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प्याज फसल को शाजापुर जिले में एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल किया है।

प्रतिवर्ष 10 से 12 हजार हेक्टेयर खेतों में प्याज का उत्पादन करने वाले किसान क्षेत्र को समृद्ध बना रहे हैं। अब यही प्याज युवाओं के लिए रोजगार के रास्ते भी खोल रहा है। महाराष्ट्र के बाद देशभर में मशहूर शाजापुर जिले का प्याज विदेशी मार्केट तक पहुंचने के बाद अब जिले में ही पेस्ट और पाउडर का रूप ले सकेगा।

इसके लिए जरूरत है तो सिर्फ को-ऑपरेटिव सोसायटियों के माध्यम से बनी प्रोसेसिंग यूनिटों की। इसकी संभावना इसलिए बढ़ गई हैं, क्योंकि सरकारी मंशानुसार प्याज फसल को जिले में एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल किया है।

मालवा के क्लाइमेट प्याज की फसल के लिए बेहतर होने के कारण शाजापुर के प्याज ने महाराष्ट्र के नासिक प्याज को पीछे छोड़ दिया। बीते 25-30 साल पहले तक जहां ढाई से तीन हजार हेक्टेयर में ही प्याज की फसल बोई जाती थी। अब उत्पादन 12 हजार हेक्टेयर में किया जा रहा है। इसके चलते 3 लाख एमटी प्याज की पैदावार हो रही है।

शाजापुर जिले में गेहूं, चना, सोयाबीन के साथ ही अब किसान उद्यानिकी फसलों के उत्पादन के प्रति रूचि ले रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहने वाला शाजापुर का प्याज है। दरअसल, यहां की जलवायु, मिटटी में उत्पादित प्याज का रंग व स्वाद काफी बेहतर रहता है। क्षेत्र के किसान साल में दो बार प्याज का उत्पादन लेते हैं। रबी सीजन में नेफेड तो खरीफ सीजन में लाल चटख रंग वाली नासिक किस्म उत्पादित की जाती है। दोनों ही प्याज की डिमांड प्रदेश ही नहीं वरन देशभर में रहती है। यहां का प्याज महराष्ट्र, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, पंजाब आदि कई प्रदेशों में जाता है।