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प्रदेश सरकार की योजना 'एक जिला, एक उत्पाद' के तहत श्योपुर जिले को अमरूद के लिए चुना गया है क्योंकि यहां की मिट्टी और वातावरण अमरूद की खेती के लिए अनुकूल है। यही वजह है कि जिले में अभी 2820 किसान 1200 हेक्टेयर में अमरूद की खेती कर 15 से 16 हजार मीट्रिक टन उत्पादन कर रहे हैं। बर्फानी गोला, इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ 49 और ग्वालियर-27 का उत्पादन यहां हो रहा है। वर्तमान में अमरूदों की मांग राजस्थान के सवाई माधौपुर, बारा, कोटा, जयपुर, जोधपुर के अलावा दिल्ली आदि जगह है। 

जहां तक थाई अमरूद के उत्पादन का सवाल है तो जिले के कुछ किसान इसका उत्पादन कर रहे हैं, लेकिन इनकी संख्या अभी कम है। थाई अमरूद के पौधे की खास बात यह है, कि इसे हल्की व पथरीली सफेद मिट्टी में भी लगाया जा सकता है। पौध लगाने के बाद इसके रखरखाव का खर्च बेहद कम है। यह गोबर की खाद से अधिक पनपता है। इस अमरूद का 12 माह उत्पादन होता है। गर्मी के मौसम में इसकी मांग अधिक होती है। जिससे यह महंगा बिकता है। थाई अमरूद में फाइबर, विटामिन सी और फोलिक एसिड से भरपूर होता है। औषधीय गुण होने से वजन कम करने मधुमेह को भी नियंत्रित करता है।

प्रदेश सरकार अपने आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश अभियान के तहत हर जिले के एक विशेष उत्पाद की ब्रांडिंग करने के लिए एक जिला एक उत्पाद थीम पर कार्यक्रम चला रही है। इसी के तहत श्योपुर जिले से अमरूद का चयन किया गया। इसके लिए अब जिले मेें अमरूद की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा और किसानों को जागरुक किया जाएगा, वहीं अमरूद की खेती करने वाले किसानों के लिए बाजार भी उपलब्ध कराया जाएगा। 

अमरूद के उत्पाद तैयार करने का प्लांट लगेगा
जिले में अमरूद की ब्रांडिंग के साथ ही किसानों से अमरूद खरीदकर उसका पल्प निकाला जाएगा और श्योपुर के नाम पर ब्रांड से पैकिंग का बाहर बेचा जाएगा। इसके लिए जिले मेें पल्प निकालने और अमरूद के अन्य उत्पाद तैयार करने लिए एनआरएलएम के तहत एक प्लांट भी लगाया जाएगा।

आदिवासी बहुल श्योपुर के अमरूद का स्वाद विदेशों और हवाई सफर में भी ले सकेंगे। एक जिला-एक उत्पाद के तहत चुने गए अमरूद के उत्पादन को देखते हुए प्रशासन इसका पल्प (गूदा), जूस और जैली बनाने के लिए फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगा रहा है।