जानिए आलू से जुड़ी कुछ दिलचस्प और रोचक बातें
जानिए आलू से जुड़ी कुछ दिलचस्प और रोचक बातें
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  1. आलू में सोडा, पोटाश तथा विटामिन 'ए' तथा 'डी' भी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। विटामिन `सी´ आलू का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, जब से यूरोप में आलू का प्रयोग व्यापक हो गया है, तभी से स्कर्वी नामक रोग का प्रकोप बहुत कम देखने को मिलता है।
  2. आलू के पौष्टिक तत्वों का लाभ लेने के लिए इसे हमेशा छिलके सहित ही पकाना चाहिए, क्योंकि आलू का सबसे पौष्टिक हिस्सा छिलके के ठीक नीचे होता है, जो प्रोटीन और मिनरल्स से भरपूर होता है। आलू को उबालकर, भूनकर या अन्य सब्जियों के साथ पकाकर खाया जाता है, जिससे इसके पोषक तत्व आसानी से पच जाते हैं।
  3. अगर आलू का कोई भाग हरा रह गया है तो उसे काट कर हटा देना चाहिए क्योंकि इसमें सोलेनाइन नामक विषैला पदार्थ होता है। इसके अलावा अगर आलू में अंकुर आ गए हैं तो अंकुरित हिस्से को काटकर हटा देना चाहिए और इसे खाने में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  4. आलू में जबरदस्त औषधीय गुण होते हैं। यह आंतों में सड़ांध की प्रक्रिया को रोकता है और पाचन प्रक्रिया में फायदेमंद बैक्टीरिया के विकास में सहायता करता है।
  5. आलू यूरिक एसिड को घोलकर दूर करता है। पुरानी कब्ज, आंतों की विषाक्तता, यूरिक एसिड से संबंधित रोग, गुर्दे की पथरी, जलोदर आदि रोगों के उपचार में आलू पर आधारित चिकित्सा को बहुउपयोगी माना गया है। आलू को स्कर्वी में एक आदर्श आहार औषधि माना गया है।
  6. प्रत्येक भोजन से पहले एक या दो चम्मच कच्चे आलू का रस पीने से शरीर से सभी प्रकार के अम्ल निकल जाते हैं और गठिया रोग में लाभ होता है। आलू के छिलके में महत्वपूर्ण खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
  7. कच्चे आलू का रस पाचन संबंधी रोगों में बहुत उपयोगी होता है, क्योंकि यह आंतों में सूजन से राहत दिलाता है। इस रोग में आराम पाने के लिए कच्चे आलू का रस आधा कप दिन में दो या तीन बार भोजन से आधे घंटे पहले लेना चाहिए। यह आंतों की सूजन और अल्सर से भी राहत दिलाता है। पेट और आंतों के रोगों और विषाक्तता के मामलों में आलू के स्टार्च का उपयोग एक सूजनरोधी पदार्थ के रूप में किया जाता है। त्वचा पर दाग-धब्बे दूर करने में कच्चे आलू का रस उपयोगी है। आलू में मौजूद पोटैशियम सल्फर, फॉस्फोरस और कैल्शियम की मात्रा त्वचा को साफ करने में मदद करती है।
  8. आलू के गुण तभी तक अधिक प्रभावशाली होते हैं जब तक वह कच्चा रहता है, क्योंकि उसमें जीवित कार्बनिक कण होते हैं। पकी हुई अवस्था में, ये कार्बनिक अणु अकार्बनिक अणुओं में परिवर्तित हो जाते हैं और उनका रचनात्मक लाभ कम हो जाता है।