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Arhar (अरहर)

Basic Info


अरहर हमारे देश की प्रमुख दलहनी फसल है जो मुख्यतः ख़रीफ़ मौसम में उगाई जाती है। खरीफ की दलहनी फसलों में अरहर (तुअर) प्रमुख है। यह एक महत्वपूर्ण फसल है और प्रोटीन का स्त्रोत है। यह फसल ऊष्ण और उप ऊष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है। अरहर की फसल दालों के उत्पादन के साथ-साथ वातावरण से नाइट्रोजन को मिट्टी के अंदर एकत्रित करती रहती है, जिससे भूमि की उर्वरता में भी सुधार होता है। अरहर की लंबे समय तक जीवित रहने वाली किस्में मिट्टी में 150-200 किलोग्राम वायुमंडलीय नाइट्रोजन स्थिर करती हैं और मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता बढ़ाती हैं।

अरहर की बुआई शुष्क क्षेत्रों में किसानों द्वारा प्राथमिकता से की जाती है। अरहर की खेती (Arhar Ki Kheti) असिंचित क्षेत्रों में फायदेमंद साबित हो सकती है क्योंकि इसकी गहरी जड़ों और उच्च तापमान की स्थिति में पत्तियों को मोड़ने की क्षमता के कारण यह शुष्क क्षेत्रों में सबसे उपयुक्त फसल है।

भारत विश्व में दलहनी फसलों के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। भारत देश में अरहर को अरहर, तुर, तुअर, रेड ग्राम, व पिजन पी के नाम से जाना जाता है। अरहर का जन्म स्थान वैज्ञानिक भारत व दक्षिण अफ़्रीका मानते हैं। हम भारतवासियों के लिए यह बड़े गर्व की बात है। घर घर में प्रोटीन का मुख्य स्रोत के लिए मशहूर अरहर हमारे देश का पौधा है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश देश के प्रमुख अरहर उत्पादक राज्य हैं।

अरहर की दाल (तुअर की दाल) में लगभग 20-21 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है और इस प्रोटीन की पाचनशक्ति भी अन्य प्रोटीन की तुलना में बेहतर होती है। चूँकि दालें प्रोटीन का एक मजबूत स्रोत हैं, इसलिए इन्हें भारतीयों के आहार में शामिल किया जाता है।

अरहर की दाल में पाएं जाने वाले पोषक तत्व

प्रति 100 ग्राम अरहर की दाल में ऊर्जा - 343 किलो कैलोरी, कार्बोहाइड्रेट - 62.78 ग्राम, फाइबर - 15 ग्राम, प्रोटीन - 21.7 ग्राम, विटामिन जैसे; थियामिन (बी1) 0.643 मिलीग्राम, राइबोफ्लेविन (बी2) (16%) 0.187 मिलीग्राम, नियासिन (बी3) 2.965 मिलीग्राम और खनिज जैसे; इसमें कैल्शियम 130 मिलीग्राम, आयरन 5.23 मिलीग्राम, मैग्नीशियम 183 मिलीग्राम, मैंगनीज 1.791 मिलीग्राम, फास्फोरस 367 मिलीग्राम, पोटेशियम 1392 मिलीग्राम, सोडियम 17 मिलीग्राम, जिंक 2.76 मिलीग्राम आदि पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं।

Seed Specification


अरहर की प्रसिद्ध किस्में

ऋचा २००० - अरहर की सदाबहार किस्म,उपास-120 (1976), आई.सी.पी.एल.-87 (प्रगति,1986), ट्राम्बे जवाहर तुवर - 501 (2008), जे.के.एम.-7 (1996), जे.के.एम.189 (2006), आई.सी.पी.-8863 (मारुती, 1986), जवाहर अरहर-4 (1990), आई.सी.पी.एल.-87119 (आषा 1993),आई.सी.पी.एल.-87119 (आषा 1993), बी.एस.एम.आर.-853 (वैषाली, 2001), बी.एस.एम.आर.-736 (1999), विजया आई.सी.पी.एच.-2671 (2010), एम.ए-3 (मालवीय, 1999), ग्वालियर-3 (1980),

अरहर की बुवाई का समय

अरहर की बुवाई वर्षा प्रारम्भ होने के साथ ही कर देना चाहिए। सामान्यतः जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बोनी करें। बिजाई के लिए 50 से.मी. कतारों में और 25 से.मी. पौधों में फासला रखें।

अरहर की खेती के लिए बीज की मात्रा

अगेती किस्म के लिए 6 से 8 किलो ग्राम तथा पिछेती क़िस्मों के लिए भी 8 -10 किलो ग्राम बीज की मात्रा प्रति एकड़ उपयुक्त होता है।

अरहर की खेती में बीज उपचार

बुवाई के पूर्व फफूदनाशक दवा 2 ग्राम थायरम या 1 ग्राम कार्बेन्डेजिम या वीटावेक्स 2 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। जैविक उपचार में ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम /किलो बीज और रायजोबियम कल्चर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर फिर बुवाई करें।

Land Preparation & Soil Health


अरहर की खेती के लिए भूमि का चुनाव

इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है, अरहर का अच्छे उप्तादन हेतु जीवांश युक्त बलुई दोमट वा दोमट भूमि अच्छी होती है। उचित जल निकास तथा हल्के ढालू खेत अरहर के लिए सर्वोत्तम होते हैं। यह फसल 6.5-7.5 पी एच तक अच्छी उगती है। अरहर की खेती के लिए लवणीय तथा क्षारीय भूमि अनुकूल नहीं होती हैं, अरहर की खेती काली मृदा में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है | गहरी भूमि व पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र में मध्यम अवधि की या देर से पकने वाली जातियाँ बुवाई चाहिए। हल्की रेतीली कम गहरी ढलान वाली भूमि में व कम वर्षा वाले क्षेत्र में जल्दी पकने वाली जातियां बोना चाहिए। 

अरहर की खेती के लिए भूमि की तैयारी

अरहर की खेती के लिए बुवाई से पूर्व 2-3 बार खेत की अच्छी तरह से देशी हल या कल्टीवेटर से अच्छी तरह से जुताई करे, ताकि मिट्टी भुरभुरि हो जाये फिर इसके बाद पाटा चलाकर बुवाई के लिए खेत तैयार करें। जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।

Crop Spray & fertilizer Specification


अरहर की खेती में खाद एवं रासायनिक उर्वरक प्रबंधन

अरहर की खेती में बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 15-20 टन /एकड़ के हिसाब से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए ताकि उत्पादन में वृद्धि हो। रासायनिक उर्वरक में नाइट्रोजन 6 किलो (13 किलो यूरिया), फॉस्फोरस 16 किलो (100 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट) और पोटाश 12 किलो (20 किलो एम ओ पी) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। ध्यान रहे रासायनिक उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार से ही प्रयोग में लाये।

अरहर की फसल में लगने वाले हानिकारक कीट एवं रोग और उनके नियंत्रण के उपाय

हानिकारक कीट:
  • मक्खी और फली का मत्कुण - इन कीटो की रोकथाम के लिए डायमिथोएट 30 ई.सी. या प्रोपेनोफास-50 के 1000 मिली. मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।
  • छेदक इल्ली और प्लू माथ और ब्लिस्टर बीटल - इन कीटो की रोकथाम के लिए इण्डोक्सीकार्ब 14.5 ई.सी. 500 एम.एल. या क्वीनालफास 25 ई.सी. 1000 एम.एल. या ऐसीफेट 75 डब्लू.पी. 500 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर छिडकाव करें।
हानिकारक रोग:
  • पत्तों पर धब्बे - पत्तों के ऊपर हल्के और गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। बहुत ज्यादा बिमारी होने पर यह पेटीओल और तने पर हमला करती है। इसको रोकने के लिए बीज बिमारी मुक्त हो और बीज को थीरम 3 ग्राम या मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति किलो के साथ उपचार करें ।
  • उकटा रोग - यह फ्यूजेरियम नामक कवक से फैलता है। रोग के लक्षण साधारणतया फसल में फूल लगने की अवस्था पर दिखाई पडते है। सितंबर से जनवरी महिनों के बीच में यह रोग देखा जा सकता है। पौधा पीला होकर सूख जाता है। इसमें जडें सड़ कर गहरे रंग की हो जाती है तथा छाल हटाने पर जड़ से लेकर तने की उचाई तक काले रंग की धारिया पाई जाती है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए गर्मी के समय खेत की अच्छी गहरी जुताई करना आवश्यक होती है। गर्मी में गहरी जुताई व अरहर के साथ ज्वार की अंतरवर्तीय फसल लेने से इस रोग का संक्रमण कम रहता है। और बीज उपचारित करके बुवाई करें।  
  • बांझपन विषाणु रोग - यह बिमारी इरीओफाईड कीट के साथ होती है। इसके हमले से फूल नहीं बनते और पत्ते हल्के रंग के हो जाते हैं, इसको रोकने के लिए फेनाज़ाकुईन 10 % ई सी 300 मि.ली. प्रति एकड़ 200 लि. पानी में मिला कर छिड़काव करें।
  • फायटोपथोरा झुलसा रोग - रोग ग्रसित पौधा पीला होकर सूख जाता है। इसमें तने पर जमीन के उपर गठान नुमा असीमित वृद्धि दिखाई देती है व पौधा हवा आदि चलने पर यहीं से टूट जाता है। इसकी रोकथाम हेतु 3 ग्राम मेटेलाक्सील फफूँदनाशक दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें।

Weeding & Irrigation


अरहर की खेती में खरपतवार नियंत्रण

अरहर के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 20-25 दिन में पहली निंदाई तथा फूल आने के पूर्व दूसरी निंदाई करें। खरपतवारनाशक पैंडीमैथालीन 2 ली. प्रति एकड. 150-200 ली. पानी में बुवाई से 2 दिन बाद डालें । खरपतवारनाशक प्रयोग के बाद एक नींदाई लगभग 30 से 40 दिन की अवस्था पर करना लाभदायक होता है। सकरी पत्ती या घास कुल खरपतवार के नियंत्रण लिए क्विजैलोफाप 5 ई.सी. टर्गासुपर 800-1000 मिली बुवाई के 15-20 दिन बाद प्रयोग करें।

अरहर की फसल में सिंचाई प्रबंधन

जहां सिंचाई की सुविधा हो वहां एक सिंचाई फूल आने पर व दूसरी फलियां बनने की अवस्था पर करने से पैदावार अच्छी होती है।

Harvesting & Storage


अरहर की फसल की कटाई, मड़ाई एवं भण्डारण

फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब पौधे की पत्तियाँ झड़ने लगें तथा फलियाँ सूखकर भूरी हो जायें। इसे खलिहान में 8-10 दिनों तक धूप में सुखाया जाता है और ट्रैक्टर या बैलों द्वारा मड़ाई की जाती है। बीजों को तब तक सुखाकर भण्डारित करना चाहिए जब तक नमी की मात्रा 8-9 प्रतिशत न हो जाये।

अरहर की पैदावार प्रति हेक्टेयर

उन्नत उत्पादन तकनीक अपनाकर अरहर की खेती करने से असिंचित अवस्था में 12-16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सिंचित अवस्था में 22-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।



Crop Related Disease

Description:
पत्तियां रूखी और विकृत हो जाती हैं जो पत्तियों और अंकुरों के नीचे 0.5 से 2 मिमी तक के आकार के छोटे कीड़ों के कारण होती हैं। वे निविदा पौधों के ऊतकों को छेदने और तरल पदार्थों को चूसने के लिए अपने लंबे मुखपत्र का उपयोग करते हैं। कई प्रजातियां पौधों के वायरस ले जाती हैं जो अन्य बीमारियों के विकास को जन्म दे सकती हैं।
Organic Solution:
हल्के जलसेक के लिए, एक कीटनाशक साबुन समाधान या संयंत्र तेलों पर आधारित समाधान, उदाहरण के लिए, नीम तेल (3 एमएल / एल) का उपयोग किया जा सकता है। प्रभावित पौधों पर पानी का एक स्प्रे भी उन्हें हटा सकता है।
Chemical Solution:
बुवाई के बाद 30, 45, 60 दिनों में फ्लोनिकमिडियम और पानी (1:20) अनुपात के साथ स्टेम अनुप्रयोग की योजना बनाई जा सकती है। Fipronil 2 mL या thiamethoxam (0.2 g) या flonicamid (0.3 g) या acetamiprid (0.2 प्रति लीटर पानी) का भी उपयोग किया जा सकता है।
Description:
कवक के कारण Cercospora canescens जो बीज-जनित है और मिट्टी में पौधे के मलबे पर 2 से अधिक वर्षों तक जीवित रह सकता है। ऊंचा दिन और रात का तापमान, नम मिट्टी, उच्च हवा की नमी, या भारी तूफानी बारिश कवक के प्रसार के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं।
Organic Solution:
बीज का गर्म जल उपचार संभव है। नीम के तेल के अर्क का आवेदन भी रोग की गंभीरता को कम करने में प्रभावी है।
Chemical Solution:
जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के साथ एकीकृत दृष्टिकोण। यदि कवकनाशी के साथ उपचार की आवश्यकता होती है, तो 10 दिनों के अंतराल पर दो बार mancozeb, chlorothalonil (1g / L), या thiophanate मिथाइल (1 mL) युक्त उत्पाद लागू करें।
Description:
Agromyzidae के परिवार से संबंधित कई मक्खियों तथा दुनिया भर में कई हजार प्रजातियों के कारण लक्षण देखा जा सकता है। वे पत्ती के ऊतकों को पंचर करते हैं और अंडे देते हैं। इस प्रकार ऊपरी और निचली पत्ती की सतह के बीच लार्वा फ़ीड होता है, पीछे काले निशान के साथ बड़ी सफेद रंग की सुरंगों का निर्माण होता है।
Organic Solution:
सुबह या देर शाम पत्तियों पर लार्वा के खिलाफ नीम के तेल उत्पादों (अज़ादिराच्तीन) का छिड़काव करें। एन्टोमोफैगस नेमाटोड, स्टीनरनेमा कार्पोकैप्स के फोलियर अनुप्रयोग, पत्ती की खान की आबादी को कम कर सकते हैं।
Chemical Solution:
ऑर्गनोफोस्फेट्स, कार्बामेट्स और पाइरेथ्रोइड्स परिवारों के व्यापक स्पेक्ट्रम कीटनाशक वयस्कों को अंडे देने से रोकते हैं, लेकिन वे लार्वा को नहीं मारते हैं।
Description:
युवा कैटरपिलर एक काले सिर और काले बालों के साथ क्रीम-सफेद रंग के होते हैं; पुराने लार्वा पीले-हरे रंग के हो सकते हैं, जो उनके शरीर के साथ सफेद रेखाओं के साथ लगभग काले रंग के होते हैं और बालों के आधार पर काले धब्बे होते हैं।
Organic Solution:
Parasitoid Trichogramma और Telenomus wasps अंडों को संक्रमित करके जनसंख्या को एक निश्चित सीमा तक नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं। फंगल रोगज़नक़ नोमुरिया रिलेई और परमाणु पॉलीहेड्रोसिस वायरस भी आबादी को कम करते हैं।
Chemical Solution:
रासायनिक नियंत्रण की शायद ही कभी सिफारिश की जाती है क्योंकि लार्वा को कोब के अंदर छिपाते हैं और उपचार के संपर्क में नहीं आते हैं। पाइरेथ्रॉइड, स्पिनेटोरम, एस्फेनवेलरेट, या क्लोरपाइरीफोस वाले कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
Description:
उकठा रोग अत्यंत हानिकारक है। इसमें कई बार फसल को बहुत हानि पहुंचती है। यह रोग ( Fusarium oxysporum ) नामक फफूंदी द्वारा होता है।

जिस खेत में रोग का प्रकोप अधिक हो वहां 3-4 साल तक अरहर की फसल न लें |
खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें | खेतों में जल निकास का उचित प्रबंधन करना चाहिए। रोग रोधी किस्में आशा, राजीव लोचन, सी -11 आदि का उपयोग बुआई हेतु करें। ज्वार के साथ अरहर की फसल लेने से रोग की तीव्रता में कमी की जा सकती है।
Organic Solution:
जैविक उपचार में ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोएं |
Chemical Solution:
रासायनिक फफूंदनाशक जैसे बेनोमील 50% + थायरम 50% के मिश्रण का तीन ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें |
Description:
बांझपन विषाणु रोग विषाणु जनित है जिसका वाहक एरियोफिड माईट है जो की एक प्रकार का सूक्ष्म जीव है। इस रोग की अधिकता के कारण 75% तक उत्पादन में कमी देखी गयी है। रोग से ग्रसित पौधे पीलापन लिए हुए झाड़ीनुमा हो जाते हैं। इसके लक्षण ग्रसित पौधों के उपरी शाखाओं में पत्तियाँ छोटी, हल्के रंग की तथा अधिक लगती है और फूल-फली नही लगती है। फूल नहीं आने से फल नहीं लगते इसलिए इस रोग को बाँझ रोग कहते हैं। फसल पकने की अवस्था में रोगी पौधे लम्बे समय तक हरे दिखाई देते हैं जबकि स्वस्थ पौधे परिपक्व होकर सूखने लगते हैं। यह रोग माईट, मकड़ी के द्वारा फैलता है।
Organic Solution:
इसकी रोकथाम हेतु रोग रोधी किस्मों को लगाना चाहिए। खेत में बे मौसम रोग ग्रसित अरहर के पौधों को उखाड कर नष्ट कर देना चाहिए। मकड़ी का नियंत्रण करना चाहिए। बांझपन विषाणु रोग रोधी जातियां जैसे पूसा-9, आई.सी.पी.एल.-87119, राजीव लोचन, एम.ए.-3, 6, शरद, बी.एस.एम.आर.-853, 736 को लगाना चाहिए। जिस खेत में अरहर लगाना हो उसके आसपास अरहर के पुराने एवं स्वयं उगे हुए पौधे नष्ट कर देना चाहिए।
Chemical Solution:
फय़ूराडान 3 जी., की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए एवं फसल की प्रारंभिक अवस्था में कैल्थेन (1 मिली./ली. पानी) का छिडकाव रोगवाहक माईट के रोकथाम में प्रभावी होता है।
Description:
इस रोग को फाइटोफ्थोरा तना मारी भी कहते है यह केवल अरहर में ही संक्रमण करता है। इसका प्रयोग मुख्यतः फसल की प्रारम्भिक अवस्था (बुवाई के 40-60 दिनों तक) में होता है। यह रोग इतना घातक होता है कि यदि रोग फैलने के लिये आवश्यक वातावरण अनुकूल हो तो फसल पूर्ण रुप से नष्ट हो सकती है। इस रोग के लक्षण सबसे पहले खेतों के निचले भागों जहांँ वर्षा का पानी इकट्ठा होता है, प्रकट होते है। इस रोग का प्रकोप फाइटोफ्थोरा ड्रेशलरी उप-प्रजाति केजानी नामक मृदाजनित कवक से फैलता है।

इस रोग का प्रकोप फाइटोफ्थोरा ड्रेशलरी उप-प्रजाति केजानी नामक मृदाजनित कवक से फैलता है।
Organic Solution:
खेतों में जल निकास की उचित व्यवस्था करें। जहाँ इस रोग का प्रकोप अधिक होता है वहां 3-4 वर्ष तक अरहर की फसल नहीं लेनी चाहिए। रोगरोधी किस्में जैसे :- पूसा-9, एन.ए.-1, एम.ए.-6, बहार, शरद, अमर आदि का चुनाव करना चाहिए।
Chemical Solution:
बीजों को बुवाई से पूर्व रिडोमिल नामक कवकनाशी की 2 ग्रा. मात्रा प्रति किग्रा.बीज की से उपचारित करें। रोग की प्रारभिक अवस्था में ताम्रयुक्त कवकनाशी जैसे फायटोलान 50% की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से या रिडोमिल एम.जेड. 1.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से 10-12 दिन के अन्तराल में छिडकाव करना चाहिए |
Description:
अरहर की फली की मक्खी छोटी चमकदार काले रंग की घरेलू मक्खी की तरह है परन्तु आकार में छोटी होती है | इसका मादा फलियों में बन रहे दानों के पास अपने अंडरोपक की सहायता से अण्डे देती है जिससे निकलने वाले गिदारे फली के अन्दर बने रहे डेन को खाकर नुकसान पहुँचाती है |
Organic Solution:
Chemical Solution:
रासायनिक नियंत्रण के लिए 400 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी या डाईमिथोएट 30 ई.सी 1.0 ली. प्रति हे. की दर से 500-600 ली. पानी में घोल बनाकर प्रति हे. की दर से छिड़काव करना चाहिए। या इमडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 200 मि.ली. प्रति हे. की दर से 500 – 600 ली. पानी में घोल बनाकर प्रति हे. की दर से छिड़काव करना चाहिए |
Description:
छोटी इल्लियाँ फलियों के हरे ऊत्तकों को खाती हैं व बडे होने पर कलियों, फूलों, फलियों व बीजों को नुकसान करती है। इल्लियाँ फलियों पर टेढे-मेढे छेद बनाती है। इस कीट की मादा छोटे सफेद रंग के अंडे देती है। इल्लियाँ पीली हरी काली रंग की होती हैं तथा इनके शरीर पर हल्की गहरी पट्टियाँ होती हैं। शंखी जमीन में बनाती है प्रौढ़ रात्रिचर होते है जो प्रकाष प्रपंच पर आकर्षित होते है। अनुकूल परिस्थितियों में चार सप्ताह में एक जीवन चक्र पूर्ण करती हैं। फली छेदक अपनी परिपक्वता से पहले 30 – 40 फलियों को नुकसान पहुँचाती हैं।
Organic Solution:
निरिक्षण के लिए खेतों में फेरोमोन ट्रैप 5/हे. की दर से लगाने चाहिए। इनके अभाव की स्थिति में रात के समय खेतों प्रकाश प्रपच या पैट्रोमेक्स लैम्प का प्रयोग करना चाहिए। कीट भक्षी पक्षियों बैठने के लिए T आकार की खुंटीयाँ (अड्डे) 20 -25/हे. की दर से खेत में लगानी चाहिए। नीम (2 प्रतिशत), नीम बीज कर्नेल 5 प्रतिशत @ 50 ग्रा./ली., एजाडिरैक्टिन 0.03 प्रतिशत 2.0 मि.ली./ली. उपयोग करनी चाहिए।
Chemical Solution:
इमामेक्टिन बेन्जोएट 5% एस.जी.@ 100 ग्राम या क्लोरोन्ट्रेनिलीप्रोल 18.5%एस.सी.@ 60 मिली प्रति एकड 200 लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव करें
Description:
प्रौढ़ बग लगभग 2 सेन्टीमीटर लम्बा कुछ हरे भूरे रंग के होते है। इसके शीर्ष पर एक शूल युक्त, प्रवक्ष पृष्ठक पाया जाता है। अंडे कत्थई रंग के होते है तथा यह अंडे बाहर निकल कर अपना जीवन चक्र चलाते हैं। एक जीवन चक्र लगभग चार सप्ताह में पूरा करते है। उदर प्रोथ पर मजबूत कांटे होते हैं, इसके शिशु और प्रौढ़ अरहर के तने, पत्तियों तथा पुष्पों या फलियों से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं, प्रकोपित फलियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और अत्याधिक प्रकोप होने पर फलियां सिकुड़ जाती है व दाने छोटे रह जाते है।
Organic Solution:
गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। बुवाई मेड़ पर मध्य जून से जुलाई से प्रथम सप्ताह में करें।
Chemical Solution:
इमिडाक्लोप्रिड 17. 8 एसएल 200 मिलीलीटर 800 लीटर पानी में मिलाकर का छिडक़ाव करें। प्रकोप होने पर डाईमेथोएट 30 ई. सी. 1 लीटर को 600 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें। अरहर फली बग का प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17 8 एसएल 200 मिलीलीटर या एसिटामिप्रिड 20 डब्लू पी 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिडक़ाव करें। परासिटाइड ट्राईकोग्रामा इस फसल पर काफी उपयोगी होता है।
Description:
ये भृंग कलियों फूलों तथा कोमल फलियों को खाती है। इनके व्यस्क 25-30 मि॰ मी॰ लम्बे होते है, जिन के शरीर पर चमकीली लाल धारियां और काले रंग के चिन्ह बने होते हैं। छूने पर व्यस्क एक द्रव्य छोड़ते हैं जो त्वचा में फफोले उत्पन्न करते हैं। व्यस्क तीव्रता से फूलों को खाते हैं और इनमें फलियां नहीं बन पाती। जिससे उत्पादन में काफी कमी आती है। यह कीट अरहर, मूंग, उडद तथा अन्य दलहनी फसलों को नुकसान पहुचाता है।
Organic Solution:
नीम तेल या करंज तेल 10-15 मि.ली.$1 मि.ली. चिपचिपा पदार्थ (जैसे सेन्डोविट, टिपाल) प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। व्यस्क कीटों को एकत्रित करके नष्ट कर दें।
Chemical Solution:
फसल पर 1 मि.क्विनॉलफॉस 25 ई.सी. या 1.5 मि.ली. मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल. को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
Description:
यह माश का एक प्रमुख कीट है। पतंगे रात को पत्तों की निचली सतह पर समूहों में अण्डे देते हैं। अण्डों से 3-4 दिन बाद सुण्डियां निकलती है जोकि झुण्डों में रहकर पत्तों कों खाती हैं। बड़ी होकर यह इधर-उधर धूमकर पत्तियों को छलनी कर देती हैं।
Organic Solution:
झुण्डों में पनप रही सुण्डियों को एकत्रित करके नष्ट कर दें, व्यस्क कीट को प्रकाश ट्रैप में एकत्रित कर मार दें। कटाई के पश्चात् खेत की गहरी जुताई करें।
Chemical Solution:
फसल पर 1 मि.ली. क्वीनलफॉस 25 ई. सी. या 1.5 मिली. मानोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
Description:
पत्तियों पर सफेद पाउडर दिखाई देता है जोकि बाद में बढ़ कर तने व पौधों के अन्य भागों पर पूरी तरह फैल जाता है। रोग का प्रकोप फूल आने की अवस्था से शुरू होकर फसल पकने तक रहता है। पत्ते झड़ जाते हैं, फलियां छोटी रह जाती है और उनमें बेढंगे बीज बनते हैं।
Organic Solution:
Chemical Solution:
रोग शुरू होने पर कार्बैन्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी (1 ग्रा. प्रति ली.) या प्रोपीकोनाजोल या हैक्साकोनाजोल (1 मि.ली./ली.) का घोल बनाकर छिड़काव करें।

Arhar (अरहर) Crop Types

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Frequently Asked Questions

Q1: अरहर किस मौसम में उगाया जाता है?

Ans:

अरहर की फसल गर्मी, बरसात और सर्दियों के मौसम, अप्रैल-ग्रीष्म, जून-खरीफ या बरसात, सितंबर-रबी या सर्दियों के मौसम में सफलतापूर्वक उगाई जाती है।

Q3: भारत में अरहर दाल की खेती कहाँ होती है?

Ans:

भारत के पास विश्व के उत्पादन और एकड़ का ¾ हिस्सा है। अरहर फसल महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है।

Q5: क्या अरहर दाल (तुअर दाल) स्वास्थ्य के लिए अच्छा है?

Ans:

विटामिन, खनिज और फाइबर के समृद्ध स्रोत के रूप में, छोले कई तरह के स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकते हैं, जैसे पाचन में सुधार, वजन प्रबंधन में सहायता और कई बीमारियों के जोखिम को कम करना। इसके अतिरिक्त, छोले प्रोटीन में उच्च होते हैं और शाकाहारी भोजन के लिए एक उत्कृष्ट प्रतिस्थापन बनाते हैं।

Q2: अरहर की फसल क्या है?

Ans:

अरहर, एक खरीफ मौसम की फसल, जिसे आमतौर पर लाल चना, अरहर या अरहर के रूप में भी जाना जाता है। यह देश में चने और प्रमुख खरीफ फसल के बाद दूसरी महत्वपूर्ण दलहन फसल है। भारत दुनिया में 80% और 67% क्रमशः उत्पादन और उत्पादन के साथ दुनिया में क्षेत्रफल और उत्पादन में प्रथम स्थान पर है।

Q4: किस फसल को गरीबों का भोजन कहा जाता है?

Ans:

दालें गरीबों के भोजन के रूप में जानी जाती हैं क्योंकि वे पोषण से भरपूर और कम लागत वाली होती हैं। इसलिए, अधिकांश निम्न-आय वाली आबादी इस पौष्टिक फसल को अपने मुख्य भोजन के रूप में उपयोग कर सकती है।

Q6: अरहर की फसल के लिए कौन सी मिट्टी अधिक उपयुक्त हैं?

Ans:

यह फसल सभी प्रकार की मिट्टी में अच्छी तरह से उगती है लेकिन दोमट से बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। यह फसल मध्य-पहाड़ियों में ढीली भूमि में भी अच्छा करती है।