आलू की सफल खेती के लिए आवश्यक है इसमे लगने वाले विनाशकारी रोग पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन, रोग आने से पूर्व करे तैयारी
आलू की सफल खेती के लिए आवश्यक है इसमे लगने वाले विनाशकारी रोग पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन, रोग आने से पूर्व करे तैयारी
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डॉ. एसके सिंह
प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक( प्लांट पैथोलॉजी)
एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय
पूसा , समस्तीपुर बिहार

आलू की फसल में नाशीजीवो (खरपतवारों, कीटों व रोगों ) से लगभग 40 से 45 फीसदी की हानि होती है| कभी कभी यह हानि शत प्रतिशत होती है। आलू की सफल खेती के लिए आवश्यक है की समय से पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन किया जाय।

यह रोग फाइटोपथोरा इन्फेस्टेंस नामक कवक के कारण फैलता है| आलू का पछेती अंगमारी रोग बेहद विनाशकारी है| आयरलैंड का भयंकर अकाल जो साल 1945 में पड़ा था, इसी रोग के द्वारा आलू की पूरी फसल तबाह हो जाने का ही नतीजा था| जब वातावरण में नमी व रोशनी कम होती है और कई दिनों तक बरसात या बरसात जैसा माहौल होता है, तब इस रोग का प्रकोप पौधे पर पत्तियों से शुरू होता है| यह रोग 4 से 5 दिनों के अंदर पौधों की सभी हरी पत्तियों को नष्ट कर सकता है| पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले गोले बन जाते हैं, जो बाद में भूरे व काले हो जाते हैं| पत्तियों के बीमार होने से आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में कमी आ जाती है| इस के लिए 20-21 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान मुनासिब होता है| आर्द्रता इसे बढ़ाने में मदद करती है| पछेती झुलसा के विकास को प्रभावित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय कारक तापमान और नमी हैं। स्पोरैंगिया निचली पत्ती की सतहों और संक्रमित तनों पर बनते हैं जब सापेक्षिक आर्द्रता <90% होती है। बीजाणु बनाने की प्रक्रिया (स्पोरुलेशन) 3-26 डिग्री सेल्सियस (37-79 डिग्री फारेनहाइट) से हो सकता है, लेकिन इष्टतम सीमा 18-22 डिग्री सेल्सियस (64-72 डिग्री फारेनहाइट) है। आलू एवं की सफल खेती के लिए आवश्यक है की इस रोग के बारे में जाने एवं प्रबंधन हेतु आवश्यक फफुंदनाशक पहले से खरीद कर रख ले एवं ससमय उपयोग करें अन्यथा रोग लगने के बाद यह रोग आप को इतना समय नहीं देगा की आप तैयारी करें।पूरी फसल नष्ट होने के लिए 4 से 5 दिन पर्याप्त है।


पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन
जिन किसानों ने अभी तक आलू की बुवाई नही किया है वे मेटालोक्सिल एवं मैनकोजेब मिश्रित फफूंदीनाशक की 1.5 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर उस में आलू एवं टमाटर के कंदो या बीजों को आधे घंटे डूबा कर उपचारित कने के बाद छाया में सूखा कर बोआई करनी करें।
जिन्होंने फफूंदनाशक दवा का छिड़काव नहीं किया है या जिन खेतों में झुलसा बीमारी नहीं हुई है, उन सभी को सलाह है कि मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक 0.2 प्रतिशत की दर से यानि दो ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। एक बार रोग के लक्षण दिखाई देने के बाद मैनकोजेब नामक देने का कोई असर नहीं होगा इसलिए जिन खेतों में बीमारी के लक्षण दिखने लगे हों उनमें साइमोइक्सेनील मैनकोजेब दवा की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसी प्रकार फेनोमेडोन मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर में घोलकर छिड़काव कर सकते है। मेटालैक्सिल एवं मैनकोजेब मिश्रित दवा की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है। एक हेक्टेयर में 800 से लेकर 1000 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होगी। छिड़काव करते समय पैकेट पर लिखे सभी निर्देशों का अक्षरशः पालन करें।