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Papaya (पपीता)

Basic Info

फलों में पपीते का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। पपीते का फल गोलाकार तथा लंबा होता है। इसके गुद्दे पीले तथा गुद्दों के मध्य काले बीज होते हैं। यह एक सदाबहार मधुर फल है, पपीता स्वादिष्ट और रुचिकर होने के साथ स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। इंग्लिश मे पपीता को पपाया (Papaya) कहा जाता हैं। इसमें पाए जाने वाले विटामिन ए और सी के अलावा पोटेशियम कैल्शियम और आयरन प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। देश की विभिन्न राज्यों आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तरांचल और मिज़ोरम में इसकी खेती की जाती है। अब तो पूरे भारत में इसकी खेती की जाने लगी है।

Seed Specification

बुवाई का समय 
भारत में यह बारह महीने उगाया जाता है लेकिन इसकी खेती का उचित समय फरवरी और मार्च एवं अक्टूबर के मध्य का माना जाता है, क्योंकि इस महीनों में उगाए गए पपीते की बढ़वार काफी अच्छी होती है।

बीज की मात्रा 
एक हेक्टेयर भूमि के लिए 500 ग्राम बीज पर्याप्त होती है। बीज पूर्ण पका हुआ, अच्छी तरह सूखा हुआ तथा 6 महीने से पुराना न हो का चयन करें।

बुवाई का तरीका
बीज जुलाई से सितम्बर और फरवरी-मार्च के बीच बोयें बीज अच्छी किस्म की तथा स्वस्थ फलों से लें। अच्छी किस्म के बीजो को पौधशाला (नर्सरी) में तैयार करें। बीज बोने के लिए क्यारी जो जमीन से ऊँची रहनी चाहिए इसके अलावा बड़े गमले या लकड़ी के बक्से में भी बुआई कर सकते हैं। क्यारी जमीन से ऊँची रखें तथा बोई गयी क्यारियों को सूखी घास या पुआल से ढक दें तथा सुबह शाम पानी दें। बोने के लगभग 15-20 दिन भीतर बीज जम जाते हैं, 4-5 पत्तियाँ और 25 से.मी. तक ऊँची हो जाने के 2 महीनें बाद खेत में प्रतिरोपण करना चाहिए। उत्तरी भारत में नर्सरी में बीजई मार्च-अप्रैल,जून-अगस्त में उगाने चाहिए।

रोपण की विधि
मई के महीनें में अच्छी तरह से तैयार खेत में 2*2 मीटर की दूरी पर 50*50*50 सेंटीमीटर आकार के गड्‌ढे बनाये। और उन्हें 15 दिनों के लिए खुले छोड़ दें ताकि ताकि गड्ढों को अच्छी तरह धूप लग जाए और हानिकारक कीड़े - मकोड़े व रोगाणु आदि नष्ट हो जाएं। फिर बाद में गड्ढो पौधे लगाए, पौधे लगाने के बाद गड्‌ढे को मिट्‌टी और गोबर की खाद 50 ग्राम एल्ड्रिन मिलाकर इस प्रकार भरे कि वह जमीन से 10-15 सेंटीमीटर ऊँचा रहे। गड्‌ढे की भराई के बाद सिंचाई कर दे। अमूमन पौधे जून-जुलाई या फरवरी-मार्च में लगाए जाते हैं, लेकिन ज्यादा बारिश व सर्दी वाले क्षेत्रों में सितंबर या फरवरी-मार्च में लगाने चाहिए। पौधों के अच्छी तरह पनपने तक रोजाना दोपहर बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

बीज उपचार 
बीज बुवाई से पहले बीज को 3 ग्राम केप्टान व मैंकोजेब से एक किलो बीज को उपचारित करना चाहिए।

Land Preparation & Soil Health

अनुकूल जलवायु 
पपीते की अच्छी खेती गर्म नमी युक्त जलवायु में की जा सकती है। इसे अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर उगाया जा सकता है, न्यूनतम 5 डिग्री सेल्सियस से कम नही होना चाहिए लू तथा पाले से पपीते को बहुत नुकसान होता है।

भूमि का चयन
पपीते के सफल उत्पादन के लिए हल्की दोमट मिट्‌टी अच्छी होती है, जिसका पी. एच. 6.5 से 7.5 के मध्य हो। खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो क्योंकि पानी भरा रहने से पौधे का तना सड़ने लगता है।

खेत की तैयारी 
पौधे रोपण से पहले खेत की अच्छी 2-3 बार अच्छी गहरी जुताई करना चाहिए। खेत को भुरभुरा, समतल, जलनिकासी और खरपतवार मुक्त रखना चाहिए।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
पपीता जल्दी फल देना शुरू कर देता है। इसलिए इसे अधिक उपजाऊ भूमि की आवश्यकता है। अच्छी फ़सल के लिए प्रति वर्ष प्रति पौधे 20-25 कि०ग्रा० गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, एक कि०ग्रा० बोनमील और एक कि०ग्रा० नीम की खली की तीन बार बराबर मात्रा में मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त और अक्तूबर महीनों में देनी चाहिए। इसके अलावा रासायनिक उर्वरक में औसतन 200 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फ़ॉस्फ़रस एवं 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की लाभदायक है। ध्यान रहे नाइट्रोजन की मात्रा को 6 भागों में बाँट कर 2 महीने के अंतराल पर डालना चाहिए तथा फास्फोरस व पोटाश 2 बार में देनी चाहिए। उर्वरकों को तने से 25-30 सेंटीमीटर की दूरी बनाते हुए पौधें के चारों ओर बिखेर कर मिट्टी में मिला दें। 

हानिकारक रोग एवं किट तथा उनके नियंत्रण के उपाय
प्रमुख रूप से किसी कीड़े से नुकसान नहीं होता है परन्तु वायरस, रोग फैलाने में सहायक होते हैं। हानिकारक रोग एवं कीटों के नियंत्रण हेतु कृषि विशेषज्ञ के परामर्श के अनुसार ही उपचार करें।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण 
पपीते की खेती में खरपतवार की रोकथाम तथा पोषक तत्वों के बचाव के लिए आवश्यकता अनुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। बराबर सिंचाई करते रहने से मिट्टी की सतह कठोर हो जाती है, जिससे पौधे की बढ़वार पर असर पड़ता है अतः 2-3 सिंचाई के बाद थालों की निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए।

सिंचाई
पपीते के अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई जरूरी है। गर्मियों में 6-7 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। बारिश के मौसम में जब लंबे समय तक बरसात न हो तो सिंचाई की जरूरत पड़ती है। सिंचाई के लिए आधुनिक विधि ड्रिप तकनीक अपना सकते हैं।

Harvesting & Storage

फल की तुड़ाई 
पपीत के पूर्ण रूप से परिपक्व फलों को जबकि फल के शीर्ष भाग में पीलापन शुरू हो जाए तब डंठल सहित इसकी तुड़ाई करनी चाहिए। तुड़ाई के बाद स्वस्थ, एक से आकार के फलों को अलग कर लेना चाहिए तथा सड़े-गले फलों को अलग हटा देना चाहिए। 

उत्पादन 
आमतौर पर पपीते की उन्नत किस्मों से प्रति 35-50 किलोग्राम प्रति पौधा उत्पादन मिल जाता है, जबकि नई किस्म से 2-3 गुणा ज्यादा उपज मिल जाती है। स्वस्थ पेड़ों वाले पपीते की एक हेक्टेयर फसल से 250-400 क्विंटल तक पैदावार मिल जाती है।


Crop Related Disease

Description:
एन्थ्रेक्नोज कवक आमतौर पर कमजोर टहनियों को संक्रमित करता है। लंबे समय तक गीली फुहारों के साथ स्प्रिंग्स के दौरान यह बीमारी सबसे आम है और जब बाद में सामान्य से अधिक बारिश होती है। गीले मौसम के दौरान, एन्थ्रेक्नोज बीजाणु फलों पर टपकता है, जहाँ वे छिलके को संक्रमित करते हैं और सुस्त छोड़ देते हैं, अपरिपक्व फल पर हरे रंग की लकीरें और परिपक्व फल (भूसे के दाग) पर काले रंग की लकीरें दिखाई देती हैं।
Organic Solution:
नीम के तेल (5000 ppm) का स्प्रे एक कार्बनिक, बहुउद्देश्यीय फफूंदनाशक / कीटनाशक / माइटाइड है जो कीड़ों के अंडे, लार्वा और वयस्क चरणों को मारता है और साथ ही पौधों पर फंगल के हमले को रोकता है।
Chemical Solution:
या तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.25%) या कार्बेन्डाजिम (0.1%) या difenconazole (0.05%) या azoxystrobin (0.023%) के साथ स्प्रे करें।
Description:
पाउडर फफूंद रोगजनक एरीसिफे नेक्टर के कारण होता है। यह सर्दियों में कलियों के रूप में निष्क्रिय कलियों या छाल दरारों में जीवित रहता है। विभिन्न पौधों के हिस्सों पर फफूंदी विकसित होने के बाद, यह नए बीजाणुओं का उत्पादन शुरू कर देता है जो हवा द्वारा और अधिक फैल जाते हैं।
Organic Solution:
सल्फर, नीम तेल, काओलिन या एस्कॉर्बिक एसिड पर आधारित पर्ण स्प्रे से गंभीर संक्रमण को रोका जा सकता है।
Chemical Solution:
प्रारंभिक संक्रमण को कम करने के लिए सल्फर, तेल, बाइकार्बोनेट (bicarbonates) या फैटी एसिड के आधार पर सुरक्षा कवच का उपयोग किया जा सकता है। एक बार फफूंदी लगने के बाद स्ट्रोबिल्यूरिन ( strobilurins) और एजोफैथेलेन (azonaphthalenes) पर आधारित उत्पादों का छिड़काव किया जा सकता है।

Papaya (पपीता) Crop Types

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