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कुशीनगर ( कुसीनगर, कुसीनारा, कासिया और कासिया बाजार के नाम से भी जाना जाने वाला ज़िला ), एक तीर्थयात्रा शहर है। महाकाव्य रामायण में वर्णित भगवान राम के पुत्र कुश के नाम पर इस ज़िले का नाम पड़ा था। यह भी माना जाता है कि जिले में अधिक मात्रा में कुश नामक एक प्रकार की घास पायी जाती है, इसलिए जिला को कुशीनगर नाम दिया गया था।

कुशीनगर मुख्य स्तूप (भगवान बुद्ध के शरीर की राख पर बनी एक गोलाकार सिविल संरचना), में भगवान बुद्ध की 6.10 मीटर की मूर्ति है जो पूरी दुनिया में आज तक भगवान बुद्ध की सबसे ऊंची मूर्ति मानी जाती है और महा धार्मिक आस्था का मंदिर, जिसे बौद्ध के लिए दुनिया में सबसे पवित्र स्थान माना जाता है दोनों इस ज़िले में स्थित स्थित है।

कृषि भूमि गन्ना, धान, गेहूं, फल और हल्दी के लिए सबसे उपयुक्त है। यह अपने केले फाइबर उत्पादों के लिए भी जाना जाता है। केला फाइबर कपड़ा उद्योग में एक मिश्रण सामग्री के रूप में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है; पल्प उद्योग और हस्तशिल्प की एक विस्तृत श्रृंखला भी केला फाइबर से बनाई जाती है।

कुशीनगर में लगभग 9000 हेक्‍टेयर में केले की खेती की जा रही है। जिसमें केले की खेती से 9,400 किसान और 500 हस्‍तशिल्‍पी जुड़े हुए हैं। जिला उद्योग एवं उद्यम प्रोत्‍साहन केन्‍द्र की ओर से एक जनपद एक उत्‍पाद के तहत केला रेशा व केला उत्‍पाद के लिए जनपद के करीबन 500 लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। जिसमें 150 लोगों को केले से उत्‍पाद बनाने व 350 लोगों को केले के रेशे से बने उत्‍पादों को बनाने का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। बता दें कि कुशीनगर में केले के तने, रेशे से करीबन 20 से 25 तरह के उत्‍पादों को तैयार किया जाता है।

केले के उत्पाद
कुशीनगर का यह कुटीर उद्योग बहुत से लोगों को रोजगार प्रदान करने में सक्षम है। केले से निर्मित चिप्स, केले के तने से बने उत्पाद, चटाइयाँ, बैग इत्यादि पारम्परिक शैली में होते हुए भी आधुनिकता के साथ जुड़े होते हैं। यहाँ बने उत्पादों को समाज के हर वर्ग द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। कलाकृतियाँ, दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुएँ तथा केले के अनुपयोगी भाग को जैविक खाद हेतु भी प्रयोग किया जाता है। बायो –डीग्रेडेबल होने के कारण केला या उसके अवशेष पर्यावरण को कोई हानि भी नहीं पहुंचाते। 

केला फाइबर उत्पाद
केला फ़ाइबर धागे बनाने, कपड़े की थैलियों, सूत्र व कार्बनिक खाद बनाने में उपयोगी होता है। जिले में केले की अधिक मात्रा में खेती के कारण इस उद्योग ने जिले में बहुत ही आशाजनक संभावनाएं उत्पन्न की हैं। केला का फ़ाइबर एक प्राकृतिक फ़ाइबर है जिससें हस्तशिल्प उत्पाद जैसे मैट और रस्सी उत्पादित किए जा सकते हैं, लेकिन सिर्फ 10% ही केले के पेड़ का तना, उत्पादों को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है और शेष खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। ज्यादातर फाइबर हाथों से निकाला जा रहा है और फाइबर की उपज बहुत कम होती है। इस तरह की हस्त संबंधी काम की प्रक्रिया कुशल श्रमिकों द्वारा की जाती है।