Satavari (सतावरी)
Basic Info
आप जानते है सतावर या शतावरी एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल है, सतावर एक ऐसा पौधा है जिसका उपयोग कई प्रकार की दवाइयों को बनाए के लिए किया जाता है सतावर औषधीय पौधों की अंतर्गत आता है जिससे इस पौधे की मांग तो बड़ी ही साथ ही इसकी कीमत में भी वृद्धि हुई है। यह एक झाड़ी वाला पौधा है जिसकी औसतन ऊंचाई 1-3 मीटर और इसकी जड़ेंगुच्छे में होती है। इसके फूल शाखाओं में होते हैं और 3 सैं.मी. लंबे होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के और अच्छी सुगंध वाले होते हैं और 3 मि.मी. लंबे होते हैं। इसका परागकोष जामुनी रंग का और फल जामुनी लाल रंग का होता है। भारत के आलावा सतावर की खेती नेपाल, चीन, बंगलादेश, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। भारत में यह अरूणाचल प्रदेश, आसाम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल और पंजाब राज्यों में पाया जाता है।
Seed Specification
बुवाई का समय
पौधों की रोपाई जून-जुलाई के महीने में की जाती है।
फासला
इसके विकास के अनुसार 4.5x1.2 मीटर फासले का प्रयोग करें और 20 सैं.मी. गहराई में गड्ढा खोदें।
बुवाई का तरीका
इसकी बुवाई बीज द्वारा नर्सरी तैयार की जाती हैं। जब पौधा 45 सैं.मी. का हो जाए, तब खेत में रोपाई की जाती है।
पौधरोपण का तरीका
जब नर्सरी में पौध 40-45 दिन की हो जाती है तथा वह 4-5 इंच की ऊँचाई प्राप्त कर लेती है तो इन क्यारियाँ पर 60-60 सें.मी. की दूरी पर चार-पांच इंच गहरे गड्डों में पौध की रोपाई की जाती है। इसके लिए 60-60 सें.मी. की दूरी पर 9 इंच ऊँची क्यारियाँ बना दी जाती हैं।
बीज की मात्रा
अधिक पैदावार के लिए, 400-600 ग्राम बीजों का प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से होने वाले कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए, बिजाई से पहले बीजों को गाय के मूत्र में 24 घंटे के लिए डाल कर उपचार करें। उपचार के बाद बीज नर्सरी बैड में बोये जाते हैं।
Land Preparation & Soil Health
अनुकूल जलवायु
सतावरी के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु ज्यादा उत्तम मानी जाती है प्रायः जिन क्षेत्रों का तापमान 10°से 50° सेल्सियस के बीच हो, वे इसकी खेती के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।
भूमि का चयन
इसकी खेती विभिन्न प्रकार की भूमि पर की जा सकती हैं, लेकिन इसके लिए अच्छे जल निकास वाली लाल दोमट से चिकनी मिट्टी, काली मिट्टी से लैटेराइट मिट्टी उपयुक्त होती है। यह चट्टानी मिट्टी और हल्की मिट्टी में भी आसानी उगाई जा सकती है। पौधे की वृद्धि के लिए मिट्टी pH 6-8 होना चाहिए।
खेत की तैयारी
पौधरोपण से पहले खेत की अच्छी तरह हल या कल्टीवेटर द्वारा 2-3 गहरी जुताई करें। अंतिम जुताई के समय पाटा लगाकर खेत को समतल और भुरभुरा बना दें। खेत में उचित जलनिकास की व्यवस्था होनी चाहिए। अच्छी तरह जुताई करने के बाद आवश्यकतानुसार क्यारियाँ बनाना चाहिए।
Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
औषधीय पौधों की खेती रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना करना चाहिए। अच्छे विकास लिए जैविक खाद जैसे कि फार्म यार्ड खाद (FYM), वर्मी-खाद, हरी खाद आदि का उपयोग प्रजातियों की आवश्यकता के अनुसार किया जा सकता है।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की रोकथाम के लिए समय-समय पर आवश्यकता अनुसार निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
सिंचाई
रोपण के तुरंत बाद खेत की सिंचाई की जाती है। इसे एक माह तक नियमित रूप से 4-6 दिन के अंतराल पर किया जाए और इसके बाद साप्ताहिक अंतराल पर सिंचाई की जाए।
Harvesting & Storage
फसल की कटाई
24 से 40 माह की फसल हो जाने पर सतावर की जड़ों की खुदाई कर ली जाती है। खुदाई का उपयुक्त समय अप्रैल-मई माह का होता है जब पौधों पर लगे हुए बीज पक जाएं। ऐसी स्थिती में कुदाली की सहायता से सावधानीपूर्वक जड़ों को खोद लिया जाता है।
उत्पादन
शतावरी की फसल 16 महीने में खोदने लायक हो जाती हैं खुदाई करते समय ध्यान रखे की इसके जड़े न कटे, न छिले और न ही भूमि में रहे। वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने पर भारत के अनेक राज्यों में किसान इस समय प्रति पौध 5 से 7 किलो जड़ों का उत्पादन भी ले रहे है।
सामान्यतः शतावरी की पैदावार प्रति पौध 1 से 2 किलो गीली जड़े मानकर भी चले तो लगभग 12000 से 14000 किलो (12-14 टन) गीली जड़े प्रति एकड़ प्राप्त हो जाती है।
सामान्यतः शतावरी की पैदावार प्रति पौध 1 से 2 किलो गीली जड़े मानकर भी चले तो लगभग 12000 से 14000 किलो (12-14 टन) गीली जड़े प्रति एकड़ प्राप्त हो जाती है।