किसान कलौंजी की खेती करके कमा सकते है अच्छा मुनाफा, जानिए कैसे होती है कलौंजी की खेती
किसान कलौंजी की खेती करके कमा सकते है अच्छा मुनाफा, जानिए कैसे होती है कलौंजी की खेती
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Cultivation of Kalonji: किसानों ने कम मेहनत और कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाने के लिए औषधीय फसलों और मसालों की खेती शुरू कर दी है। यही फसलें अब किसानों की आय का मुख्य स्रोत बन रही हैं। इन्हीं फसलों में से एक है कलौंजी। 
कलौंजी को औषधीय फसल के रूप में उगाया जाता है। कलौंजी का प्रयोग बीज के रूप में किया जाता है, इसे अलग-अलग जगहों पर कई नामों से जाना जाता है। इसके बीज आकार में छोटे तथा दिखने में काले रंग के होते हैं। सौंफ के बीज का स्वाद हल्का तीखा होता है। इसका इस्तेमाल नान, ब्रेड, केक और अचार में खट्टा स्वाद लाने के लिए किया जाता है. कलौंजी देश के विभिन्न भागों में सफलतापूर्वक उगाई जाती है। इसे मुख्य रूप से इसके बीजों के लिए उगाया जाता है, जो अचार में मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है, इनसे तैयार बीज और तेल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं और इत्र उद्योग में किया जाता है।

कलौंजी की खेती करने का तरीका
कलौंजी की बुवाई अक्टूबर के शुरू से लेकर मध्य अक्टूबर तक की जा सकती है लेकिन अक्टूबर के अंत तक भी की जा सकती है। बुवाई के लिए बीज की मात्रा  7-8 किग्रा प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। बीज जनित रोग जड़ गलन की रोकथाम हेतु बीज को 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. की दर से केप्टान या थायरम फफूॅदनाशी से उपचारित करना चाहिए ।
कलौंजी की फसल एक ठण्डे जलवायु की फसल है। इसे मुख्यतः उत्तरी भारत मे सर्दी के मौसम में रबी में उगाया जाता है। इसकी बुवाई व बढ़वार के समय हल्की ठंडी तथा पकने के समय हल्की गरम जलवायु की जरुरत होती है। कलोंजी को जीवांश युक्त अच्छे जल निकास वाली सभी प्रकार की मिटटी में उगाया जा सकता है। दोमट व बलुई भूमि कलोंजी के फसल उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त है। उचित जल निकास प्रबन्ध द्वारा इस फसल को भारी भूमि में भी उगाया जा सकता है।

खेत की तैयारी
कलौंजी की फसल से अधिक उत्पादन के लिए खेत को जैविक रूप से तैयार करने की सलाह दी जाती है, ताकि कलौंजी के बीजों का गुणवत्तापूर्ण उत्पादन लिया जा सके. इसकी बुवाई से पहले खेत को गहरी जुताई कर खुला छोड़ दिया जाता है, ताकि सौरकरण हो सके।
खेत में अंतिम जुताई के पूर्व 10 से 15 क्विंटल अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कार्बनिक पदार्थ से भरपूर कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए।
इसके बाद जमीन पर पाटा लगाकर क्यारियां बना ली जाती हैं, ताकि बीज बोए जा सकें।
बोने से पहले बीजों का उपचार भी किया जाता है, ताकि मिट्टी की कमी से फसल पर बुरा असर न पड़े।
 
कलौंजी की बुवाई और देखभाल
कलौंजी की बुवाई के लिए दो विधियाँ अपनाई जाती हैं जिनमें एक पंक्ति विधि और दूसरी छिड़काव विधि है। जानकारों की मानें तो कलौंजी के बीजों को कतारों में लगाने से कृषि कार्य में मदद मिलती है. इस प्रकार खेती में निराई व खरपतवार नियंत्रण का कार्य भी आसान हो जाता है। बता दें कि कलौंजी के पौधों को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती है.
कलौंजी के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए बिजाई के 20 से 25 दिन बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें।
इसकी फसल में कुल दो से तीन निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है, जिससे अनावश्यक खरपतवारों को जड़ से उखाड़ा जा सके।

कलौंजी में कीट नियंत्रण
वैसे तो कलौंजी एक औषधीय फसल है, जिसमें कीट लगने की संभावना कम होती है, लेकिन इस फसल में बीज अंकुरण के समय कुछ कीट-रोगों का प्रकोप हो सकता है। इनमें से कुछ फसल में पानी जमने से पनपते हैं। इनके रोकथाम के लिए खेत में जल निकासी की व्यवस्था कर निराई-गुड़ाई करें तथा फसल पर केवल जैविक कीटनाशकों या फफूंदनाशकों का ही छिड़काव करें।

कलौंजी की कटाई
कलौंजी मध्यम अवधि की नकदी फसल है, जो रोपाई के 130 या 140 दिनों के बाद तैयार हो जाती है। शीतकाल में बुवाई के बाद कलौंजी की फसल से जड़ सहित पौधे उखड़ जाते हैं जो गर्मी तक तैयार हो जाती है।
इसके बाद कलौंजी के पौधों को धूप में सुखाया जाता है, ताकि इसके बीजों को सुखाकर निकाला जा सके.
बता दें कि पौधों को लकड़ी पर पीट कर उसके बीज या दाने निकाल लिए जाते हैं।
कलौंजी एक प्रकार का मसाला होता है। इसके उत्पादन में ज्यादा पानी, समय और पैसा खर्च नहीं होता है। एक बीघा में इसका उत्पादन करीब चार से पांच क्विंटल तक हो जाता है और कीमत प्रति क्विंटल करीब 10 से 18 हजार रुपए आती है।