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बांसवाड़ा जिले में आम को एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चयनित किया गया।

राजस्थान का दक्षिणाचंल बांसवाड़ा अपने बेनज़ीर शिल्प-स्थापत्य और अनूठी परंपराओं के चिरंतन काल से जाना-पहचाना जाता है। राजस्थान के वागड़ गंगा माही से सरसब्ज बांसवाड़ा जिलाें फलों के उत्पादन के लिए अपनी खास पहचान रखता है। खासतौर पर फलों के राजा आम के लिए यह पूरा इलाका अब देशभर में नई पहचान बना रहा है।

जिले में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा संचालित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र एवं कृषि विज्ञान केन्द्र, बोरवट (बांसवाड़ा) पर भी बड़े क्षेत्र में मातृ वृक्ष बगीचे स्थापित हैं जिसमें देशी व उन्नत विभिन्न किस्म की कुल 46 प्रजातियों की आम किस्मों का संकलन है। यहां पर आम के ग्राफ्टेड पौधे तैयार कर किसानों को उपलब्ध करवाये जाते हैं। इसके साथ ही उद्यान विभाग के अधीन गढ़ी कस्बे में ‘राजहंस नर्सरी’ भी स्थापित है जहां से विभिन्न उन्नत किस्मों के आम के पौधे किसानों को अनुदान पर उपलब्ध करवाये जाते हैं।

राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में 30 से ज्यादा प्रकार के आम की फसलें किस्म पैदा होती है, इनमें लंगड़ा, दशहरी, तोतापुरी, केसर, मुंबई ग्रीन, मल्लिका, चौसा और कलमी शामिल हैं। पूरे प्रदेश में जितनी आम की फसल पैदा होती है उसका 26% आम अकेले बांसवाड़ा में पैदा होता है। यहां का आम दिल्ली-एनसीआर की मंडियों में बहुत लोकप्रिय है।

जिले के विभिन्न बगीचों में आम की किशन भोग, बोम्बे ग्रीन, बोम्बई, केसर, राजस्थान केसर, फजली, मूलागो, बैगनपाली, जम्बो केसर गुजरात, स्वर्ण रेखा, बंगलौरा, नीलम, चौसा, दशहरी, मनकुर्द, वनराज, हिमसागर, जरदालु, अल्फांजो, बजरंग, राजभोग, मल्लिका, लंगड़ा, आम्रपाली, फेरनाड़ी, तोतापूरी, रामकेला आदि 28 प्रजातियों का तो उत्पादन होता ही है, साथ ही  देसी रसीले आम की 18 प्रजातियों यथा टीमुरवा, आंगनवाला, देवरी के पास वाला, कसलवाला, कुआवाला, आमड़ी, काकरवाला, लाडुआ, हाडली, अनूप, कनेरिया, पीपलवाला, धोलिया, बारामासी, बनेसरा, सागवा, कालिया, मकास आदि प्रजातियों का भी उत्पादन होता है। सबसे खास बात है कि आम की 18 स्थानीय प्रजातियां रेशेदार है और इनका उत्पादन सिर्फ दक्षिण राजस्थान में ही होता है।