सब्जियों में प्रमुख पोषक तत्वों की कमी से होने वाले विकार एवं लक्षण
सब्जियों में प्रमुख पोषक तत्वों की कमी से होने वाले विकार एवं लक्षण
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सब्जियाँ, भारत में व्यावसायिक रूप से उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण फसलें है। किसी भी फसल को स्वस्थ रहने के लिए 17 प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से किसी भी तत्व की कमी होने पर पौधे अपना जीवन स्वस्थ तरीके से पूर्ण नहीं कर पाते हैं। एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन एक ऐसी विधि है, जिनमें कार्बनिक, अकार्बनिक और जैविक स्रोत के मिश्रित उपयोग द्वारा पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध करवाये जाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य उर्वरा क्षमता को बनाए रखना, मिट्टी की भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणवत्ता को बढ़ाना है। इस प्रकार लंबे समय तक कृषि द्वारा अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।

प्रमुख पोषक तत्वों की कमी से होने वाले विकार एवं लक्षण 

नाइट्रोजन की कमी
नाइट्रोजन, सब्जी फसल की अत्यधिक पैदावार एवं गुणवत्ता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। इसका समुचित प्रयोग मृदा स्वास्थ्य के लिए अत्यंत जरूरी है। इस पोषक तत्व की कमी के लक्षण पुरानी पत्तियों पर पहले दिखाई देते हैं एवं पौधे की बढ़वार रुक जाती है और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं।


फॉस्फोरस की कमी
इस पोषक तत्व की कमी से पत्तियां छोटी रह जाती हैं और हरी व बैंगनी रंग की हो जाती हैं।


पोटाश की कमी
इस पोषक तत्व की कमी के लक्षण पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं। टमाटर तथा फ्रेंचबींस में इसकी कमी के कारण पत्तियां किनारे की तरफ से झुलसने लगती हैं। 




कैल्शियम की कमी
इस तत्व की कमी के लक्षण नई पत्तियों में पहले दिखाई देते हैं। पत्तियां छोटी व विकृत हो जाती हैं एवं किनारे कटे-फटे हो जाते हैं। टमाटर, तरबूज, शिमला मिर्च आदि में फल की नोक की सड़न इस तत्व की कमी के कारण होती है।




मैग्नीशियम की कमी
इसकी कमी से पत्तियों पर धारियां बन जाती हैं। पत्तियों की नसों के बीच की जगह पीली हो जाती है। टमाटर, फूलगोभी में हरिमाहीनता (क्लोरोलिस) इसी तत्व की कमी के कारण होती है। 

        टमाटर की पत्तियों में मैग्नेशियम की कमी के लक्षण

          मूली की पत्तियों में मैग्नेशियम की कमी के लक्षण


मैग्नीज की कमी
इसमें पत्तियों की अंतः शिराओं में छोटे-छोटे हरिमाहीन धब्बे विकसित हो जाते हैं। अधिक कमी होने पर धब्बे हल्के हरे रंग से बदलकर पीले या भूरे सफेद हो जाते हैं। मटर में मार्श स्पॉट विकार इसी तत्व की कमी से होता है।


बोरॉन की कमी
विभिन्न सब्जी फसल के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व है। इसकी कमी के लक्षण प्रायः नई निकलती हुई पत्तियों पर पाए जाते हैं। टमाटर में फलों का फटना, फूलगोभी में भूरापन, फूलगोभी एवं ब्रोकली में खोखला तना तथा गांठगोभी में तनों का फटना आदि इसी तत्व की कमी के कारण होता है।



       फूलगोभी में खोखला तना

            ब्रोकली में खोखला तना


पोषक तत्वों के मुख्य स्रोत एवं प्रबंधन अकार्बनिक या रासायनिक उर्वरक

इन खादों में एक या एक से अधिक पोषक तत्व होते हैं, जो कि पौधों को तुरंत उपलब्ध हो जाते हैं। अलग-अलग सब्जी फसलों में सही अनुपात में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बहुत जरूरी है। 

जैविक खाद (Organic manure)
जैविक पदार्थों में सड़ी-गली पत्तियां, टहनियां, फल-फूल तथा जानवरों के मलमूत्र इत्यादि होते हैं। सभी प्रकार के जैविक व्यर्थ-फसलों के अवशेष, खरपतवार भी जैविक पदार्थों के प्रकार हैं। इन पदार्थों को खेतों में डालने से पहले सड़ाया-गलाया जाता है, जिसे कम्पोस्टिंग कहते हैं। 

हरी खाद (Green manure)
हरी खाद के लिए कुछ खास फसलों को उगाया जाता है जिन्हें परिपक्व होने से पहले ही काट दिया जाता है तथा मृदा में मिलाया जाता है। यह 1-2 महीने में सड़कर जैविक खाद का रूप ले लेती हैं। इन फसलों में मुख्यतः वे फसलें आती हैं, जो वातावरण से नाइट्रोजन जैसे महत्वपूर्ण तत्व को वायुमंडल से लेकर अपनी जड़ों में स्थिर कर उसे खेत में उगाई जाने वाली अगली फसल को उपलब्ध करवाती हैं। उदाहरणतः घास. सैन्सवेनिया. सनहैम्प, ग्वार हरित खाद के लिए उपलब्ध करवाती हैं।

कॉन्सेंट्रेटेड जैविक पदार्थ
जैविक पदार्थों को कुछ विशेष प्रक्रियाओं से गुजरने पर कॉन्सेंट्रेटेड जैविक पदार्थ प्राप्त होता है, जिन्हें जैविक खादों के रूप में उपयोग किया जाता है। इनमें पोषक तत्वों की मात्रा साधारण जैविक पदार्थों से अधिक होती है। इस श्रेणी में मुख्यतः हड्डियों का चूर्ण, चोकर व खली शामिल हैं।

गोबर खाद
गली-सड़ी (लगभग 2 वर्ष पुरानी) गोबर की खाद की गुणवत्ता भी अच्छी होती है और उसमें पोषक तत्वों की उपलब्धता भी अधिक होती है। यह पशुओं के मलमूत्र तथा पोटाश 0.5-1.9 प्रतिशत की मात्रा में उपलब्ध उनके विघटन से तैयार की जाती है। इसमें नाइट्रोजन 0.5-1.5, फॉस्फोरस 0.4-0.8, होते हैं।

फलीदार दलहन फसल लगाना
फसल चक्र के रूप में दलहन समूह की सब्जियां लगाना एकीकृत पोषक तत्व प्रणाली का एक अभिन्न अंग है। इन पौधों की जड़ों में गांठें होती हैं, जिनमें राइजोबियम बैक्टीरिया होते हैं। इस जीवाणु में वातावरण से नाइट्रोजन स्थिर करने की क्षमता होती है, जिसे पौधे उपयोग करते हैं तथा अपनी नाइट्रोजन की जरूरत को पूरा करते हैं। 

जीवांश खादें
इस क्षेत्र में मुख्यत: नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फॉस्फोरस परिवर्तनशील सूक्ष्मजीव आते हैं। इन खादों में सूक्ष्मजीवों की सक्रिय एवं गुप्त कोशिकाएं होती हैं। 

राइजोबियम बैक्टीरिया
यह एक सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण सूक्ष्मजीव है जो पौधों की जड़ों में बनी विशेष गांठों में मौजूद होता है। यह जीवाणु मृदा में प्रति हैक्टर की दर से 25-30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन मिलाता है।

नील हरित शैवाल (बी.जी.ए.)
जैसे एनाबीना, नोस्टोक यह जीव प्रतिवर्ष 20-30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से नाइट्रोजन स्थिर करता है। 

एजोटोबैक्टर
यह सूक्ष्मजीव कई तरह के पादप वृद्धि हार्मोन, विटामिन तथा कवकरोधी पदार्थ भी स्रावित करता है।

एजोस्पाइरिलम
यह हर साल मृदा में 15-20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से नाइट्रोजन मिलाता है।

माइकोराइजा
माइकोराइजा के प्रयोग से पौधों में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है। इन पोषक तत्वों में मुख्यत: फॉस्फोरस, पोटाश तथा सूक्ष्म पोषक तत्व आते हैं। इसके साथ जड़ क्षेत्र के आसपास नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया की संख्या भी बढ़ जाती है।