सितम्बर माह के प्रमुख कृषि कार्य, धान की फसल की करें देखभाल

सितंबर को भाद्रपद अश्विन भी कहते हैं। खरीफ फसलों में धान्य फसले (धान, मक्का, ज्वार, बाजरा) दलहनी फसलें (अरहर, मूंग, उड़द, लोबिया), तिलहनी फसलें (मूंगफली, सोयाबीन, तिल, अरंडी), नगदी (कपास एवं गन्ना एवं चारे वाली फसले (ज्वार, बाजरा, बहुवर्षीय गिनी, नेपियर, सिटेरिया) आदि पकने की अवस्था में होती हैं। तोरिया फसल की बुआई का समय होता है। इसके साथ ही फसलों में कीटों तथा रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। यह समय सब्जियां बागवानी एवं पुष्प उत्पादन के लिए काफी महत्वपूर्ण है। शोध परिणामों से ज्ञात हुआ है कि अधिक उपज देने वाली प्रजातियों की उत्तम गुणवत्ता का स्वस्थ बीज, संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन, समुचित जल एवं खरपतवार प्रबंधन कोट व रोग प्रबंधन, उपयुक्त समय पर फसल की कटाई एवं महाई तथा उपयुक्त भंडारण इत्यादि) अपनाकर किसान भाई लागत कम करके उत्पादन में बढ़ोतरी कर सकते हैं प्रस्तुत लेख में इन सभी बातों पर विस्तृत जानकारी दी गई है, आशा है किसान भाइयों को लाभ मिलेगा।
बालियां तथा फूल निकलने के समय खेत में पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार सिचाई करें। अनुसंधान के परिणामों ने यह साबित कर दिया है कि एक सिंचाई से दूसरी सिंचाई में अंतराल रखें यानी खेत का पानी सूखने के 2-3 दिनों बाद दूसरी सिंचाई करें।
धान में नाइट्रोजन की दूसरी व अन्तिम मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में 50-55 दिनों के बाद अर्थात बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था में अधिक उपज देने वाली उन्नतशील प्रजातियों के लिए 30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन तथा सुगंधित प्रजातियों के लिए 15 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें।
पत्ती का जीवाणु झुलसा रोगः यह रोग जीवाणु द्वारा होता है। पौधों की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक यह रोग कभी भी हो सकता है। इस रोग में पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं। सूखे पीले पत्तों के साथ-साथ राख के रंग के चकत्ते भी दिखाई देते हैं। संक्रमण की उग्र अवस्था में पूरी पत्ती सूख जाती है। रोकथाम के लिए:
1. उपचारित बीज का प्रयोग करें। इसके लिए 2.5 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 25 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड प्रति 10 लीटर पानी के घोल में बीज को 12 घंटे तक डुबाए।
2. नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग कम कर दें।
3. जिस खेत में रोग लगा हो उसका पानी दूसरे खेत में न जाने दें। इससे रोग फैलने की आशंका होती है।
4. खेत में रोग को फैलने से रोकने के लिए खेत से समुचित जल निकास की व्यवस्था की जाए तो रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
5. रोग की रोकथाम के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसीन-100 और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से तीन-चार बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव रोग प्रकट होने पर तथा उसके पश्चात आवश्यकतानुसार 10 दिनों के अन्तराल पर करें। रोग सहिष्णु किस्में जैसे पन्त धान-4, पन्त धान-12. रत्ना. गोबिन्द व मनहर आदि का प्रयोग करना चाहिए।
धान की फसल के पकते समय नसवार जैसे दाने धान के दानों के साथ लग जाते हैं। इससे फसल की उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस रोग को 'फाल्स स्मट' के नाम से जाना जाता है। रोगग्रस्त दाने आकार में सामान्य दानों से दोगुने या 5-6 गुना होते हैं। रोग को कम करने के लिए 500 ग्राम मैंन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
भूरा धब्बा नामक रोग की रोकथाम के लिए जिंक मैग्नीज कार्बोनेट 75 प्रतिशत की 2 कि.ग्रा. मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर/हैक्टर में छिड़काव करें।
गंधीबग का आक्रमण होने पर धान के खेत से दुर्गंध आती है। इसके वयस्क एवं शिशु कीट दोनों दूधिया अवस्था में दानों से रस चूसकर उन्हें खोखला कर देते हैं तथा उन पर काले धब्बे बन जाते हैं। गंधीबग के नियंत्रण के लिए मैलाथियान धूल 5 डी / 1-5 ग्राम प्रति हैक्टर या एफीसेट 75 एस.पी. /1-5 ग्राम प्रति लीटर पानी या डी.डी.वी. पी. 76 ई.सी./1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या क्यूनालफॉस 25 ई.सी. / 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।