सियांग ज़िला (Siang district) भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। इसका नाम ब्रह्मपुत्र नदी पर रखा गया है, जिसका स्थानीय नाम सियांग नदी है। ज़िले का गठन नवम्बर 2015 में पूर्व सियांग ज़िले और पश्चिम सियांग ज़िले के कुछ क्षेत्रों को सम्मिलित कर के करा गया।

आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण सूक्ष्म इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना का आरंभ किया गया है। इस योजना के अंतर्गत असंगठित क्षेत्र के इकाईयों को एकत्र कर उन्हें आर्थिक और विपणन की दृष्टि से मजबूत किया जाएगा। 

बडी इलायची को किया गया चयनित
एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत जिले को खाद्य सामग्री में बडी इलायची के लिए चयनित किया गया है। जिसकी यूनिट लगाने पर मार्केटिग, पैकेजिग, फाइनेंशियल मदद, ब्रांडिग की मदद इस योजना के अंतर्गत किसानों को मिलेगी।

बड़ी इलायची (Amomum Subulatum Roxb), एक बारहमासी शाकाहारी मसाला है जो Zingiberaceae परिवार से संबंधित है। यह फसल अरुणाचल प्रदेश के अंजॉ जिले के निवासियों के लिए जीवन रेखा है, जो चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को छूते हुए देश के सबसे पूर्वी कोने में स्थित है। जिले को अर्ध सदाबहार जंगलों और आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय जलवायु के साथ बड़ी इलायची की खेती के लिए एक आदर्श आवास के रूप में चुना गया है। यह ऊपरी सियांग, पूर्वी सियांग, ऊपरी सुबनसिरी, निचली सुबनसिरी और अरुणाचल प्रदेश के अन्य पहाड़ी भागों में भी व्यापक रूप से उगाया जाता है। यह छाया से प्यार करने वाला पौधा (Sciophyte) है जो 900-2000 amsl की ऊंचाई पर उगाया जाता है और 200 दिनों तक 3000-3500 mm/वर्ष वर्षा होती है। पौधा एक बारहमासी जड़ी बूटी है जिसमें पत्तेदार अंकुर के साथ भूमिगत प्रकंद होते हैं। तना एक छद्म तना होता है जिसे टिलर कहा जाता है। पुष्पक्रम स्पाइक है। आमतौर पर एक स्पाइक में 30 से 40 फूल देखे जाते हैं। फूल पीले, उभयलिंगी, जाइगोमॉर्फिक और भौंरा मधुमक्खियों द्वारा परागित होते हैं। एक लेबेलम के साथ तीन पंखुड़ियाँ होती हैं जो मुख्य रूप से परागण के लिए कीड़ों को आकर्षित करने के लिए होती हैं। एंथेसिस सुबह के घंटों में होता है। अंडाशय कुल्हाड़ी अपरा, कलंक कीप के आकार में बीजांड के साथ नीचा है; फल बीज के साथ एक कैप्सूल, ऐचिनेटेड, मैरून रंग का होता है जो अपरिपक्व अवस्था में सफेद और परिपक्व अवस्था में गहरे भूरे से काले रंग के होते हैं।

उपयोग:
बड़ी इलायची का उपयोग ज्यादातर पाक उद्देश्यों के लिए मसाले के रूप में और कई आयुर्वेदिक तैयारियों में भी किया जाता है। इसमें 2-3% आवश्यक तेल होते हैं, इसमें कार्नेटिव, पेट, मूत्रवर्धक और हृदय उत्तेजक गुण होते हैं और यह गले और सांस की परेशानी के लिए भी एक उपाय है। यह एक उच्च मूल्य, कम मात्रा और गैर-नाशयोग्य मसाला है।

रोपण:
मानसून के आगमन के दौरान अप्रैल से जुलाई तक रोपण किया जाता है। रोपण इकाई के रूप में 2-3 अपरिपक्व टिलर/वनस्पति कलियों के साथ एक परिपक्व टिलर का उपयोग किया जाता है। ढलान वाले क्षेत्रों में, बड़े इलायची चूसने वाले को 45 सेमी (1½ फीट) चौड़ाई और 30 सेमी (1 फीट) गहराई की खाइयों में सुविधाजनक लंबाई के साथ और खेत की ढलानों में रोपण करना चाहिए। गड्ढों के केंद्र से थोड़ी सी मिट्टी को खुरचकर और कॉलर ज़ोन तक रोपते हुए चूसक/बीज लगाए जाते हैं। गहरी बुवाई से बचना चाहिए। भारी बारिश और हवा से बचने के लिए स्टैकिंग की आवश्यकता होती है और चिलचिलाती धूप से बचाने के लिए पौधे के आधार पर मल्चिंग की जाती है। 4.5 से 5.5 पीएच के साथ गहरी, दोमट बनावट और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।

बड़ी इलायची के सुखाये हुए फल और बीज भारतीय तथा अन्य देशों के व्यंजनों में मसाले के रूप में इस्तेमाल की जाती है। इसे 'काली इलायची', 'भूरी इलायची', 'लाल इलायची', 'नेपाली इलायची' या 'बंगाल इलायची' भी कहते हैं। इसके बीजों में से कपूर की तरह की खुशबू आती है और थोड़ा धूंये का सा स्वाद आता है जो उसके सुखाने के तरीके से आता है।

बड़ी इलायची का नाम संस्कृत में एला, काता इत्यादि, मराठी में वेलदोड़े, गुजराती में मोटी एलची तथा लैटिन में ऐमोमम कार्डामोमम है।

इसके वृक्ष से पाँच फुट तक ऊँचे भारत तथा नेपाल के पहाड़ी प्रदेशों में होते हैं। फल तिकोने, गहरे कत्थई रंग के और लगभग आधा इंच लंबे तथा बीज छोटी इलायची से कुछ बड़े होते हैं।

आयुर्वेद तथा यूनानी उपचार में इसके बीजों के लगभग वे ही गुण कहे गए हैं जो छोटी इलायची के बीजों के। परंतु बड़ी इलायची छोटी से कम स्वादिष्ट होती है।

बड़ी इलायची या लार्ज कार्डेमम को मसाले की रानी कहा जाता है। इसका उपयोग भोजन का स्वाद बढाने के लिए किया जाता है लेकिन इसमें औषधिय गुण भी होते है। बड़ी इलायची से बनने वाली दवाईयों का उपयोग पेट दर्द को ठीक करने के लिए , वात , कफ , पित्त , अपच , अजीर्ण , रक्त और मूत्र आदि रोगों को ठीक करने के लिए  किया जाता है. इसकी खेती सिक्किम , पश्चिमी बंगाल , दार्जलिंग , और भारत के उत्तर – पूर्वी भाग में अधिक की जाती है। बड़ी इलायची  भारत के उत्तर – पूर्वी भाग में प्राकृतिक रूप में पाई जाती है। इसके आलावा नेपाल , भूटान और चीन जैसे देश में भी इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

समुद्र तट से 600 - 1500 मीटर तक की ऊंचाई वाले नमी व छाया दार स्थान जहां पर सिंचाई की सुविधा हो बडी इलायची की खेती की जा सकती है। पूर्वी व उत्तरीय ढलान वाले स्थान जो हिमालय के समीप हैं इन स्थानों में अधिक ऊंचाई पर बड़ी इलायची की खेती नहीं करनी चाहिए। दक्षिणी पश्चिमी ढलान वाले स्थान जो हिमालय से दूर है तथा जहां पर नमी व छाया है उन स्थानौ पर अधिक ऊंचाई पर भी बड़ी इलायची की खेती की जा सकती है। बड़ी इलायची की खेती के लिए 20 - 30°c का तापमान सबसे उपयुक्त होता है। जीवाँशयुक्त बलुई दोमट नम भूमि जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो सर्वोत्तम रहती है।