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मक्का की खेती में अगस्त में किये जाने वाले महत्वपूर्ण कृषि कार्य
मक्का की खेती में अगस्त में किये जाने वाले महत्वपूर्ण कृषि कार्य

Maize Farming: मक्का में बुआई के 40-45 दिनों बाद 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से दूसरी व अंतिम टॉप ड्रेसिंग नमी होने पर नर मंजरी निकलते समय करनी चाहिए। मक्का में बाली बनते समय पर्याप्त नमी होनी चाहिए अन्यथा उपज 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। सामान्यतः यदि वर्षा की कमी हो तो क्रांतिक अवस्थाओं (घुटने तक की ऊंचाई वाली अवस्था, झंडे निकलने वाली अवस्था, दाना बनने की अवस्था) पर एक या दो सिंचाइयां कर देनी चाहिए जिससे उपज में गिरावट न हो। सिंचाई के साथ-साथ मक्का में जल निकास भी अत्यंत आवश्यक है। यदि मक्का मेड़ों पर बोई गई है तो खेत के अंत में जल निकास का समुचित प्रबंध होना चाहिए।
  • खरीफ के मौसम में खरपतवारों का प्रकोप ज्यादा होता है जिससे 50-60 प्रतिशत उपज में गिरावट आ सकती है। इसलिए मक्का के खेत को शुरु के 45 दिनों तक खरपतवारमुक्त रखना चाहिए। खरपतवारों के प्रबंधन के लिए 2-3 निराई-गुड़ाई खुरपी या हैंड-हो या हस्तचालित अथवा शक्तिचालित यंत्रों से खरपतवारों को नष्ट करने से मृदा में पड़ने वाली पपड़ी भी टूट जाती है। और पौधों की जड़ों को अच्छे वायु संचार से बढ़वार में मदद मिलती है।
  • खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए एट्राजिन की 1-1.5 कि.ग्रा./हैक्टर मात्रा का छिड़काव करके भी नियंत्रित किया जा सकता है। एट्राजिन की आवश्यक मात्रा को 800 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के बाद परंतु जमाव से पहले छिड़क देना चाहिए।
  • मक्का में मेडिस, टर्सिकम लीफ ब्लाइट डाउनी मिल्ड्यू इत्यादि रोग कभी-कभी दिखाई देते हैं। इन रोगों का प्रकोप देर से बोई जाने वाली फसल में ज्यादा पाया जाता है। जीवाणु जनित तना विगलन तथा पाइथियम वृत गलन रोग पौधों में पुष्पन के दौरान जल भराव की स्थिति में पाया जाता है। इसी प्रकार फसल की बढ़वार के समय पुष्पणोत्तर अवस्था में कमी के दबाव के कारण पुष्पणोत्तर वृत गलन के लक्षण भी दिखाई देते हैं। इस प्रकार की रोगों को रोकने के लिए रोगरोधी प्रजातियों की समय से बुआई करनी चाहिए, जबकि मेडिस, टर्सिकम लीफ ब्लाइट की रोकथाम के लिए 2.5 कि.ग्रा./हैक्टर जिनेब को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। यदि रोग की रोकथाम न हो तो 10-15 दिनों के अंतराल पर दूसरा छिड़काव अवश्य कर देना चाहिए। मक्का की फसल में पत्ती लपेटक कीट की रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफॉस 1.0 मि.ली पानी में मिलाकर या इमामेक्टिन बेंजोएट 1.0 मि.ली. लीटर दवा 4.0 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • मंडुवा, झंगोरा, रामदाना, कुटू, मंडुवा की फसल में तनाछेदक कीट का प्रकोप होता है। इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. की 20 मि.ली. दवा प्रति नाली की दर से 15-20 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
  • तनाछेदक कीट से बचाव के लिए कार्बोरिल का 2.5 मि.ली. लीटर दवा का घोल प्रति लीटर 500 लीटर पानी में मिलाकर या लिन्डेन 6 प्रतिशत ग्रेन्यूल अथवा कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत ग्रेन्यूल 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें। 8 ट्राइकोकार्ड प्रति हैक्टर लगाने से भी इसकी रोकथाम की जा सकती है।