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कोदो और कुटकी बाजरा प्रजाति के अनाज हैं। इनका वानस्पतिक नाम क्रमशः Paspalum Scrobiculatum और Panicum Sumatrance है। कोडू और कुटकी के दानों को चावल की तरह खाया जा सकता है. इनके अनाज में क्रमशः 8.3 और 7.7 ग्राम प्रोटीन होता है।

लघु धान्य फसलों की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है। सांवा, काकुन एवं रागी को मक्का के साथ मिश्रित फसल के रूप में लगाते हैं। रागी को कोदो के साथ भी मिश्रित फसल के रूप में लेते है।

ये फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान फसलें हैं जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। ये फसलें अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के प्रारंभ में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान फसलें इस समय पर नही पक पाती और बाजार में खाद्यान का मूल्य बढ़ जाने से गरीब किसान उन्हें नही खरीद पाते हैं। अतः उस समय 60-80 दिनों में पकने वाली कोदो-कुटकी, सावां,एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यानों के रूप में प्राप्त होती है।

Balaghat जिले की प्रमुख फसलें