फसल को छाया में हल्का सुखाकर जल्दी आसवन विधि द्वारा यंत्र से तेल निकाल लें।

उपज
दो कटाइयों में लगभग 250-300 क्विंटल शाक या 125-150 कि.ग्रा. तेल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।


Crop Related Disease

Description:
जब नारंगी बीजाणु पुस्टल परिपक्व होते हैं और जून या जुलाई में खुलते हैं, तो बीजाणु हवा से अन्य पौधों में फैल जाते हैं। कवक पत्तियों के माध्यम से पौधे में प्रवेश करता है
Organic Solution:
रोग की शुरुआत में नीम के तेल का 10,000 पीपीएम छिड़काव करें।
Chemical Solution:
ट्राइकोडर्मा के साथ बीजोपचार 4 ग्राम / किग्रा बीज में तैयार किया जाता है। स्थानिक क्षेत्रों में लंबे फसल चक्रण का पालन करना चाहिए। बीजों को कार्बेन्डाजिम या थिरम 2 / किलोग्राम के हिसाब से उपचारित करें 500 मिलीग्राम / लीटर पर कार्बेन्डाजिम के साथ स्पॉट खाई।
Description:
रोग मिट्टी और बीज दोनों जनित है। प्राथमिक प्रसार मिट्टी और बीज के माध्यम से होता है, द्वितीयक प्रसार हवा, बारिश के छींटे के माध्यम से कोनिडिया के फैलाव द्वारा होता है।
Organic Solution:
सल्फर, नीम के तेल, काओलिन या एस्कॉर्बिक एसिड पर आधारित पर्ण स्प्रे गंभीर संक्रमण को रोक सकते हैं।
Chemical Solution:
यदि उपलब्ध हो तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के साथ एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें। ख़स्ता फफूंदी के लिए अतिसंवेदनशील फसलों की संख्या को देखते हुए, किसी विशेष रासायनिक उपचार की सिफारिश करना कठिन है। गीला करने योग्य सल्फर(sulphur) (3 ग्राम/ली), हेक्साकोनाज़ोल(hexaconazole), माइक्लोबुटानिल (myclobutanil) (सभी 2 मिली/ली) पर आधारित कवकनाशी कुछ फसलों में कवक के विकास को नियंत्रित करते हैं।

Mentha (Peppermint/मेंथा/पुदीना) Crop Types

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