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लहसुन एक कन्द वाली मसाला फसल है। इसमें एलसिन नामक तत्व पाया जाता है जिसके कारण इसकी एक खास गंध एवं तीखा स्वाद होता है। लहसुन की एक गांठ में कई कलियाँ पाई जाती है जिन्हे अलग करके एवं छीलकर कच्चा एवं पकाकर स्वाद एवं औषधीय तथा मसाला प्रयोजनों  के लिए उपयोग किया जाता है। इसका इस्तेमाल गले तथा पेट सम्बन्धी बीमारियों में होता है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखेस्वाद और गंध के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे ऐलसन ए ऐजोइन इत्यादि। इस कहावत के रूप में बहुत आम है "एक सेब  एक दिन डॉक्टर को दूर करता है" इसी तरह एक लहसुन की कली एक दिन डॉक्टर को दूर करता है यह एक नकदी फसल है तथा इसमें कुछ अन्य प्रमुख पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं । इसका उपयोग आचार,चटनी,मसाले तथा सब्जियों में किया जाता है। लहसुन का उपयोग इसकी सुगन्ध तथा स्वाद के कारण लगभग हर प्रकार की सब्जियों एवं माँस के विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है । इसका उपयोग हाई ब्लड प्रेशर, पेट के विकारों, पाचन विकृतियों, फेफड़े के लिये, कैंसर व गठिया की बीमारी, नपुंसकता तथा खून की बीमारी के लिए होता है इसमें एण्टीबैक्टीरिया तथा एण्टी कैंसर गुणों के कारण बीमारियों में प्रयोग में लाया जाता है। यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। म. प्र. में लहसून का क्षेत्रफल 60000 हे., उत्पादन 270 हजार मे. टन। लहसुन की खेती मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, एवं उज्जैन के साथ-साथ प्रदेश के सभी  जिलों में इसकी खेती की जा सकती है। आजकल इसका प्रसंस्करण कर पावडर, पेस्ट, चिप्स तैयार करने हेतु प्रसंस्करण इकाईया म.प्र. में कार्यरत है जो प्रसंस्करण उत्पादों को निर्यात करके विदेशी मुद्रा आर्जित कर रहे है।

एक जिला एक उत्पाद योजना में प्रदेश के हर जिले की एक प्रमुख पहचान की ब्रांडिंग की जा रही है। रतलाम में पिछले दस साल से लहसुन का रकबा हर साल पांच से सात फीसदी बढ़ रहा है और उसी अनुपात में उत्पादन भी बढ़ा है। अभी 26 हजार हेक्टेयर में 23 हजार किसान लहसुन की खेती कर रहे हैं। इसमें सौ किसान जैविक पद्धिति से भी लहसुन की खेती कर अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। प्रदेश मे सबसे अच्छी गुणवत्ता की लहसुन का उत्पादन रतलाम में हो रहा है। यहां की लहसुन सबसे लंबे समय तक चलती है और इसकी कली बहुत मजबूत रहती है। प्रोसेसिंग यूनिट लगने के बाद लहसुन का पावडर, तेल, चटनी, पेस्ट आदि का निर्माण जिले में ही होने लगेगा। गार्लिक निर्माण में तकनीकी पर भी फोकस किया जाएगा।

रतलाम की परंपरागत पहचान सेंव के स्वाद, स्वर्ण जेवरों की शुद्धता और साड़ियों के व्यापार को लेकर है। इसके साथ ही अब लहसुन की खेती से जिले की नई पहचान बन रही है। यही वजह है कि आत्मनिर्भर मप्र में एक जिला एक पहचान में सोना, सेंव के साथ लहसुन को भी लिया गया है। इस अभियान में जिले की विशेषता में लहसुन की खेती व उत्पादन को भी चिन्हित किया जा रहा है। जिले के मल्चिंग पद्धति से खेती करने के चलते किसानों को 30 फीसदी अधिक उत्पादन मिल रहा है। एक एकड़ में डेढ़ लाख रुपये तक का मुनाफा हो रहा है।

जिले के रतलाम, पिपलौदा, जावरा और आलोट ब्लॉक में सर्वाधिक किसान इस पद्धति से लहसुन की खेती कर रहे हैं। सामान्य तौर पर नवंबर तक लहसुन खेतों में लग जाती है।

लहसुन एक नकदी फसल है। भारत में इसकी मांग साल भर बनी रहती है। मसाला से लेकर औषधि के रूप में इस्तेमाल होने के कारण यह आम भारतीय किचन का अहम हिस्सा है।

रतलाम के किसानों द्वारा आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर बनाई गई नई वैरायटी ‘रियावन सिल्वर’ अफ्रीका के साथ-साथ अब अन्य देशो के किसानों की भी पसंद बन गई है। इस वैरायटी ने लहसुन की ऊटी, अमलेटा, तुलसी, जी-वन जैसी वैरायटीयों को पीछे छोड़ दिया है| इस लहसुन की खासियत है कि बोवनी के 6-7 में अंकुरित होने वाली यह लहसुन 12 महीने तक खराब नहीं होती है। सामान्य लहसुन से ज्यादा वजन व गुणवत्ता वाली व 15 से 20 प्रतिशत तक कम लागत जैसी खासियत इसे अन्य वैरायटी से भिन्न करती है। चार साल तक किये गए प्रयोग के पश्चात इस परम्परागत लहसुन पर रियावन के किसानों ने बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रारंभ किया है।

लहसुन की इस किस्म का नाम रिया वन है। एक एकड़ में खेती करने पर उत्पादन करीब 50 क्विंटल तक होता है।
इस किस्म का नाम एक गांव के नाम पर पड़ा है। रतलाम का एक गांव है रिया वन, जहां पर यह प्रजाति इजाद हुई है और इसी इलाके में इस किस्म की बंपर पैदावार होती है। रिया वन लहसुन की गुणवत्ता बाकी लहसुन की फसलों के मुकाबले काफी बेहतर है।

रिया वन लहसुन की विशेषता 
इसका कवर कागज की तरह मोटा होता है और बाकी लहसुन की प्रजातियों के मुकाबले ज्यादा सफेद होता है। रिया वन लहसुन की जड़ काटने में सुविधाजनक होती है क्योंकि इसकी जड़ बाहर की तरफ रहती है। इसकी कटिंग बहुत सफाई से की जा सकती है। 

बाजार में सामान्य लहसुन का दाम ₹8000 प्रति क्विंटल तक मिल जाता है, जबकि पीक सीजन में रिया वन लहसुन का दाम 10000 से 21000 रुपए प्रति क्विंटल तक मिल जाता है। रिया वन लहसुन मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों के अलावा चेन्नई, मदुरै और दक्षिण भारत के कई राज्यों में भेजा जाता है।

रिया वन लहसुन में बाकी लहसुन के मुकाबले मेडिसिनल कॉन्टेंट जैसे कि ऑयल और सल्फर ज्यादा मात्रा में होता है।खास बात यह है कि लहसून की यह किस्म 1 साल तक खराब नहीं होती। जबकि बाकी लहसुन की किस्में 5 से 7 महीने तक ही टिकती हैं। अगर कल्टीवेशन अच्छा हो तो इसकी एक गांठ 100 से 125 ग्राम तक हो जाती है।