Coconut (नारियल)
Basic Info
नारियल एक आराध्य फल होने के साथ-साथ दैनिक जीवन में भी अत्यंत उपयोगी है। भारत में इसके संस्कृतिक महत्व के साथ-साथ आर्थिक महत्व भी है। इसे भारत के छोटे किसानों का जीवन जुड़ा हुआ है। इस वृक्ष का हर हिस्सा उपयोगी है। नारियल का फल पेय, खाद्य एवं तेल के लिए उपयोगी है। फल का छिलका विभिन्न औद्योगिक कार्यो में उपयोगी है तथा पत्ते एवं लकड़ी भी सदुपयोगी हैं। इन्हीं उपयोगिताओं के कारण नारियल को कल्पवृक्ष कहा जाता है। भारत में इसकी खेती केरल, महाराष्ट्र, गोवा, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और समुद्र तटीय इलाकों में की जाती है।
Seed Specification
किस्में:- नारियल की किस्मों को दो वर्गो में बांटा गया है लम्बी व बौनी किस्म के नाम से जानी जाती है। इन दोनों किस्मों के संस्करण से उन्नत किस्म को संकर किस्म के नाम से जानी जाती है।
लम्बी किस्म की उपजातियां में पश्चिम तटीय लम्बी प्रजाति, पूर्व तटीय लम्बी प्रजाति, तिप्तुर लम्बी प्रजाति, अंडमान लम्बी प्रजाति, अंडमान जायंट एवं लक्षद्वीप साधारण आदि प्रमुख हैं।
बौनी किस्म की उपजातियों में चावक्काड ऑरेंज एवं चावक्काड हरी प्रचलित हैं। संकर किस्मों में मुख्य हैं लक्षगंगा, केरागंगा एवं आनंद गंगा।
पौधे लगाने का समय
नारियल लगाने का उपयुक्त समय जून से सितम्बर तक के महीने हैं, लेकिन जहाँ सिंचाई की व्यवस्था हो वहाँ जाड़े तथा भारी वर्षा का समय छोड़कर कभी भी पौधा लगाया जा सकता है।
पौध रोपण का तरीका
गुणवत्ता युक्त पौधों का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि बिचड़े की उम्र 9-18 माह के बीच हो तथा उनमें कम से कम 5-7 हरे भरे पत्ते हों। बिचड़ों के गर्दन वाली भाग का घेरा 10-12 सें.मी. हो तथा पौधे रोगमुक्त हो। अप्रैल-मई माह में 7.5x7.5 मीटर की दूरी पर 1x1x1 मीटर आकार के गड्ढे बनाएं । प्रथम वर्षा होने तक गड्ढा खुला रखा जाता है वर्षा के बाद गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट सतही मिट्टी में मिलाकर इस तरह भरें कि ऊपर से 20 सें.मी. गड्ढा खाली रहे।
पौधों की देखभाल
नव रोपित बिचड़ों को गर्मी तथा ठंढ से बचाव हेतु समुचित छाया एवं सिंचाई की व्यवस्था आवश्यक है। रोपण के बाद 2 वर्ष तक तना तथा बीजनट का गर्दनी भाग खुला रखें। नारियल के वयस्क वृक्षों की उत्पादकता बनाये रखने के आवश्यकता अनुसार सिंचाई बहुत जरूरी है।
Land Preparation & Soil Health
अनुकूल जलवायु
नारियल के पौधों की अच्छी वृद्धि एवं फलन के लिए उष्ण एवं उपोष्ण जावायु आवश्यक है, लेकिन जिन क्षेत्रों में निम्नतम तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेड से कम तथा अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक लम्बी अवधि तक नहीं रहता हो उन क्षेत्रों में भी इसे सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
भूमि का चयन
नारियल की फसल खेती के लिए नमी युक्त अच्छी जल निकास क्षमता वाली मिट्टी उपयोगी है, मिट्टी का पी.एच. 5.2 से 8.8 के मध्य हो। काली तथा पथरीली मिट्टियों के अलावा ऐसी सभी मिट्टियाँ जिनमें निचली सतह में चट्टान न हो नारियल की खेती के लिए उपयुक्त हैं। बलुई दोमट मिट्टी सर्वोतम मानी जाती है।
खेत की तैयारी
नारियल की खेती के लिए खेत को खरपतवार मुक्त करके चयनित जगह पर 7.5 x 7.5 मीटर (25 x 25 फीट) की दूरी पर 1 x 1 x 1 मीटर आकार के गड्ढे बनाए जाते हैं। प्रथम वर्षा होने तक गड्ढा खुला रखा जाता है जिसे 30 किलो गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट एवं सतही मिट्टी को मिलाकर इस तरह भर दिया जाता है कि ऊपर से 20 सें.मी. गड्ढा खाली रहे। शेष बची हुई मिट्टी से पौधा लगाने के बाद गड्ढे के चारों ओर मेढ बना दिया जाता है ताकि गड्ढे में वर्षा का पानी इकट्ठा न हो।
Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
लंबी अवधि तक अधिक उत्पादन के लिए अनुशंसित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का नियमित प्रयोग आवश्यक है। वयस्क नारियल पौधों को प्रतिवर्ष प्रथम वर्षा के समय जून में 30-40 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग करें। इसके अलावा उचित मात्रा में यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश का प्रयोग करें।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
नारियल बाग़ में अधिक उत्पादन प्राप्त करने तथा खरपतवार के नियंत्रण के लिए नियमित निराई-गुड़ाई एवं जुताई आवश्यक है। इन क्रियाओं से पौधों की जड़ों में वायु का संचार बना रहता है।
सिंचाई
नारियल के पौधों की सिंचाई के लिए ड्रिप विधि सबसे अच्छी और उपयुक्त होती है। क्योंकि ड्रिप सिंचाई विधि के माध्यम से पौधे को उचित मात्रा में पानी मिलता रहता है। जिससे पौधा अच्छे से विकास करता है और पैदावार में भी फर्क देखने को मिलता है। गर्मी के मौसम में पौधे को तीन दिन के अंतराल में ज़रुर पानी देना चाहिए। जबकि सर्दी के मौसम में सप्ताह में इसकी एक सिंचाई काफी होती है।
Harvesting & Storage
मिश्रित फसल
नारियल के बाग़ में अनेक मिश्रित फसलें उगाने की अनुशंसा की जाती है। इन फसलों से नारियल उत्पादकों को अतिरिक्त आय होती है। इन फसलों का चयन क्षेत्र की जलवायु की स्थिति तथा आवश्यकता को ध्यान में रख कर करें। ऐसे फसलों के रूप में केला, अनन्नास, ओल, मिर्च, शकरकंद, पपीता, नींबू, हल्दी, अदरक, मौसम्बी, टेपीओका, तेजपात आदि की खेती की जा सकती है।
फलों की तुड़ाई
नारियल के फलों की तुड़ाई करना सबसे कठिन काम होता है। इसके लिए पौधे के शिखर तक चढ़ना पड़ता है। नारियल के फल को पूरी तरह तैयार होने में 15 महीने से ज्यादा का समय लगता है। लेकिन इससे पहले भी इनकी तुड़ाई की जाती है। जब नारियल हरे रंग का होता है तब इसकी तुड़ाई नारियल पानी के लिए की जाती है। नारियल पूरी तरह पकने के बाद पीला दिखाई देने लगता है। नारियल को अच्छे से पकने के बाद ही तोडना सही होता है। पूरी तरह से पकने के बाद नारियल में रेशे और तेल पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
उत्पादन
नारियल की अलग अलग किस्मों की अलग अलग पैदावार होती है। जिसमें बौनी प्रजाति के पौधे ज्यादा उत्पादन देते हैं। क्योंकि इस पर फल 3 साल बाद ही लगने शुरू हो जाते हैं। जबकि बाकी प्रजातियों पर 8 साल तक फल लगने शुरू होते हैं। अलग अलग प्रजातियों की प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार 50 क्विंटल से ज्यादा होती है।