Gooseberry (आंवला)
Basic Info
आंवला भारतीय मूल का एक महत्वपूर्ण फल है। औषधीय गुण व पोषक तत्वों से भरपूर आंवले के फल प्रकृति की एक अभूतपूर्व देन है। इसका वानस्पतिक नाम एम्बलिका ओफीसीनेलिस है। आंवला के फलो में विटामिन ‘सी’ (500 से 700 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम) तथा कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेश्यिम व शर्करा प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। साधारणतया आंवला को विटामिन ‘सी’ की अधिकता के लिए जाना जाता है। इसके फल विभिन्न दवाइयां तैयार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। आंवला से बनी दवाइयों से अनीमिया, डायरिया, दांतों में दर्द, बुखार और जख्मों का इलाज किया जाता है। विभिन्न प्रकार के शैंपू, बालों में लगाने वाला तेल, डाई, दांतो का पाउडर, और मुंह पर लगाने वाली क्रीमें आंवला से तैयार की जाती है। भारत में उत्तर प्रदेश मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश आंवला के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
Seed Specification
बुवाई का समय
आंवला के पौधों को खेतों में लगाने का सबसे उपयुक्त समय जून माह के बाद सितम्बर माह तक का होता हैं।
फासला
मई-जून के महीने में कलम वाले पौधों को 4.5x4.5 मी के फासले पर लगाएं।
बीज की गहराई
1 मीटर गहरा वर्गाकार गड्डे खोदें और सूर्य के प्रकाश में 15-20 दिनों के लिए खुला छोड़ दें।
बुवाई का तरीका
आंवला के पौधे बीज और कलम दोनों माध्यम से लगाए जाते हैं, लेकिन कलम के माध्यम से लगाना सबसे उपयुक्त होता है।
बीज की मात्रा
अच्छी पैदावार के लिए 200 ग्राम बीजों को प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों और कीटों से बचाने के लिए और अच्छे अंकुरन के लिए, बीजों को जिबरैलिक एसिड 200-500 पी पी एम से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बीजों को हवा में सुखाएं।
Land Preparation & Soil Health
अनुकूल जलवायु
आंवला की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है, आंवला के पौधों को शुरुआत में सामान्य तापमान की जरूरत होती है, जबकि इसका पूर्ण विकसित पौधा 0 डिग्री से 45 डिग्री तक किसी भी तापमान को सहन कर सकता है, लेकिन न्यूनतम तापमान अधिक समय तक बने रहने पर पौधों में नुकसान पहुँचता हैं।
भूमि का चयन
आंवले को किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन काली जलोढ़ मिट्टी को इसके लिए उपयुक्त माना जाता है। आंवला की खेती के लिए मिट्टी की pH 6.5-9.5 होना चाहिए।
खेत की तैयारी
आंवला की खेती के लिए अच्छी तरह से जोताई और जैविक मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए बुवाई से पहले ज़मीन की जोताई करें| जैविक खाद जैसे कि गोबर की खाद को मिट्टी में मिलायें। फिर भूमि में गड्ढो की खुदाई 7.5 से 9.5 मीटर की दूरी पर 1.25 से 1.50 मीटर आकर के गड्ढे खोद लेना चाहिए।
Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
आंवला के अच्छे उत्पादन के लिए 10 किलो प्रति पौधे की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिलाये। खेत में नाइट्रोजन 100 ग्राम, फास्फोरस 50 ग्राम और पोटाश 100 ग्राम प्रति पौधा डालें। यह खाद एक वर्ष के पौधे को डालें और 10 साल तक खाद की मात्रा बढ़ाते रहें। फास्फोरस की पूरी और पोटाश और नाइट्रोजन आधी मात्रा को जनवरी-फरवरी में शुरूआती खुराक के तौर पर डालें। बाकी की मात्रा अगस्त के महीने में डालें। बोरॉन और ज़िंक सल्फेट 100-150 ग्राम, सोडियम की ज्यादा मात्रा वाली मिटटी में पौधे की आयु और सेहत के अनुसार डालें।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
सिंचाई
पौधरोपण के तुरंत बाद सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के फासले पर करें और सर्दियों में अक्तूबर दिसंबर के महीने में हर रोज़ चपला सिंचाई द्वारा 25-30 लीटर प्रति वृक्ष डालें। बरसात के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। फूल निकलने के समय सिंचाई ना करें।
Harvesting & Storage
फलों की तुड़ाई और छटाई
आँवले के पौधे खेत में लगाने के लगभग तीन से चार साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं। इसके फल, फूल लगने के लगभग 5 से 6 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं। इसके फल शुरुआत में हरे दिखाई देते हैं। लेकिन पकने के बाद इनका रंग हल्का पीला दिखाई देने लगता है। इस दौरान इसके फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए। इसके फलों की तुड़ाई करने के बाद उन्हें ठंडे पानी से धोकर छायादार जगहों में सुखा देना चाहिए। फलों के सुखाने के बाद उनकी छटाई कर बाज़ार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए।
उत्पादन
आँवला के पूर्ण रूप से तैयार एक वृक्ष से 100 से 120 किलो तक फल प्राप्त हो जाते है। जबकि एक एकड़ में इसके लगभग 150 से 180 पौधे लगाए जा सकते हैं।