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पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने जारी की साप्ताहिक मौसम पर आधारित कृषि सम्बंधी सलाह
पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने जारी की साप्ताहिक मौसम पर आधारित कृषि सम्बंधी सलाह

कृषि परामर्श सेवाओं, कृषि भौतिकी संभाग के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार किसानों को निम्न कृषि कार्य करने की सलाह दी जाती है।
  • किसानों को सलाह है कि खरीफ फ़सलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाऐ। क्योकि इससे वातावरण में प्रदूषण ज़्यादा होता है, जिससे स्वास्थय सम्बन्धी बीमारियों की संभावना बढ जाती है। इससे उत्पन्न धुंध के कारण सूर्य की किरणे फसलों तक कम पहुचती है, जिससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण और वाष्पोत्सर्जन की प्रकिया प्रभावित होती है जिससे भोजन बनाने में कमी आती है इस कारण फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता प्रभावित होती है। किसानों को सलाह है कि धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें इससे मृदा की उर्वकता बढ़ती है, साथ ही यह पलवार का भी काम करती है। जिससे मृदा से नमी का वाष्पोत्सर्जन कम होता है। नमी मृदा में संरक्षित रहती है। धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग @ 4 कैप्सूल/हेक्टेयर किया जा सकता है।
  • किसानों को यह सलाह है कि वे मौसम को ध्यान में रखते हुए, गेंहू की बुवाई हेतू तैयार खेतों में पलेवा तथा उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करें। पलेवे के बाद यदि खेत में ओट आ गई हो तो उसमें गेहूँ की बुवाई कर सकते है। उन्नत प्रजातियाँ- सिंचित परिस्थिति- (एच. डी. 3226), (एच. डी. 18), (एच. डी. 3086), (एच. डी. 2967)। बीज की मात्रा 100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर। जिन खेतों में दीमक का प्रकोप हो तो क्लोरपाईरिफाँस (20 ईसी) @ 5 लीटर प्रति हैक्टर की दर से पलेवा के साथ दें। नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 120, 50 व 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर होनी चाहिये।
  • तापमान को ध्यान में रखते हुए किसान सरसों की बुवाई में ओर अधिक देरी न करें। मिट्टी जांच के बाद यदि गंधक की कमी हो तो 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से अंतिम जुताई पर डालें। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। उन्नत किस्में- पूसा विजय, पूसा सरसों-29, पूसा सरसों-30, पूसा सरसों-31। बीज दर– 5-2.0 कि.ग्रा. प्रति एकड। बुवाई से पहले खेत में नमी के स्तर को अवश्य ज्ञात कर ले ताकि अंकुरण प्रभावित न हो। बुवाई से पहले बीजों को केप्टान @ 2.5 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें। बुवाई कतारों में करना अधिक लाभकारी रहता है। कम फैलने वाली किस्मों की बुवाई 30 सें. मी. और अधिक फैलने वाली किस्मों की बुवाई 45-50 सें.मी. दूरी पर बनी पंक्तियों में करें। विरलीकरण द्वारा पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सें.मी. कर ले।
  • समय पर बोई गई सरसों की फ़सल में बगराडा कीट (पेटेंड बग) की निरंतर निगरानी करते रहें तथा फ़सल में विरलीकरण तथा खरपतवार नियंत्रण का कार्य करें।
  • वर्तमान मौसम आलू की बुवाई के लिए अनुकूल है अतः किसान आवश्यकतानुसार आलू की किस्मों की बुवाई कर सकते हैं। उन्नत किस्में- कुफरी बादशाह, कुफरी ज्योति (कम अवधि वाली किस्म), कुफरी अलंकार, कुफरी चंद्रमुखी। कतारों से कतारों तथा पौध से पौध की दूरी 45 ´ 20 या 60 ´ 15 से.मी. रखें। बुवाई से पूर्व बीजों को कार्बंडिजम @ 0 ग्रा. प्रति लीटर घोल में प्रति कि.ग्रा. बीज पाँच मिनट भिगोकर रखें। उसके उपरांत बुवाई से पूर्व किसी छायादार जगह पर सूखने के लिए रखें।
  • तापमान को ध्यान में रखते हुए मटर की बुवाई में ओर अधिक देरी न करें अन्यथा फसल की उपज में कमी होगी तथा कीड़ों का प्रकोप अधिक हो सकता है। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। उन्नत किस्में -पूसा प्रगति, आर्किल। बीजों को कवकनाशी केप्टान या थायरम @ 2.0 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से मिलाकर उपचार करें उसके बाद फसल विशेष राईजोबियम का टीका अवश्य लगायें। गुड़ को पानी में उबालकर ठंडा कर ले और राईजोबियम को बीज के साथ मिलाकर उपचारित करके सूखने के लिए किसी छायेदार स्थान में रख दें तथा अगले दिन बुवाई करें।
  • तापमान को ध्यान में रखते हुए किसान इस समय लहसुन की बुवाई कर सकते है। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। उन्नत किस्में –जी-1, जी-41, जी-50, जी-282. खेत में देसी खाद और फास्फोरस उर्वरक अवश्य डालें।
  • तापमान को ध्यान में रखते हुए किसान चने की बुवाई इस सप्ताह कर सकते है। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। छोटी एवं मध्यम आकार के दाने वाली किस्मों के लिए 60–80 कि.ग्रा. तथा बड़े दाने वाली किस्मों के लिए 80–100 कि.ग्रा. प्रति है. बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई 30–35 सें. मी. दूर कतारों में करनी चाहिए। प्रमुख काबुली किस्में- पूसा 267, पूसा 1003, पूसा चमत्कार (बी.जी. 1053); देशी किस्में – सी. 235, पूसा 246, पी.बी.जी. 1, पूसा 372। बुवाई से पूर्व बीजों को राइजोबियम और पी.एस.बी. के टीकों (कल्चर) से अवश्य उपचार करें।
  • इस मौसम में किसान गाजर की बुवाई मेड़ो पर कर सकते है। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। उन्नत किस्में- पूसा रूधिरा। बीज दर 4.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़। बुवाई से पूर्व बीज को केप्टान @ 2 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें तथा खेत में देसी खाद, पोटाश और फाँस्फोरस उर्वरक अवश्य डालें। गाजर की बुवाई मशीन द्वारा करने से बीज 1.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है जिससे बीज की बचत तथा उत्पाद की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।
  • इस मौसम में किसान इस समय सरसों साग- पूसा साग-1, मूली- जापानी व्हाईट, हिल क्वीन, पूसा मृदुला (फ्रेच मूली); पालक- आल ग्रीन,पूसा भारती; शलगम- पूसा स्वेती या स्थानीय लाल किस्म; बथुआ- पूसा बथुआ-1; मेथी-पूसा कसुरी; गांठ गोभी-व्हाईट वियना,पर्पल वियना तथा धनिया- पंत हरितमा या संकर किस्मों की बुवाई मेड़ों (उथली क्यारियों) पर करें। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें।
  • यह समय ब्रोकली, पछेती फूलगोभी, बन्दगोभी तथा टमाटर की पौधशाला तैयार करने के लिए उपयुक्त है। पौधशाला भूमि से उठी हुई क्यारियों पर ही बनायें। जिन किसानो की पौधशाला तैयार है, वह मौसस को ध्यान में रखते हुये पौध की रोपाई ऊंची मेड़ों पर करें।
  • मिर्च तथा टमाटर के खेतों में विषाणु रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर जमीन में गाड़ दें। यदि प्रकोप अधिक है तो इमिडाक्लोप्रिड़ @ 0.3 मि.ली. प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।
  • इस मौसम में गैदें की तैयार पौध की मेड़ों पर रोपाई करें।किसान ग्लेडिओलस की बुवाई भी इस समय कर सकते है।
सलाहकार समिति के वैज्ञानिक   
डा. अनन्ता वशिष्ठ (नोड़ल अधिकारी, कृषि भौतिकी संभाग)
डा.प्र. कृष्णन (अध्यक्ष, कृषि भौतिकी संभाग)  
डा.देब कुमार दास (प्रधान वैज्ञानिक, कृषि भौतिकी संभाग)
डा.बी.एस.तोमर (संयुक्त निदेशक प्रसार (कार्यवाहक) एवं अध्यक्ष, सब्जी विज्ञान संभाग)
डा.जे.पी.एस. ड़बास (प्रधान वैज्ञानिक व इंचार्ज, केटेट)
डा.दिनेश कुमार (प्रधान वैज्ञानिक, सस्य विज्ञान संभाग)
डा.पी.सिन्हा (प्रधान वैज्ञानिक, पादप रोग संभाग)
डा. सचिन सुरेश सुरोशे (प्रधान वैज्ञानिक, कीट विज्ञान संभाग)