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नरसिंहपुर मध्य प्रदेश के 51 जिलों में से एक है, ज्यादातर काले कपास की मिट्टी में मिट्टी की मात्रा 60-65% है, अधिक जल धारण क्षमता और Mn और Fe में कमी है, लगभग 80% क्षेत्र सिंचित है और लगभग 35% बेंत है एकरेज सितंबर-अक्टूबर में गन्ने की रोपाई के साथ किया जा रहा है। मप्र के कुल गन्ना क्षेत्र का लगभग 65% नरसिंहपुर जिले (लगभग 75000 हेक्टेयर) में है। इसे भारत के मध्य प्रदेश और हरियाणा की चीनी का कटोरा कहा जाता है। इस जिले में, 2500-3000 TCD क्षमता वाली 09-10 चीनी मिलें हैं, लेकिन गन्ने की विकास गतिविधियाँ नहीं कर रही हैं। इस स्थिति में, किसान अब गुड़ उत्पादन उद्यमशीलता विकसित करने के लिए बहुत उत्सुक हैं और उसके लिए कुछ बेहतर संयंत्र स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। वर्तमान में, क्षेत्र में लगभग 3000 गुड़ इकाइयाँ और दो स्वचालित खांडसारी संयंत्र हैं।

जिले के गुड़ के स्वाद का ही जादू है कि देश-प्रदेश तक अपने लजीज स्वाद और गुणवत्ता से गुड़ के साथ नरसिंहपुर की बात होती है।जिससे प्रदेश शासन ने भी एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत करेली के गुड़ और गाडरवारा की दाल को शामिल कर जैविक पद्धति से गन्नाा उत्पादन कर गुड़ बनाने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने कार्य शुरू कर दिया है। 

किसानों के श्रम-साध्य की बूंदें जब खेतों की मिट्टी में मिलतीं है तो उसकी महक का सौंधापन कुछ अलग हो जाता है।मिट्टी और किसानों के श्रम के इसी अनूठेपन से आज अपना नरसिंहपुर जिला देश-प्रदेश में जहां गुड़ और दाल के लजीज स्वाद से ख्यात है तो वहीं मध्यप्रदेश में गन्नाा उत्पादन के मामले में नबंर वन बना है। खेती में किसानों ने अपने अटूट श्रम, नित नए नवाचार और सरकारी-गैर सरकारी मदद से न केवल अपनी बल्कि जिले की जो तस्वीर बदली है उससे आज जिले की पहचान खेती के मामले में भी अलग बनी है।

खेती में जिले की उन्नाति के मानक यह है कि आज करीब 65 हजार हेक्टेयर में गन्नाा उत्पादन करने वाला नरसिंहपुर जिला मध्यप्रदेश में पहले नबंर है और पड़ोसी जिले होशंगाबाद, छिंदवाड़ा सहित अन्य जिले इस मामले में काफी पीछे है।आज जिले में गन्नाा उत्पादन जहां रिकार्ड स्थापित कर रहा है तो वहीं गुड़ उत्पादन में जिले की जो पहचान वर्षो से रही है उसे कायम रखने में आज भी किसान पूरा जोर लगा रहे है और अपने नवाचारों, तकनीक से आधुनिक होते बाजारो में अपनी पैठ बनाए हुए है। सरकारी आंकड़े खुद इसकी गवाही देते है कि जिले में करीब 800 करोड़ का सालाना गुड़ व्यापार होता है और करीब साढ़े 600 करोड़ का व्यापार शुगर-खांडसारी मिलो के जरिए शकर निर्माण से होता है।

जिले का अच्छा भू-जलस्तर, उपजाऊ काली मिट्टी वैसे किसी भी फसल के लिए बेहद उपयुक्त है।

गन्ने की खेती करने की पद्धति
खेत में गन्ने की 3 से फीट की दूरी पर दो लाइन रखते हैं। इसके बाद 10 फीट का अंतर करके फिर गन्ने की 2 लाइन रखने और इस 10 फीट के अंतर वाली जगह से ट्रैक्टर-सीडड्रिल आसानी से निकल जाती है। इस जगह में नोरपा जड़ी व मड़ी तीनों गन्ने की फसल में रबी, खरीफ व जायद की तीनों फसलें ले सकते हैं। 3 साल के गन्ने की खेती में हम नौ फसल ले सकते हैं। इस पद्घति में गन्ने की एकल खेती की तुलना में 80 से 90 प्रतिशत तक गन्ने की उपज प्राप्त होती है। इस पद्घति में 5 गुणित 10 फीट की दूरी रखने पर प्रति एकड़ में 2 आंख के लगभग 5500 टुकड़े लगेंगे। जिसमें यदि एक पौधा भी तैयार होता है तो एक एकड़ में लगभग 500 पौधे तैयार होते हैं और एक पौधे में कम से कम 5 से 6 कल्ले गन्ने में परिवर्तित होते हैं। जो कुल 27500 से 3300 गन्ने प्राप्त होंगे। एक गन्ने का औसत वजन लगभग 1.5 किलो रहता है। प्रति एकड़ करीब 400 से 480 क्विंटल गन्ने का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।