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सातारा भारत के महाराष्ट्र प्रान्त का एक शहर है। सतारा, बम्बई प्रेसीडेन्सी (वर्तमान महाराष्ट्र) का एक नगर, पहले यह राज्य (रियासत) भी था। सतारा शाहूजी के वंशजों की राजधानी रहा। यद्यपि मराठा राज्य की सत्ता पेशवाओं के हाथों में जाने के फलस्वरूप यह उनके अधीन था। यहा की मराठो की बोली और मन मे छत्रपती प्रेरणा ही इनको सबसे अलग बनाती है ।

सतारा, महाराष्ट्र (भारत) में गन्ना उत्पाद (गुड़ आदि) को एक जिला एक उत्पाद यजना के तहत चयनित किया गया। 

गन्ना सारे विश्व में पैदा होने वाली एक पुमुख फ़सल है। भारत को गन्ने का 'जन्म स्थान' माना जाता है, जहाँ आज भी विश्व में गन्ने के अन्तर्गत सर्वाधिक क्षेत्रफल 35 प्रतिशत क्षेत्र पाया जाता है। वर्तमान में गन्ना उत्पादन में 'भारत का विश्व में प्रथम स्थान' है। यद्यपि ब्राजील एवं क्यूबा भी भारत के लगभग बराबर ही गन्ना पैदा करते हैं। देश में र्निमित सभी मुख्य मीठाकारकों के लिए गन्ना एक मुख्य कच्चा माल है। इसका उपयोग दो प्रमुख कुटीर उद्योगों मुख्यत: गुड़ तथा खंडसारी उद्योगों में भी किया जाता है। इन दोनों उद्योगों से लगभग 10 मिलियन टन मीठाकारकों[1] का उत्पादन होता है, जिसमें देश में हुए गन्ने के उत्पादन का लगभग 28-35% गन्ने का उपयोग होता है।

महाराष्ट्र में गन्ने का क्षेत्र नासिक के दक्षिण में गोदावरी की ऊपरी घाटी में स्थित है। सांगली, सतारा, अहमदनगर, नासिक, पुणे और शोलापुर प्रमुख उत्पादक ज़िले हैं। यहाँ गन्ने की सिंचाई के लिए अनेक योजनाएँ बनायी गयी हैं। तापमान वर्ष भर सम रहता है, जिससे गन्ने से अधिक रस की प्राप्ति होती है। गन्ने के उत्पादन की दृष्टि से यह भारत का दूसरा महत्त्वपूर्ण राज्य है। राष्ट्रीय उत्पादन में इसका द्वितीय स्थान है। यहाँ का वार्षिक उत्पादन यद्यपि 2.5 से 3.0 करोड़ टन ही है, किन्तु अधिकांश गन्ने से शक्कर बनाई जाती है। उत्पादकता अर्थात प्रति हेक्टेअर उपज देश में सर्वाधिक है और चीनी की प्राप्ति अधिक है।

महाराष्ट्र चीनी के अलावा गुड़ के प्रमुख उत्पादकों में से एक है। राज्य में बड़ी संख्या में गुड़ उत्पादन इकाइयाँ स्थित हैं। महाराष्ट्र में वर्ष 2005-2006 के दौरान लगभग 11 से 12 प्रतिशत गन्ने का उपयोग गुड़ तैयार करने के लिए किया जा रहा था। महाराष्ट्र से गुड़ अपनी गुणवत्ता के लिए भी जाना जाता है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में व्यापक मांग है। विपणन गुड़ की उत्पादन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक है, जो विभिन्न चैनलों के माध्यम से और विभिन्न मध्यस्थों द्वारा न्यूनतम अवधि के भीतर उत्पादन स्थल से अंतिम उपभोक्ता तक माल की आवाजाही की सुविधा प्रदान करता है। विपणन में विभिन्न सेवाएं जैसे ग्रेडिंग, पैकिंग और परिवहन आदि शामिल हैं। उद्यम की लाभप्रदता कुशल विपणन पर निर्भर करती है। गुड़ प्रसंस्करण इकाइयाँ लाभदायक हैं; भले ही केवल अपना गन्ना ही संसाधित किया जाता है। हालाँकि, यह तब अधिक लाभदायक था जब गुड़ प्रसंस्करण इकाई किराए के आधार पर दूसरे का गुड़ तैयार करती थी।

चीनी और गुड़ तैयार करने के लिए आवश्यक मुख्य कच्चा माल गन्ना है। भारत दुनिया में चीनी और गुड़ का सबसे बड़ा उत्पादक है। प्राचीन काल से ही गुड़ भोजन की एक महत्वपूर्ण वस्तु रहा है और आज भी। भारत में गुड़ निर्माण सबसे महत्वपूर्ण कुटीर उद्योग बना हुआ है। भारत में गन्ने के कुल उत्पादन में से 67 प्रतिशत सफेद चीनी के उत्पादन के लिए, 11.9 प्रतिशत बीज, चारा और चबाने के लिए और 21 प्रतिशत गुड़ (खांडसारी सहित) के लिए उपयोग किया जाता है। महाराष्ट्र भारत के प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में से एक है। राज्य चीनी उत्पादन (90.95 लाख टन) और चीनी वसूली (11.39 प्रतिशत) में पहले स्थान पर है और गन्ना (10.49 लाख हेक्टेयर) के क्षेत्र में दूसरे स्थान पर है। पुणे, सतारा, कोल्हापुर और अहमदनगर राज्य के महत्वपूर्ण गन्ना उत्पादक जिले हैं। भारत में गन्ने को चीनी, गुड़ और खांडसारी में संसाधित किया जाता है। महाराष्ट्र चीनी के अलावा गुड़ के प्रमुख उत्पादकों में से एक है। राज्य में बड़ी संख्या में गुड़ उत्पादन इकाइयाँ स्थित हैं। महाराष्ट्र में वर्ष 2005-2006 के दौरान लगभग 11 से 12 प्रतिशत गन्ने का उपयोग गुड़ तैयार करने के लिए किया जा रहा था। महाराष्ट्र से गुड़ अपनी गुणवत्ता के लिए भी जाना जाता है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में व्यापक मांग है। विपणन गुड़ की उत्पादन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक है, जो विभिन्न चैनलों के माध्यम से और विभिन्न मध्यस्थों द्वारा न्यूनतम अवधि के भीतर उत्पादन स्थल से अंतिम उपभोक्ता तक माल की आवाजाही की सुविधा प्रदान करता है। विपणन में विभिन्न सेवाएं जैसे ग्रेडिंग, पैकिंग और परिवहन आदि शामिल हैं। उद्यम की लाभप्रदता कुशल विपणन पर निर्भर करती है। चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति में उत्पादकों की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है और उत्पादक के खेत से चीनी कारखाने तक कटाई और परिवहन की जिम्मेदारी चीनी मिल की होती है। लेकिन दूसरी ओर, उत्पाद 'गुड़' का विपणन एक जटिल है जिसमें एक लंबा विपणन चैनल, बिचौलियों की संख्या और समय लेने वाली प्रक्रिया शामिल है। हालांकि, कई गुड़ उत्पादक गुड़ के उत्पादन की लागत से अनजान हैं और इसलिए चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति और महाराष्ट्र की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में गुड़ उद्योग के महत्व के साथ इसकी सापेक्ष लाभप्रदता की तुलना नहीं कर सकते हैं, अध्ययन निम्नलिखित विशिष्ट के साथ किया गया था उद्देश्य-गुड़ उत्पादन में लागत और रिटर्न संरचना का अनुमान लगाने के लिए, गुड़ के विपणन में शामिल विपणन चैनलों का अध्ययन करने के लिए, विभिन्न विपणन चैनलों के माध्यम से गुड़ के विपणन में विपणन लागत, मूल्य प्रसार और विपणन दक्षता का अनुमान लगाने के लिए।

भारत में गन्ने की फ़सल को तैयार होने में लगभग एक वर्ष का समय लग जाता है। अंकुर निकलने के समय 20° सेंटीग्रेड का तापमान लाभदायक रहता है, किन्तु बढ़ने के लिए 20° सेंटीग्रेड से 30° सेंटीग्रेड के तापमान की आवश्यकता पड़ती है। 30° सेंटीग्रेड से अधिक और 16° सेंटीग्रेड से नीचे के तापमान में यह पैदा नहीं होता है। अत्यधिक शीत और पाला फ़सल के लिए हानिकारक होता है। साधारणतः इसके लिए लम्बी और तापयुक्त गर्मियाँ ही अनुकूल रहती हैं।

मिट्टी
गन्ने के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी तथा नमी से पूर्ण भूमि, विशेषतः गहरी और चिकनी दोमट मिट्टी, उपयुक्त होती है। दक्षिण की लावा से युक्त भूमि में भी गन्ना पैदा किया जाता है। गन्ने के पौधे को पर्याप्त खाद की आवश्यकता होती है। अतः साधारणतः गन्ना तीन-वर्षीय हेर-फेर के साथ बोया जाता है। गोबर, कम्पोस्ट अथवा अन्य प्रकार की प्राणिज खादों और सनई, ढेंचा आदि हरी खाद, अमोनियम सल्फेट और सुपरफॉस्फेट आदि का भी खाद के रूप में पर्याप्त प्रयोग किया जाता है।