विशेष सलाह: चने की उन्नत खेती, जानिए खेत की तैयारी, बुवाई का सही समय, तरीका और बीजोपचार के बारे में

भूमि एवं खेत की तैयारी
हल्की दोमट से मटियार भूमि चने के लिए सर्वोत्तम रहती है किन्तु समुचित जल निकास का प्रबंध होने पर भारी भूमियों में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। काबुली चने के लिये अधिक उपजाऊ भूमि कि आवश्कयता पड़ती है। जड़ ग्रंथियों के उत्तम विकास हेतु मृदा में पर्याप्त वायु-संचार का होना अति आवश्यक है अत: यह ढेलेदार खेत को पसंद करता है। रफ सीडबेड तैयार करने हेतु एक जुताई मिट्टी पलट हल से व एक से दो जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से पर्याप्त रहती है।
बुआई समय
उत्तरी भारत -असिंचित: अक्टूबर के द्वितीय पखवाड़े, सिंचित: नवम्बर के प्रथम पखवाड़े (मध्य एवं दक्षिण भारत-अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े,) सिंचित: अक्टूबर के द्वितीय पखवाड़े से नवम्बर के प्रथम पखवाड़ा।
बीज की मात्रा
छोटे दाने वाली प्रजातियों के लिए 50-60 कि.ग्रा./हे. तथा बड़े दानों वाली प्रजातियों के लिए 100 कि.ग्रा. बीज दर व पिछेती बुवाई के लिए 90-100 कि.ग्रा./हे. एवं काबुली किस्मों के लिये 100 से 125 किग्रा./हे. पर्याप्त रहती है।
बुआई विधि
अधिक उपज लेने हेतु बोआई कतारों में ही 30 से.मी. की दूरी पर व देर से 25 से.मी. की दूरी पर सीड ड्रिल द्वारा या हल के पीछे चोंगा बांधकर 8-10 से.मी. की गहराई पर करें।
दूरी
सामयिक बुआई-30 से.मी. &10 से.मी.
पिछेती बुआई – 25 से.मी.&10 से.मी.
सिंचित क्षेत्रों में – 45 से.मी. &10 से.मी.
अन्तरवर्तीय फसल प्रणाली
चने की खेती अंतरवर्तीय के रूप में निम्न फसलों के साथ करने से अधिक उत्पादन के परिणाम प्राप्त हुए हैं।
6 लाईन चना + 4 लाईन गेहूं
6 लाईन चना + 2 लाईन सरसों
4 लाईन चना + 2 लाईन जौ
4 लाईन चना + 2 लाईन अलसी
प्रयोग द्वारा चना + गेहूं फसल प्रणाली सबसे अधिक लाभकारी सिद्ध हुआ है।
बीजोपचार
रोग नियंत्रण हेतु: उकठा एवं जड़ सडऩ रोग से फसल के बचाव हेतु 2 ग्राम थायरम + 1 ग्राम कार्बेंडाजिम के मिश्रण से प्रति किलो बीज या वीटावैक्स (कार्बोक्सिन) 2 ग्राम/किलो से उपचारित करें। कीट नियंत्रण हेतु थायोमेथोक्सम 70 डब्ल्यू. पी. 3 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करें।
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