उत्तर पश्चिम हिमालय क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली कम्पोस्ट खाद तैयार करने हेतु वायुजीवी गड्ढा विधि
उत्तर पश्चिम हिमालय क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली कम्पोस्ट खाद तैयार करने हेतु वायुजीवी गड्ढा विधि
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देश के उत्तर पश्चिम हिमालय क्षेत्रों में पशुओं के गोबर एवं पत्तियों के बिछावन को बाहर खुले खेतों में एक ढेर के रूप में इकट्ठा करने की प्रथा प्रचलित है। यह अवैज्ञानिक प्रथा, भा.कृ.अनु.प. भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान देहरादून द्वारा विकासखण्ड रायपुर स्थित गावों में चलाई जा रही कृषक प्रथम परियोजना के अन्तर्गत अंगीकृत कृषकों के यहां भी पाई गई। 
खुले में डाला गया गोबर व पशु बिछावन, यहां पर खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल करने का एक परम्परागत तरीका है। क्षेत्र के अधिकतर किसानों द्वारा मात्र इसी को उपयोग किया जाता है तथा फसल पोषण हेतु किसी रासायनिक खाद का भी उपयोग नहीं किया जाता है।
खुले से तैयार होने वाली खाद निम्न गुणवत्ता वाली होती है और उसमें पोषक तत्व भी कम होते है। इसके अतिरिक्त पशु अपशिष्ट खुले में डालने से पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ गंदगी भी फैलती है।

प्रक्रिया एवं प्रयोग
  • पांच पशुओं की औसत पशु संख्या हेतु 3.0 मीटर x 1.5 मीटर x 0.9 मीटर आकार के तीन पक्के गड्ढे निर्मित किये गये। निर्मित गड्ढों में हवा जाने हेतु दीवारों में लगभग 10 छिद्र भी छोड़े गये। 
  • अंकीकृत कृषकों द्वारा पाले जा रहे परम्परागत नस्ल के एक पशु द्वारा प्रतिदिन लगभग 10 किलोग्राम अपशिष्ट प्राप्त होता है। इस प्रकार एक कृषक के यहां गोबर व पशु बिछावन रोज गड्ढे में डालने से लगभग 40 दिन में एक गड्ढा भर जाता है।
  • सबसे पहले भरे गये गड्ढे में औसतन 100 से 120 दिनों में कम्पोस्ट तैयार हो जाती है। इस प्रकार जब तक किसान का तीसरा गड्ढा भरता है तब तक पहले गड्ढे में कम्पोस्ट तैयार हो जाती है जिसको किसान खेत में उपयोग कर अगले चक्र हेतु गड्ढा पुनः खाली कर लेता है।
  • कम्पोस्ट की गुणवत्ता में वृद्धि करने हेतु कृषक इन गड्ढों में कंचुए भी छोड़ सकते हैं, जिससे केंचुआ खाद भी तैयार की जा सकती है।
कम्पोस्टिंग विधि के लाभ
  • इस विधि से तैयार की गई उच्च गुणवत्ता वाली कम्पोस्ट में कार्बन : नाइट्रोजन का अनुपात 14.8:1 का पाया गया। उन्नत विधि से तैयार की गई कम्पोस्ट में अन्य पोषक तत्वों की उपलब्धता भी अच्छी पाई गई। 
  • इस विधि से तैयार की गई कम्पोस्ट में नाइट्रोजन 1.53 प्रतिशत पाया गया जबकि परम्परागत विधि वाली कम्पोस्ट में यह मात्र 0.98 प्रतिशत था। फास्फोरस व पोटाश भी इस विधि से तैयार की गई कम्पोस्ट में अधिक पाये गये।
  • इस विधि से तैयार की गई कम्पोस्ट में फसल के लिए पोषक तत्वों की उपलब्धता भी अच्छी होती है जिससे उत्पादकता में वृद्धि होती है।

लेखक
तृषा राय, बाँके बिहारी, उमाकांत मौर्य, सुरेश कुमार, राजेश विश्नोई, मदन सिंह एवं अनिल मलिक 
भा.कृ. अनु. प. भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान देहरादून-248 195 (उत्तराखण्ड)