अलसी की खेती, जानिए अलसी की उन्नत उत्पादन तकनीक के बारे में
अलसी की खेती, जानिए अलसी की उन्नत उत्पादन तकनीक के बारे में
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Linseed Farming in India: भारत में राई और सरसों के बाद अलसी रबी मौसम में उगाई जाने वाली मुख्य तिलहन फसल है। क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में क्रमशः तीसरा और चौथा स्थान है। भारत में, अलसी की खेती लगभग 3.84 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है, और उत्पादकता 1.54 लाख टन के साथ 525 किग्रा / हेक्टेयर है, जो दुनिया में कुल क्षेत्रफल और उत्पादन का 10.81 और 5.31 प्रतिशत है।

मध्यप्रदेश में अलसी की खेती (Linseed cultivation in Madhya Pradesh)
क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से मध्यप्रदेश का देश में प्रथम स्थान है, मध्यप्रदेश में अलसी की खेती 1.36 लाख हैक्टेयर में की जाती है, जिसमें 67,000 टन उत्पादन है, जबकि उत्पादकता 504 किग्रा प्रति हैक्टेयर है। मध्यप्रदेश में अलसी उत्पादक जिले बालाघाट, रीवा, सागर, दमोह, सिवनी, सीधी, सतना, छतरपुर, रायसेन, पन्ना, मण्डला आदि हैं। 

अलसी के तेल का प्रयोग (Linseed oil use)
अलसी के तेल के उत्पादन का 20 प्रतिशत भाग घरों में खाने के रूप में प्रयोग किया जाता है एवं 80 प्रतिशत भाग औद्योगिक संस्थानों में पेन्ट, वार्निष, लिनोनियम, लिखने तथा छपाई की स्याही बनाने में किया जाता है। 

नीचे बताये गये उत्पादन तकनीक को किसान भाई अपनाकर इसकी उपज को तीन गुना बना सकते हैं।

अनुकूल जलवायु
अलसी की फसल को ठंडे व शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है इसके उचित अंकुरण के लिये 25-30 सेल्सियस सेंटीग्रेट तथा बीज बनते समय 15-20 सेल्सियस सेंटीग्रेट तापमान होना चाहिये।

भूमि एवं खेत की तैयारी
अलसी की फसल के लिये काली, भारी एवं दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है धान के भारी खेत जिसमें नमी अधिक रहती है वहाँ भी अधिक समय तक संचित उत्तेरा पद्धति से अलसी की खेती की जा सकती है। अलसी के अच्छे अंकुरण के लिये खेत को अच्छा भुरभुरा तैयार करना चाहिये। खेत को 2-3 बार आड़ी एवं खड़ी जुताई करके उसमें पाटा लगाकर नमी को संरक्षित करना चाहिये। धान के खेतों में समय-समय पर खरपतवार निकालकर खेत को नीदा रहित करते हुये साफरखना चाहिये।

फसल प्रणाली
अलसी को मुख्य फसल के रूप में उगाने से मिलवा या अन्तरवर्तीय फसल की अपेक्षा अधिक आय होती है अन्तरवर्तीय फसल पद्धति के अन्तर्गत फसल पद्धति के अन्तर्गत अलसी के साथ 3:1 के अनुपात में चने, सरसों, मसूर को भी लगाकर अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। 

उन्नत किस्में
उन्नत प्रजाति - जवाहर अलसी 67 
अनुमोदित वर्ष - 2010
उपज (किग्रा/है.) - 1250-1300
विषेष गुणधर्म - सफेद फूल, असिंचित खेती के लिये उपयुक्त

उन्नत प्रजाति - जवाहर अलसी 73
अनुमोदित वर्ष - 2011
उपज (किग्रा/है.) -  1050-1100
विषेष गुणधर्म - नीला फूल, असिंचित खेती के लिये उपयुक्त

उन्नत प्रजाति - जवाहर अलसी 41
अनुमोदित वर्ष - 2013
उपज (किग्रा/है.) - 1600-1700
विषेष गुणधर्म - सफेद फूल, सिंचित खेती के लिये उपयुक्त

उन्नत प्रजाति - जवाहर अलसी 79
अनुमोदित वर्ष - 2016
उपज  (किग्रा/है.) - 1750-1800
विषेष गुणधर्म - नीला फूल, सिंचित खेती के लिये उपयुक्त

उन्नत प्रजाति -  जवाहर अलसी 66
अनुमोदित वर्ष - 2018
उपज  (किग्रा/है.) - 200-1400
विषेष गुणधर्म - नीला फूल, असिंचित खेती के लिये उपयुक्त

उन्नत प्रजाति - जवाहर अलसी 95
अनुमोदित वर्ष - 2018
उपज (किग्रा/है.) - 1085-1200
विषेष गुणधर्म - सफेद फूल, सिंचित खेती के लिये उपयुक्त

उन्नत प्रजाति - आर.सी.एल.-148
अनुमोदित वर्ष - 2018 
उपज (किग्रा/है.) - 1300-1400
विषेष गुणधर्म - नीला फूल, असिंचित खेती के लिये उपयुक्त

उन्नत प्रजाति -  जवाहर अलसी 93
अनुमोदित वर्ष - 2019
उपज (किग्रा/है.) - 1050-1150
विषेष गुणधर्म - सफेद फूल, सिंचित खेती के लिये उपयुक्त

बीजोउपचार
अलसी के बीज को मृदा जनित रोग से बचाव हेतु थारयम या कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करे व बीजोपचार के पश्च्यात राइजोबियम व पी.एस.बी कल्चर से 5-5 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें।

बीज दर बुवाई का समय व तरीका
असिंचित अवस्था दशा
बीजदर कि.ग्रा./हैक्टेयर - 30
बाने का समय - अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से द्वितीय सप्ताह
पौधे की दूरी - 25 सें.मी.

सिंचित अवस्था दशा
बीजदर कि.ग्रा./हैक्टेयर - 20
बाने का समय - अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह
पौधे की दूरी - 25 सें.मी.

उत्तेरा पद्धति दशा
बीजदर कि.ग्रा./हैक्टेयर - 35
बाने का समय - अक्टूबर के दूसरे से तीसरे सप्ताह तक
पौधे की दूरी - छिटक कर 

बीज की गहराई
अलसी के बीज को नमी के आधार पर भूमि में 3 सें.मी. की गहराई पर बुवाई करें। यदि भूमि में पर्याप्त नमी न हो तो उथली बुवाई लाभदायक होती है।

खाद एवं उर्वरक 
रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बुवाई के समय ही करें। गोबर की खाद उपलब्ध होने पर अंतिम वखरनी के समय 4-5 टन प्रति हैक्टेयर खेत में मिला दे। असिंचित अवस्था में 30:15:0 किलोग्राम नत्रजन, स्फुर व पोटाष प्रति हैक्टेयर सम्पूर्ण खाद बुवाई के समय में ही खेत में डालें। सिंचित अवस्था में 70:30:0 किलोग्राम नत्रजन, स्फुर, पोटाप प्रति हैक्टेयर की दर से उपयोग करें। नत्रजन की 2/3 मात्रा व स्फुर, पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय दें तथा नत्रजन की शेष 1/3 मात्रा को पहली सिंचाई के समय दें। एवं उत्तेरा पद्धति में 20 किलो नत्रजन अलसी की फसल में दें।

खरपतवार नियंत्रण
अलसी की फसल को बुवाई से 30-35 दिन तक खरपवारों से मुक्त रखना चाहिये। फसलों को नींदा रहित रखने के लिये बुवाई के 15-20 दिन बाद पहली निंदाई गुड़ाई करनी चाहिये या रसायनिक खरपतवार नियंत्रण के अन्तर्गत पेंडामिथलीन खरपतवारनाशक की 3.33 लीटर मात्रा को 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर अलसी के बीज के अंकुरण पूर्व उपयोग करें।

प्रभावी नींदा नियंत्रण हेतु
मेटसल्फ्यूरॉन मिथाईल 4 ग्राम ए.आई के साथ क्लोडिनोफॅप 600 ग्राम प्रति 1.25 हैक्टेयर रकबे में 18-20 दिन की फसल में प्रयोग करें ।

सिंचाई 
अलसी की फसल में सिंचाई करने से उत्पादन में बृद्धि होती है अत: सिंचाई उपलब्ध होने पर पहली सिंचाई शाखा बनते समय (35 से 40 दिन) व दूसरी सिंचाई (65 से 70 दिन) कली बनने की अवस्था में करने से उत्पादन में वृद्धि होती है।

रोग व कीट नियंत्रण 
  • रतुआ रोग - कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिषत) या डाएथेन एम-45 (0.25 प्रतिषत) का छिड़काव करें। 
  • चूर्णी फफूंदी रोग - घुलनषील गंधक (0.3 प्रतिषत) व कैराथिन (0.25 प्रतिषत) का छिड़काव करें। 
  • आल्टरनेरिया अंगमारी -  थायरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित कर बुवाई करें। डाएथेन एम-45 का 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करें।
  • अलसी बड फ्लाई - फास्फोमिडान 1.25 लीटर/हैक्टेयर का छिड़काव करें।
फसल की कटाई एवं गहाई
जब पौधों की पत्तियां सूख जायें, बोडियां भूरी पड़ जायें व दाने चमकीले हो जायें तब फसल की कटाई कर लेना चाहिये वं बीज का सुरक्षित भण्डार करें।