Discription:

          देश में ब्रॉयलर फार्मिंग या मुर्गी पालन का व्यवसाय लगातार तेजी से बढ़ता जा रहा है। छोटे गांव से लेकर महानगरों तक इसकी मांग में लगातार इजाफा जारी है। इसका सहज अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ सालों में मुर्गी पालन व्यवसाय ने बहुत तेजी से गति पकड़ी है। इस व्यवसाय में अच्छा मुनाफा कमाने के लिये जरूरी है कि आपको इससे संबंधित तकनीकि जानकारी अच्छी तरह से हो, जैसे कि मुर्गी के लिए बाड़ा बनाना, नस्ल की जानकारी, खाना-खिलाना और रख-रखाव। ब्रॉयलर यानी चिकन जिसका जन्म के समय 40 ग्राम वजन होता है। छह सप्ताह के अंदर ही चिकन का वजन 40 ग्राम से बढ़कर करीब डेढ़ से दो किलो तक हो जाता है।

मुख्यतौर पर मांस के लिए ब्रॉयलर का धंधा किया जाता है और इसके भी दो प्रकार हैं- पहला, कॉमर्शियल ब्रॉयलर नस्ल और दूसरा, दोहरी उपयोगिता वाला ब्रॉयलर नस्ल

भारत में कॉमर्शियल ब्रॉयलर नस्ल के प्रकार –

• केरिब्रो

• बाबकॉब

• कृषिब्रो

• कलर ब्रॉयलर

• हाई ब्रो

• वेनकॉब

दोहरी उपयोगिता वाला ब्रॉयलर नस्ल के प्रकार –

• कूरॉयलर ड्यूअल

• रोड आइलैंड

• रेड वनराजा

• ग्राम प्रिया

 ब्रॉयलर फार्मिंग के लिए आवास (बाड़ा) या शेड प्रबंधन –

चिकन या चूजे की अच्छी बढ़त और पर्याप्त वजन पाने के लिए आरामदायक आवास और शेड की व्यवस्था करना सबसे जरूरी काम है। ब्रॉयलर फार्मिंग के लिए बेहतर आवास या शेड प्रबंधन के लिए कुछ खास बातों पर ध्यान देना जरूरी है। आवासा(बाड़ा) या शेड के डिजायन और जगह का चयन ये कुछ जरूरी बातें जिनका ध्यान रखा चाहिए।

योजना का विवरण - http://ibs.rajasthan.gov.in/pdf/411/411_Detail.PDF

योजना का फॉर्म - http://ibs.rajasthan.gov.in/pdf/411/411_Form.PDF

योजना की अधिक जानकारी के लिए - http://www.rsldb.nic.in/

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