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ठाणे ज़िला भारत के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में स्थित महाराष्ट्र के 36 ज़िलों में से एक ज़िला है।

ज़िले का पूर्वी भाग पहाड़ी है, जहाँ प्रमुख रूप से जनजातीय समुदायों का निवास है। पश्चिमी हिस्से में इन पहाड़ियों ने नदी घाटी को विकसित किया है। ये घाटियां तटीय क्षेत्रों में मिल गयी हैं, जहां उगने वाले चावल और फलों के लिए घोलवाद विख्यात है।

ठाणे जिले में बाजरा आधारित उत्पाद (पहाड़ी बाजरा / रागी आदि) को एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चयनित किया गया। 

केंद्र सरकार भी मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर बल देना शुरू कर दी है। क्या होता है मोटा अनाज : बताया जाता है कि हमारे यहां दशकों से मोटे अनाज की खेती की परंपरा रही है। हमारे पूर्वज व किसान मोटे अनाज की उत्पादन पर निर्भर रहे है। कृषि वैज्ञानिक की माने तो देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में मोटे अनाज की हिस्सेदारी 40 फीसदी थी। मोटे अनाज के तौर पर ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, लघु धान्य या कुटकी, कांगनी और चीना जैसे अनाज शामिल है। इसे मोटा अनाज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं। धान और गेहूं की तुलना में मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की खपत बहुत कम होती है। इसकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती इसलिए ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर है।

बाजरा ऐसा अनाज है जिसकी जानकारी मानव को बहुत पहले है। यह अनाज आकार में छोटा और कठोर होता है जो कम सिंचाई सुविधा वाले सूखे इलाकों में उग सकता है। यह ऐसी मिट्टी में भी उग सकता है जो कम उपजाऊ और कम नमी वाली होती है। इसके पकने में कम समय लगता है और 65 दिनों में तैयार हो जाता है। यह बाजरे की फसल का ऐसा गुण है जो बहुत महत्वपूर्ण और दुनिया में घनी आबादी वाले इलाकों के लिए उपयुक्त है। 

ज्यादा नहीं, आज से सिर्फ 50 साल पहले हमारे खाने की परंपरा (Food Culture) बिल्कुल अलग थी। हम मोटा अनाज (Coarse Grains) खाने वाले लोग थे। मोटा अनाज मतलब- ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), सवां, कोदों और इसी तरह के मोटे अनाज. 60 के दशक में आई हरित क्रांति के दौरान हमने गेहूं और चावल को अपनी थाली में सजा लिया और मोटे अनाज को खुद से दूर कर दिया। जिस अनाज को हम साढ़े छह हजार साल से खा रहे थे, उससे हमने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ वापस लौट रही है।

आयुष मंत्रालय के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने भी मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर बल दिया। पीएम मोदी बोले, ‘आज हम देखते हैं कि जिस भोजन को हमने छोड़ दिया, उसको दुनिया ने अपनाना शुरू कर दिया. जौ, ज्वार, रागी, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, ऐसे अनेक अनाज कभी हमारे खान-पान का हिस्सा हुआ करते थे। लेकिन ये हमारी थालियों से गायब हो गए। अब इस पोषक आहार की पूरी दुनिया में डिमांड है।

ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज में पौष्टिकता की भरमार होती है। रागी भारतीय मूल का उच्च पोषण वाला मोटा अनाज है। इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है. प्रति 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है।

रागी को डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है। उसी तरह से बाजरा में प्रोटीन की प्रचूर मात्रा होती है। प्रति 100 ग्राम बाजरे में 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्व और 132 मिलीग्राम कैरोटीन होता है. कैरोटीन हमारी आंखों को सुरक्षा प्रदान करता है।

ज्वार दुनिया में उगाया जाने वाला 5वां महत्वपूर्ण अनाज है। ये आधे अरब लोगों का मुख्य आहार है। आज ज्वार का ज्यादातर उपयोग शराब उद्योग, डबलरोटी के उत्पादन के लिए हो रहा है। बेबी फूड बनाने में भी ज्वार का इस्तेमाल होता है। बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न की जरूरतों को पूरा करने में ज्वार अहम भूमिका निभा सकता है।

Thane जिले की प्रमुख फसलें