बीजापुर जिला छत्तीसगढ़ के 27 ज़िलों में से एक है। पहले बीजापुर शहर दंतेवाड़ा ज़िले का भाग था। इस ज़िले का सर्वाधिक भाग पहाड़ी है।

जिले में पाए जाने वाले जंगल, शुष्क क्षेत्र के अंतर्गत आते है जिसमें मिश्रित वन क्षेत्र शामिल है। शुष्क क्षेत्र में मिश्रित जंगल बहुत व्यापक हैं जो नम और मध्यवर्ती बेल्ट के बीच फैले हुए है लेकिन आमतौर पर जिले के पश्चिमी आधे और दक्षिणी हिस्सों तक ही सीमित होते है। यहां मिश्रित विविधता के पेड़ पाए जाते हैं धवरा (एनोजीसस लैटिफ़ोलिया), बिर्रा (क्लोरोक्ज़िलोन स्वित्टेनिया), राहीनी (सोयमिडा फबरफुगा) और अन्य जैसे चार, तेंदु, एओनिया, आओला, हर्रा, हरिया आदि|

चट्टानी क्षेत्रों में, पेड़ आमतौर पर अवरुद्ध और विकृत होते हैं। चट्टानी क्षेत्र में सली, हांगु, खैर, हररा, पाल, सेसम आदि आम पेड़ पाए जाते हैं। जिले के उत्तरी भाग के जंगल में साग (टेक्टोना ग्रैंडिस), साल (शोरोरा-बस्टा), सिरसा (डाल्बर्गिया लैटिफ़ोलिया), बिजनल (पेटोकार्पस मार्सूपियम), कुसुम (स्केलिच्रा त्रिजुगा), पाल (बुटिआ फ्रोंडोसा), महुआ (बासिया लतिफोलिया) तेंदु (डायस्पोयस मेलानॉक्सिलोन), हररा (टर्मिनलिया चेब्यूला) आओला (फिलाएंथस इम्ब्लिका) सजा (टर्मिनल टॉन्टोसा), कौहा (टी। अर्जुन), सलाई (बोसवेलिया साराटाटा), चार (बुकानानिया लातिफोलिया) आदि पेड़ पाए जाते हैं।

घने जंगलों एवं पहाड़ियों से आच्छादित बीजापुर जिले में यहां के निवासियों के लिए वनोपज संग्रहण एक प्रमुख आय का जरिया है। जिले में ईमली, महुआ, टोरा, हर्रा, बहेड़ा, कालमेघ, चिरौंजी आदि लघु वनोपज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, इन सभी के संग्रहण करने के फलस्वरूप संग्राहकों को अच्छी आमदनी होती है। शासन द्वारा इन संग्राहकों को शोषण से बचाने एवं वनोपज का उचित दाम दिलाने के उद्देश्य से 52 प्रजाति के लघु वनोपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया है। विगत 2019-20 में ट्राइफेड द्वारा वन-धन योजना लागू की गई है, जिसके तहत महिला स्व-सहायता समूहों को जोड़कर 25 हाट-बाजार संग्रहण केंद्रों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर लघु वनोपज की खरीदी की जा रही है। इससे स्थानीय संग्राहकों को उनके लघु वनोपज का वाजिब दाम मिल रहा है। यहीं कारण है कि वर्ष 2019-20 में जिले के अंतर्गत 9174 क्विंटल लघु वनोपज का संग्रहण किया गया और 30 हजार 108 संग्राहकों को दो करोड़ 63 लाख 16 हजार 629 रुपये का भुगतान किया गया। 

वनों से समृद्ध छत्तीसगढ़ में महुआ बहुतायत में पाया जाता है। महुआ यहां के आदिवासियों की जीविका का साधन भी है। यहां के आदिवासी महुआ फूल को एकत्र करते हैं और बाजार में बेचते हैं। गहरा पीलापन लिए हुए महुआ फूल औषधि और देसी शराब बनाने के काम आता है। अब आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिले में महुआ फूल से हैंड सैनिटाइजर बनाया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ में महुआ (Mahua) के फूल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार शुरू हो गया है। यहां होने वाली महुआ के फूल के पैदावार की मांग फ्रांस में बढ़ गयी है। फ्रांस में छत्तीसगढ़ के महुआ के फूल से शराब बनायी जाएगी। इसका उपयोग दवा और सिरप तैयार करने में भी किया जाएगा। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने महुआ के फूल को निर्यात करने की स्वीकृति दी है।

  • महुआ के फूलों की एक खेप समुद्र के रास्ते फ्रांस भेजी गई है।
  • वहां पर इसका उपयोग शराब बनाने के साथ ही दवा और सिरप का निर्माण करने में भी किया जाएगा।
  • राज्य के कोरबा जिले के जंगलों से महुआ के फूल को एकत्र किया गया है।
  • इसका प्रसंस्करण प्राधिकरण द्वारा पंजीकृत किये गए वनधन केन्द्रों पर किया गया था।
  • महुआ के फूल अधिकाशंत: कोरबा, कटघोरा, सरगुजा, पासन, पाली, चुर्री के जंगलों से एकत्र किए गए थे।
  • अनुसूचित जनजाति के लोगों द्वारा महुआ के फूल को एकत्र किया जाता है। निर्यात बढ़न से इन्हें घर में रोजगार मिल सकेगा।