दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर का महत्त्व
दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर का महत्त्व
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दलहनी फसलों में उपयोग की दृष्टि से जैव उर्वरकों में राइजोबियम जीवाणु, फॉस्फोरस को घुलनशील बनाने वाले सूक्ष्मजीव, पी.जी.पी. आर. एवं वर्मीकम्पोस्ट का अधिक महत्व है। राइजोबियम कल्चर द्वारा जड़ों में गांठ बनाने की क्रिया केवल दलहनी फसलों में होती है, जो लेग्यूमिनोसी फैमिली में आती है। विभिन्न फसलों में गांठ बनाने वाले जीवाणु भिन्न-भिन्न होते हैं। विभिन्न दलहनी फसलों में गांठ बनाने वाले जीवाणुओं को क्रॉस-इनाकुलेशन ग्रुप कहते हैं। जब जीवाणु अपने उपयुक्त पौधे की जड़ों के सम्पर्क में आता है, तो जड़ों द्वारा उत्सर्जित विशिष्ट पदार्थ से आकर्षित होकर यह जड़ों में गांठ बनाने की क्रिया प्रारम्भ करता है। पौधे की जड़ों में गांठों का बनना एक बहुत ही जटिल क्रिया है। जब जीवाणु पौधे के अन्दर प्रविष्ट कर जाता है, तब उसका व्यवहार एवं क्रिया पौधे द्वारा संचालित होने लगती है। 

राजोबियम कल्चर से बीजों को कैसे करे उपचारित
उपचार हेतु 500 मि.ली. स्वच्छ जल में 100 ग्राम गुड़ एवं 2 ग्राम गोंद को पानी में मिलाकर गर्म कर लेना चाहिए। इसके बाद इसे ठंडा करके एक पैकेट राजोबियम कल्चर / टीका (10 कि.ग्रा. बीज) मिलाकर अच्छी तरह बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए व उपचारित बीजों को छाया में ही सुखाना चाहिए। बुआई के समय बीज डालने से पहले सल्फर धूल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इसी प्रकार फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया से बीज का शोधन करना भी लाभदायक होता है। फॉस्फेट विलेयी सूक्ष्मजीव विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं का समूह है, जो स्थिर / अघुलनशील अकार्बनिक फॉस्फेट जैसे-ट्राइकैल्शियम, फेरिक एल्यूमिनियम. रॉक फॉस्फेट एवं हड्डी के चूर्ण को घुलनशील एवं उपलब्ध अवस्था में बदलते हैं। इस घुलनशील फॉस्फोरस का कुछ भाग वे स्वयं प्रयोग कर लेते हैं तथा शेष मात्रा को पौधों द्वारा उपयोग में ले लिया जाता है।