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Fennel (सौंफ)

Basic Info

जैसे की आप जानते है सौंफ (Fennel) व्यावसायिक और मसाले की एक प्रमुख फसल है। सौंफ की व्यसायिक रूप से एक साल की जड़ी बूटी के रूप में खेती की जाती है। इसके दाने आकार में छोटे और हरे रंग के होते है। सोंफ का उपयोग आचार बनाने में और सब्जियों में खशबू और जयका बढाने में किया जाता है|  सौंफ की औषधिय विशेषताएं भी हैं। इसे पाचन, कब्ज के उपचार, डायरिया, गले का दर्द और सिरदर्द के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। सौंफ के बीजो से तेल भी निकाला जाता है। सौंफ की खेती मुख्य रूप से मसाले के रूप में की जाती है, इसकी खेती मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आँध्रप्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा में की जाती है।

Frequently Asked Questions

Q1: सौंफ के क्या फायदे हैं?

Ans:

सौंफ में फाइबर, पोटेशियम, फोलेट, विटामिन सी, विटामिन बी -6 और फाइटोन्यूट्रिएंट सामग्री, कोलेस्ट्रॉल की कमी के साथ मिलकर, सभी हृदय स्वास्थ्य का समर्थन करते हैं। सौंफ में महत्वपूर्ण मात्रा में फाइबर होता है। फाइबर हृदय रोग के जोखिम को कम करता है क्योंकि यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल की कुल मात्रा को कम करने में मदद करता है।

Q3: सौंफ की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता होती है ?

Ans:

सौंफ की खेती बलुई मृदा को छोड़कर प्रायः सभी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए जीवांशयुक्त बलुई दोमट मृदा उपयुक्त है। अच्छे जल निकास वाली चूनायुक्त मृदा में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है। मिट्टी की पी एच 6.5 से 8 तक होनी चाहिए।

Q5: सौंफ के बीजों का अंकुरण होने में कितना समय लगता हैं?

Ans:

सौंफ के बीज 8-14 दिनों में अंकुरित हो जाएंगे। इसके लिए मिट्टी को नम रखें और इसे पूरी तरह से सूखने न दें।

Q2: सौंफ को बढ़ने में कितना समय लगता है?

Ans:

बुवाई से लेकर कटाई योग्य आकार तक लगभग 65 दिन लगते हैं।

Q4: सौंफ की खेती किस मौसम में की जाती हैं?

Ans:

सौंफ की खेती खरीफ एवं रबी दोनों ही मौसम में की जा सकती है। लेकिन रबी का मौसम सौंफ की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। खरीफ में इसकी बुवाई जुलाई माह में तथा रबी के सीजन में इसकी बुवाई अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से लेकर नवंबर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है।

Q6: सौंफ का उपयोग चिकित्सकीय रूप से किस लिए किया जाता है?

Ans:

सौंफ का उपयोग विभिन्न पाचन समस्याओं के लिए किया जाता है, जिसमें नाराज़गी, आंतों की गैस, सूजन, भूख न लगना और शिशुओं में पेट का दर्द शामिल है। इसका उपयोग ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण, खांसी, ब्रोंकाइटिस, हैजा, पीठ दर्द, बिस्तर गीला करना और दृश्य समस्याओं के लिए भी किया जाता है।