गर्मी की जुताई से ठीक रहेगी मिट्टी की सेहत
गर्मी की जुताई से ठीक रहेगी मिट्टी की सेहत
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अच्छी पैदावार के लिए रबी फसल कटाई के तुरन्त बाद गहरी जुताई कर ग्रीष्म ऋतु में खेत को खाली रखना बहुत ही लाभदायक रहता है। ग्रीष्मकालीन जुताई अप्रेल से जून माह तक की जाती है। जहां तक हो सके किसान भाई रबी फसल कटने के तुरन्त बाद मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर दें। क्योंकि, खेत की मिट्टी में नमी संरक्षित होने के कारण बेलों और ट्रेक्टर को कम मेहनत करनी पड़ती है। इस जुताई से जो देले पड़ते हैं, वह धीरे-धीरे हवा और बरसात के पानी से टूटते रहते हैं। साथ ही, जुताई से मिट्टी की सतह पर पड़ी फसल अवशेष की पत्तियां, पौधों की जड़ें और खेत में उगे हुए खरपतवार आदि नीचे दब जाते है जो सड़ने के बाद खेत की मिट्टी में जीवाश्म / कार्बनिक खादों की मात्रा में बढ़ोतरी करते है। जिससे भूमि की उर्वरता स्तर और मृदा की भौतिक संरचना में सुधार होता है।

यह है लाभ
प्राकृतिक प्रभाव : ग्रीष्मकालीन जुताई करने से खेत के खुलने से प्रकृति की कुछ प्राकृतिक क्रियाएं भी सुचारू रूप से खेत की मिट्टी पर प्रभाव डालती है। वायु और सूर्य की किरणों का प्रकाश मिट्टी के खनिज पदार्थों को पौधों के भोजन बनाने में अधिक सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त खेत की मिट्टी के कणों की संरचना (बनावट) भी दानेदार हो जाती हैं, जिससे भूमि में वायु संचार और जल धारण क्षमता बढ़ जाती है।

कीट-रोग-वर नियंत्रण : इस गहरी जुताई से गर्मी में तेज धूप से खेत के नीचे की सतह पर पनप रहे सकती है। कीड़े-मकोड़े बीमारियों के जीवाणु खरपतवार के बीज आदि मिट्टी के ऊपर आने से खत्म हो जाते हैं। साथ ही, जिन स्थानों अथवा खेतों में गेहूं- जौ की फसल में निमेटोड का प्रकोप था, वहां पर इस रोग की गांठे जो मिट्टी के अन्दर होती है, वह जुताई करने से ऊपर आकर कड़ी धूप में मर जाती है। अतः ऐसे स्थानों पर गर्मी की जुताई करना आवश्यक होती है।

वर्ष पानी का संचय : बारानी खेती बरसात पर निर्भर करती है। अतः बारानी परिस्थितियों में वर्षा के का अधिकतम संचयन करने लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करना नितान्त आवश्यक है। अनुसंधानों से भी यह सिद्ध हो चुका है कि ग्रीष्मकालीन जुताई करने से 31.3 प्रतिशत बरसात का पानी खेत में संचय हो जाता है। जो खेत का पानी खेत में, कुण्ड का पानी कुण्ड में कहावत को चरितार्थ करती है। 

रुकता है मिट्टी का कटावा: ग्रीष्मकालीन जुताई करने से बरसात के पानी द्वारा खेत की मिट्टी के कटाव में भारी कमी होती अर्थात् अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया कि गर्मी की जुताई करने से भूमि के कटाव में 66.5 प्रतिशत तक की कमी आती है।

खेत में अधिकांश खरपतवारों को नष्ट करने के लिए जुताई करके मिट्टी को पलट देना बहुत अच्छा रहता है इससे बहुवर्षीय खरपतवार जैसे मौथा, दूब आदि आसानी से नष्ट किये जा सकते हैं। इससे खेत में उगे / खड़े खरपतवारों की जड़े और कायिक प्रजनन अंग भूमि की सतह पर आ जाते हैं जो सूर्य की किरणों, तापमान और गर्म हवाओं के सम्पर्क में आकर नष्ट हो जाते हैं।

कीट नियंत्रण : ग्रीष्मकालीन जुताई से हानिकारक कीटों का सफलतापूर्वक नियंत्रण किया जा सकता है। जुताई से कीड़ों के अण्डे, प्यूपा तथा इसकी इल्लियां, भूमि की सतह पर आ जाते हैं, जहां वह चिड़ियों द्वारा खा लिये जाते हैं अथवा कड़ी धूप में नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार फसलों में लगने वाले कुछ फफूंदनाशक और जीवाणु रोगों का प्रकोप कम हो जाता है।

कार्बनिक पदार्थ : ग्रीष्मकालीन जुताई से गोबर की खाद और दूसरे कार्बनिक पदार्थ भूमि में अच्छी तरह मिल जाते है जिससे पोषक तत्व शीघ्र ही फसलों को उपलब्ध हो जाते हैं। ग्रीष्मकालीन जुताई से खेत तैयार मिलता है जिससे प्रथम बरसात के साथ ही फसल की समय पर बुवाई की जा सकती हैं।

डॉ. रतनलाल सोलंकी, एमपीयूएटी, उदयपुर