नीली क्रांति में नई लहर : बायोफ्लॉक मत्स्य पालन
नीली क्रांति में नई लहर : बायोफ्लॉक मत्स्य पालन
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पक्के टैंकों में लाभदायक जीवाणुओं द्वारा मछलियों के अपशिष्ट को प्रोटीन में परिवर्तित कर जल के वातावरण को मछलियों के लिये उपयुक्त बनाते हुए तथा मछलियों हेतु भोज्य पदार्थ में रूपांतरित कर, कम लागत, कम पानी एवं सीमित जगह में अधिक उत्पादन लेने की पद्धति को बायोफलॉक तकनीक कहते हैं। 

बायोफ्लॉक पद्धति के फायदे
1. कम लागत, सीमित जगह एवं अधिक उत्पादन।
2. अतिसीमित पानी का उपयोग।
3. अतिसीमित श्रमिक लागत एवं चोरी के भय से मुक्ति

आवश्यक संसाधन: सीमेंट टैंक/तारपोलिन टैंक, एइरेशन सिस्टम, विद्युत उपलब्धता, प्रोबायोटिक, मत्स्य बीज, मछली दाना एवं जल गुणवत्ता मापक किट इत्यादि ।

उत्पाद योग्य मछली प्रजातियां : पंगास, तिलापिया एवं कॉमन कार्प इत्यादि तथा अधिक मूल्य के मछली जैसे देशी मांगुर, सिंधी, कोई, टेंगना एवं पब्दा ।

बायोफ्लॉक पद्धति : इस पद्धति में 10 हजार लीटर से 50 हजार लीटर तक सीमेंटेड या तारपोलिन टैंकों को उपयोग में लिया जाता है। व्यावसायिक मछली पालन हेतु 20 से 30 हजार लीटर क्षमता वाले टैंक को सर्वोतम माना जाता है। इस पद्धति में पहले टैंकों के पानी में प्रोबायोटिक को एक्टिव करके डाला जाता है, उसके 7 से 8 दिन पश्चात् मछली बीजों का संचयन किया जाता है। संचयन हेतु अंगुलिकाई मत्स्य बीज उत्तम होती है, दाना के रूप में बाजार में उपलब्ध फलोटिंग फीड उपयोग में लाया जाता है। मछली दाना 3 से 5 प्रतिशत मछली के भार के अनुसार दिया जाता है। 6 से 7 माह में विक्रय योग्य मछली उत्पादन हो जाता है। इस दौरान निरतंर पानी की गुणवत्ता जैसे पानी का पी.एच., अमोनिया, नाइट्राईट लेवेल घुलित आक्सीजन, फ्लॉक की मात्रा आदि की जांच करनी चाहिए। 10 हजार लीटर क्षमता वाली टैंक से 2 से 2.50 क्विंटल तक मछली का उत्पादन लिया जा रहा है।

आर्थिक लाभ : इस पद्धति से 10 हजार लीटर क्षमता के टैंक (एक बार की लागत रू 32 हजार, पांच वर्ष हेतु) से लगभग सात माह (पालन लागत रू 24 हजार) में विक्रय योग्य 2 से 2.50 क्विंटल मछली (मूल्य 40 हजार) का उत्पादन कर अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। इस तरह वार्षिक शुद्ध लाभ रू 25 हजार एक टैंक से प्राप्त किया जा सकता है। यदि महंगी मछलियों का उत्पादन किया जाये तो यह लाभ 4–5 गुणा अधिक होगा।

प्रशिक्षण हेतु संपर्क : मध्य भारत में एक मात्र सरकारी संस्थान - कृषि विज्ञान केन्द्र, रायपुर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) द्वारा बायोफ्लॉक पद्धति से मछली उत्पादन पर कृषकों, नवयुवकों, महिला समूहों एवं कृषि के स्नातक छात्रों को विगत 2 वर्षों से प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं। इन दो वर्षो में सम्पन्न 13 प्रशिक्षणों में भारत के विभिन्न राज्यों एवं विदेश से कुल 520 प्रशिक्षणार्थियों की सक्रिय भागीदारी रही है। इस दौरान छत्तीसगढ़ से लगभग 270 प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है जिनमें से 73 प्रशिक्षणार्थियों ने बायोफ्लॉक मत्स्य पालन पद्धति को अपना कर लाभ प्राप्त किया है। प्रदेश के अन्य कृषि विज्ञान केन्द्रों में भी इस तकनीक का विस्तार किया जा रहा है जिससे उन केन्द्रों में भी प्रशिक्षण की व्यवस्था की जा सके।

स्त्रोत : कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (उन्नत कृषि मैगज़ीन)
डॉ. एस. सासमल एवं डॉ. गौमत राय
कृषि विज्ञान केन्द्र, रायपुर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)