• जिले की लगभग 65-70% आबादी कृषि पर निर्भर है। बोई जाने वाली मुख्य खरीफ फसलें धान, मक्का और ज्वार हैं। रबी की फसलें गेहूं, जौ और जई हैं। सकल खेती क्षेत्र 71454 हेक्टेयर (शुद्ध क्षेत्रफल 39203 हेक्टेयर) और शुद्ध सिंचित क्षेत्र (14409) है।
  • जैविक खेती पर जोर, किसानों का प्रशिक्षण, कृषि यंत्रीकरण और संरक्षण खेती, अधिक वर्मी कम्पोस्ट इकाइयां (प्रत्येक ब्लॉक में 05), जल संचयन टैंक (प्रत्येक ब्लॉक में 01), बोरवेल (प्रत्येक ब्लॉक में 01), सूक्ष्म सिंचाई छिड़काव (प्रत्येक ब्लॉक में 01) 18 महीने की अवधि में।
  • विभाग का लक्ष्य किसानों की आय बढ़ाने के लिए परियोजना के आधार पर सांबा जिले में नुड ब्लॉक को मशरूम ब्लॉक के रूप में विकसित करना है, जिससे बाजार में मशरूम का मूल्य 152.46 लाख रुपये की कुल वृद्धि के साथ मशरूम उत्पादकों की संख्या 42 से 105 तक और उत्पादन 504 क्विंटल से 1890 क्विंटल तक बढ़ जाएगा।
  • फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज के लिए नाबार्ड के सहयोग से किसान-उत्पादक संगठनों (एफपीओ) का गठन भी प्रक्रियाधीन है।
  • किसानों की सुविधा के लिए एक वर्ष के भीतर ग्राम ज्ञान केंद्र और कृषि व्यवसाय क्लब (प्रत्येक क्षेत्र में 01) स्थापित करने का प्रस्ताव है।
  • एकीकृत खेती पर जोर दिया जाएगा, जिसके लिए कृषि, बागवानी, मत्स्य पालन और पशुपालन विभाग पहले से ही ध्यान दे रहे हैं।
  • ब्रोकोली, ब्रसेल्स स्प्राउट, लैटिस, अजमोद, सेलेरिटी और बेबीकॉर्न जैसे विदेशी सब्जी उत्पादन पर भी जोर दिया जा रहा है।
  • मृदा और जल संरक्षण संरचनाओं पर ध्यान देना महत्व के प्रमुख क्षेत्र होंगे।
  • पीएम-किसान योजना के तहत किसान परिवारों को आर्थिक सहायता मिल रही है। लंबित सुधारों को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • मात्स्यिकी क्षेत्र के तहत, सीएसएस "ब्लू रेवोल्यूशन" के तहत मार्च, 2021 तक 4 नए कार्प मछली पालन तालाबों का निर्माण किया जाएगा।
  • जिले में रेशम उत्पादन गतिविधियों के विस्तार के रूप में विजयपुर तहसील में शहतूत नर्सरी की स्थापना के लिए 40 कनाल भूमि की पहचान की गई है।
  • पुनर्गठित राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत उक्त मिशन के तहत जिले में बांस के पेड़ों की खेती के लिए 776 कनाल गैर-वन राज्य भूमि की पहचान की गई है। सामाजिक वानिकी विभाग को चिन्हित भूमि में पौधरोपण की प्रक्रिया तत्काल शुरू करने को कहा गया है।

हमारे देश में मशरूम का उपयोग भोजन व औषधि के रूप में किया जाता है। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण और विटामिन जैसे उच्च स्तरीय खाद्य मूल्यों के कारण मशरूम सम्पूर्ण विश्व में अपना एक विशेष महत्व रखता है। भारत में मशरूम को खुम्भ, खुम्भी, भमोड़ी और गुच्छी आदि नाम से जाना जाता है। देश में बेहतरीन पौष्टिक खाद्य के रूप में मशरूम का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा मशरूम के पापड़, जिम का सप्लीमेन्ट्री पाउडर, अचार, बिस्किट, टोस्ट, कूकीज, नूडल्स, जैम (अंजीर मशरूम), सॉस, सूप, खीर, ब्रेड, चिप्स, सेव, चकली आदि बनाए जाते हैं।

विश्व में खाने योग्य मशरुम की लगभग 10000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां हीं खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। भारतीय वातावरण में मुख्य रुप से पांच प्रकार के खाद्य मशरुमों की व्यावसायिक स्तर पर खेती की जाती है। जिसका वर्णन निम्नलिखित है। 
  • सफेद बटन मशरुम 
  • ढींगरी (ऑयस्टर) मशरुम 
  • दूधिया मशरुम 
  • डीस्ट्रा मशरुम 
  • शिटाके मशरुम

उत्तरी भारत में सफेद बटन मशरुम की मौसमी खेती करने के लिए अक्तूबर से मार्च तक का समय उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान मशरूम की दो फसलें ली जा सकती हैं। बटन मशरूम की खेती के लिए अनुकूल तापमान 15-22 डिग्री सेंटीग्रेट एवं सापेक्षित आद्रता 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए।