Safflower (कुसुम)
Basic Info
भारत में कुसुम की खेती मुख्यत: तेल के लिए की जाती है, कुसुम के बीजों में 24-36 प्रतिशत तेल पाया जाता है। कपड़े व खाने के रंगों में कुसुम का प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में कृत्रिम रंगों का स्थान, कुसुम से तैयार रंग के द्वारा ले लिया गया है। यह तेल खाना-पकाने व प्रकाश के लिए जलाने के काम आता है। यह साबुन, पेंट, वार्निश, लिनोलियम तथा इनसे संबंधित पदार्थों को तैयार करने के काम में भी आता है। इसके तेल से तैयार पेंट व वार्निश में स्थायी चमक व सफदी होती है। कुसुम के तेल का प्रयोग विभिन्न दवाइयों के रूप में भी किया जाता है।कुसुम का उत्पत्ति स्थान भारत, पाकिस्तान व इसके आस - पास का क्षेत्र माना जाता है। यहीं से इसका प्रचार व प्रसार विश्व के अन्य देशों को हुआ। कुसुम का तेल (safflower oil) गुणवत्ता में सूरजमुखी के तेल से भी उत्तम माना जाता है। विश्व के कुसुम उत्पादक प्रमुख देशों में भारत, अमेरिका, कनाडा और इथोपिया आदि हैं। भारत में कुसुम की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश व गुजरात आदि हैं।
Seed Specification
बुवाई का समय
फसल बोने का उपयुक्त समय सितम्बर माह के अंतिम से अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह तक है।
बुवाई का तरीका
बीज की बुवाई पंक्तियों में करना लाभकारी रहता है ।
दुरी
पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 25 सेमी. रखनी चाहिये।
गहराई
बीज को 3-4 सेमी की गहराई पर बोना उपयुक्त रहता है ।
बीज की मात्रा
बुवाई के लिये कुसुम की फसल की बीज की मात्रा 15-20 किग्रा०/एक हैक्टेयर के लिए पर्याप्त रहता है।
बीज उपचार
बुवाई से पूर्व इस बीज को कैप्टान या थीरम या मैंकोजेब की 3 ग्राम मात्रा से प्रति किग्रा० बीज की दर से उपचारित करना चाहिये।
Land Preparation & Soil Health
अनुकूल जलवायु
कुसुम की फसल एक ठण्डी जलवायु की फसल है। इसके अंकुरण के लिये उपयुक्त तापक्रम लगभग 15°C है तथा पौधों की वृद्धि एवं बढ़वार के समय लगभग 24-28°C तापमान उचित रहता है।
भूमि का चयन
कुसुम की फसल विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाई जाती है। अच्छे उत्पादन के लिये कुसुम फसल के लिये बलुई भूमि, मध्यम काली भूमि से लेकर भारी काली भूमि उपयुक्त मानी जाती है। भूमि का pH मान 6-5 से 8 के बीच उपयुक्त रहता है।
खेत की तैयारी
कुसुम की खेती के लिए भूमि को देसी हल या कल्टीवेटर से दो या तीन बार जोताई करें और प्रत्येक जुताई या हैरो के पश्चात् भूमि में नमी संरक्षण हेतु पाटा लगाना आवश्यक होता है। ध्यान रहे खेत में जलभराव की समस्या न रहे।
Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
कुसुम की फसल के लिये बुवाई से पहले खेत तैयारी के समय 15 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर खेत की दर से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। तथा रासायनिक उर्वरक के रूप में 60 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा. फास्फोरस व 20 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग किया जाना चाहिये। कुल मात्रा का दो तिहाई नाइट्रोजन व सम्पूर्ण फास्फोरस तथा पोटाश बुवाई के समय प्रयोग करने चाहियें। नाइट्रोजन की शेष मात्रा बुवाई के 45 दिन बाद टाप - ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करनी चाहिये। ध्यान रहे रासायनिक उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही देना चाहिए।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की रोकथाम के लिए समय-समय पर आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
सिंचाई
कुसुम एक असिंचित क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसल है। इन क्षेत्रों में कुसुम की फसल की खेती वर्षा पर आधारित होती है, यदि सिंचाई जल उपलब्ध है तो बुवाई के 30 दिन बाद एक सिंचाई करनी चाहिये।
Harvesting & Storage
फसल की कटाई
कुसुम की फसल बुवाई के 130-140 दिनों पश्चात् पककर तैयार हो जाती है ।
उत्पादन
असिंचित क्षेत्रों में कुसुम फसल की उपज 10-12 क्विटल/हैक्टेयर होती है, व सिंचित क्षेत्रों में 14-18 क्विटल/हैक्टेयर तक उपज प्राप्त हो जाती है।