ओडीओपी फसल का नाम- कतरनी चावल
जिला- बांका

कतरनी चावल की उत्पादकता लगभग- 15-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
कतरनी चावल बिहार का सबसे प्रचलित, बेहतरीन गुणवत्ता वाला सुगंधित चावल है। यह अपनी सुगंध, स्वादिष्टता और चूरा (पीटा चावल) बनाने के गुणों के लिए प्रसिद्ध है।
कतरनी चावल के उत्पादन के भौगोलिक क्षेत्र मुंगेर, बांका और बिहार के भागलपुर के दक्षिण क्षेत्र के जिले हैं। वर्षों से कतरनी की विभिन्न किस्मों जैसे भौरी कतरनी, देशला कतरनी, सबौर कतरनी और घोरैया कतरनी की खेती छोटे पैमाने पर किसानों द्वारा की जा रही है।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर द्वारा विकसित कतरनी की किस्में-
सबौर सुरभित-सुगंधित महीन अनाज, उपज 40-45 क्विंटल/हेक्टेयर, सीमित सिंचाई
सबौर गहरा - जल्दी पकने वाला महीन अनाज, उपज 40-45 क्विंटल / हेक्टेयर,
सबौर अर्धजल- लंबा पतला दाना, उपज 50-55 क्विंटल/हेक्टेयर
सबौर श्री- मध्यम पतले दाने वाली किस्म, उपज 40-50 क्विंटल / हेक्टेयर

बाजार:
किसान अपनी उपज स्थानीय मंडी में बेचते हैं, कुछ इसे बिचौलिए को भी बेचते हैं।

जलवायु और मिट्टी:
उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी चावल की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है।
कतरनी चावल एक खरीफ फसल है और इसके लिए उच्च तापमान (25C से ऊपर) और उच्च आर्द्रता वार्षिक वर्षा 100 सेमी से अधिक की आवश्यकता होती है।
बांका भागलपुर जिले का एक उप-मंडल था, जो अपनी आदिवासी संस्कृति, हस्तशिल्प और हथकरघा के लिए प्रसिद्ध था। क्षेत्र की घर की बनी खादी और रेशम लोकप्रिय है। इस क्षेत्र में अधिकांश कच्चे रेशम कोकून का उत्पादन किया जाता है और भागलपुर में रेशम उद्योग को कच्चे माल की आपूर्ति की जाती है।