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Coriander (धनिया)

Basic Info

प्राचीन काल से ही विश्व में भारत देश को ''मसालों की भूमि'' के नाम से जाना जाता है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते हैं। धनिया मसालों वाली फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसके दानों में पाये जाने वाले वाष्पशील तेल के कारण यह भोज्य पदार्थों को स्वादिष्ट एवं सुगन्धित बनाती है। भारत में इसकी खेती मुख्यतः राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा कर्नाटक में की जाती है| धनिया के कुल उत्पादन का एक बड़ा भाग श्रीलंका, जापान, सिंगापुर, ब्रिटेन, अमेरिका व मलेशिया को भेजा जाता है, जिससे विदेशी मुद्रा की आय होती है
मध्यप्रदेश में धनिया की खेती 1,16,607 हे. में होती है जिससे लगभग 1,84,702 टन उत्पादन प्राप्त होता है। औसत उपज 428 किग्रा./हे. है। म.प्र के गुना, मंदसौर, शाजापुर, राजगढ़, विदिशा, छिंदवाड़ा आदि प्रमुख धनिया उत्पादक जिले हैं।

Seed Specification

धनिया की उन्नत किस्में
धनिया का अधिकतम उत्पादन लेने हेतु उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिये। धनिया की निम्न किस्में- हिसार सुगंध, आरसीआर41, कुंभराज, आरसीआर 435, आरसीआर 436, आरसीआर 446, जी सी 2 (गुजरात धनिया 2), आरसीआर 684, पंत हरितमा, सिम्पो एस 33, जे डी-1, एसीआर1, सी एस 6, आरसीआर480, आरसीआर728 

बुवाई का समय
धनिया की फसल रबी मौसम में बोई जाती है। धनिया बोने का सबसे उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर है। धनिया की सामयिक बोनी लाभदायक है। दानों के लिये धनिया की बुआई का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा हैं हरे पत्तों की फसल के लिये अक्टूबर से दिसम्बर का समय बिजाई के लिये उपयुक्त हैं। पाले से बचाव के लिये धनिया को नवम्बर के द्वितीय सप्ताह मे बोना उपयुक्त होता है।

बीज की मात्रा
सिंचित अवस्था में 15-20 कि.ग्रा./हे. बीज तथा असिंचित में 25-30 कि.ग्रा./हे. बीज की आवश्यकता होती है।

बीजोपचार
भूमि एवं बीज जनित रोगो से बचाव के लिये बीज को कार्बेंन्डाजिम+थाइरम (2:1)3 ग्रा./कि.ग्रा. या कार्बोक्जिन 37.5 प्रतिशत+थाइरम 37.5 प्रतिशत 3 ग्रा./कि.ग्रा. तथा ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। बीज जनित रोगों से बचाव के लिये बीज को स्टे्रप्टोमाईसिन 500 पीपीएम से उपचारित करना लाभदायक है।

बुवाई की विधि
बोने के पहले धनिया बीज को सावधानीपूर्वक हल्का रगड़कर बीजो को दो भागो में तोड़ कर दाल बनावें| धनिया की बोनी सीड ड्रील से कतारों में करें, कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 7 से 10 सेंटीमीटर रखें भारी भूमि या अधिक उर्वरा भूमि में कतारों की दूरी 40 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। धनिया की बुवाई पंक्तियों में करना अधिक लाभदायक है। कूड में बीज की गहराई 2 से 4 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए बीज को अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण कम होता है

Land Preparation & Soil Health

भूमि का चयन
धनिया की सिंचित फसल के लिये अच्छे जल निकास वाली अच्छी दोमट भूमि सबसे अधिक उपयुक्त होती है तथा असिंचित फसल के लिये काली भारी भूमि अच्छी होती है। धनिया क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नही करता है। अर्थात अच्छे जल निकास एवं उर्वरा शक्ति वाली दोमट या मटियार दोमट भूमि उपयुक्त होती है। मिट्टी का पी एच मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए

उपयुक्त जलवायु
धनिया की खेती के लिए शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिये अनुकूल होता है बीजों के अंकुरण के लिय 25 से 26 सेंटीग्रेट तापमान अच्छा होता है धनिया शीतोष्ण जलवायु की फसल होने के कारण फूल तथा दाना बनने की अवस्था पर पाला रहित मौसम की आवश्यकता होती है। धनिया को पाले से बहुत नुकसान होता है धनिया बीज की उच्च गुणवत्ता और अधिक वाष्पशील तेल के लिये ठंडी जलवायु, अधिक समय के लिये तेज धूप, समुद्र से अधिक ऊचाई और ऊचहन भूमि की आवश्यकता होती है

खेत की तैयारी
सिंचित क्षेत्र में अगर जुताई के समय भूमि में पर्याप्त जल न हो तो भूमि की तैयारी पलेवा देकर करनी चाहिए जिससे जमीन में जुताई के समय ढेले भी नही बनेगें तथा खरपतवार के बीज अंकुरित होने के बाद जुताई के समय नष्ट हो जाऐगे बारानी फसल के लिये खरीफ फसल की कटाई के बाद दो बार आड़ी-खड़ी जुताई करके तुरन्त पाटा लगा देना चाहिए

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं रासायनिक उर्वरक 
असिंचित धनिया की अच्छी पैदावार लेने के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर खाद 20 टन/हे. के साथ 40कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30 कि.ग्रा. फास्फोरस, 20 कि.ग्रा.पोटाश तथा 20 कि.ग्रा.सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से तथा 60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40 कि.ग्रा. स्फुर, 20 कि.ग्रा.पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित फसल के लिये उपयोग करें। तथा अन्य पोषक तत्व मिट्टी परिक्षण के आधार पर देना चाहिए।

कीट एवं नियंत्रण
माहु/चेपा (एफिड)- धनिया में मुख्यतः माहू चेपा रसचूसक कीट का प्रकोप होता है| इस कीट के हल्के हरे रंग वाले शिश व प्रौढ़ दोनो ही पौधे के तनों, फूलों एवं बनते हुए बीजों जैसे कोमल अंगो का रस चूसते हैं
नियंत्रण- रोकथाम के लिए आक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई सी 1.5 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी या डायमेथियोट 35 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 ई सी 0.25 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी की दर से छिडकाव करे

रोग एवं नियंत्रण
उकठा/उगरा (विल्ट)- उकठा रोग फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम एवं फ्यूजेरियम कोरिएनड्री कवक के द्वारा फैलता है। इस रोग के कारण पौधे मुरझाकर सूख जाते है
नियंत्रण- उकठा के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी या हेक्जाकोनोजॉल 5 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या मेटालेक्जिल 35 प्रतिशत 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या मेटालेक्जिल मेंकोजेब- 72 एम जेड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें
तनाव्रण/तना सूजन/तना पिटिका (स्टेमगॉल)- यह रोग प्रोटामाइसेस मेक्रोस्पोरस कवक के द्वारा फैलता है रोग के कारण फसल को अत्यधिक क्षति होती है पौधो के तनों पर सूजन हो जाती है तनों, फूल वाली टहनियों एवं अन्य भागों पर गांठे बन जाती है| बीजों में भी विकृतिया आ जाती है
नियंत्रण- रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्ट्रेप्टोमाइसिन 0.04 प्रतिशत 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी का 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें
चूर्णिल आसिता /भभूतिया- यह रोग इरीसिफी पॉलीगॉन कवक के द्वारा फैलता है। इससे फल रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों एवं शाखा सफेद चूर्ण की परत जम जाती है। अधिक प्रभाव होने पर पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है
कार्बेन्डाजिम 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या एजॉक्सिस्ट्रोबिन 23 एस सी 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी या हेक्जाकोनोजॉल 5 ईसी 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या मेटालेक्जिल मेंकोजेब- 72 एम जेड 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण 
धनिया फसल में खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि 35 से 40 दिन है। इस अवधि में खरपतवारों की निंदाई नहीं करने पर धनिया की उपज 40 से 45 प्रतिशत कम हो जाती है धनिया फसल में खरपतवरों की अधिकता होने पर खरपतवारनाशी पेंडिमीथालिन 30 ई सी 3 लीटर को 600 से 700 पानी में मिलकर प्रति हेक्टेयर बुवाई के 2 दिन तक छिडकाव कर के नियंत्रण पाया जा सकता है

सिंचाई
धनिया में पहली सिंचाई 30 से 35 दिन बाद (पत्ति बनने की अवस्था) दूसरी सिंचाई 50 से 60 दिन बाद (शाखा निकलने की अवस्था), तीसरी सिंचाई 70 से 80 दिन बाद (फूल आने की अवस्था) तथा चौथी सिंचाई 90 से 100 दिन बाद (बीज बनने की अवस्था ) करना चाहिऐ| हल्की जमीन में पांचवी सिंचाई 105 से 110 दिन बाद (दाना पकने की अवस्था) करना लाभदायक रहता है

पाले से बचाव
धनिया की फसल को पाले से अधिक नुकसान होता है। फसल को पाले से बचने हेतु जब पाला पड़ने की सम्भावना हो तब एक हल्की सिंचाई कर देना चाहिए। 
पाला पड़ने की संभावना होने पर फसल पर गंधक अम्ल 0.1 प्रतिशत (1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) का छिड़काव शाम को करें
जब भी पाला पड़ने की संभावना दिखाई दे, तो आधी रात के बाद खेत के चारो ओर कूड़ा-करकट जलाकर धुआँ कर देना चाहिए

Harvesting & Storage

फसल की कटाई
धनिये की फसल जब 90-100 दिन में पककर तैयार हो जाये और फूल आना बंद हो जाये और बीजो की गुच्छो का रंग हरा से चमकीला भूरा हो जाये तब फसल कटाई के लिए तैयार मानी जाती है। फसल को कटाई के बाद खलिहान में छाया में सुखाना चाहिए पूरी तरह सुख जाने के पर दाने को अलग अलग करके साफ कर लेते है इसके बाद दानो को सुखाकर बोरियों में भर लेते हैं। 
धनिया की उपज किस्म, मौसम और फसल की देखभाल आदि पर निर्भर करती है परन्तु उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर सिंचित फसल से 6 से 10 क्विंटल बीज तथा 80 से 100 क्विंटल पत्तियों की उपज तथा असिंचित फसल की 4 से 6 क्विंटल उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है

भण्डारण: भण्डारण के समय धनिया बीज में 9-10 प्रतिशत नमी रहना चाहिए। धनिया बीज का भण्डारण पतले जूट के बोरों में करना चाहिए। बोरों को जमीन पर तथा दिवार से सटे हुए नही रखना चाहिए। जमीन पर लकड़ी के गट्टों पर बोरों को रखना चाहिए। बीज के 4-5 बोरों से ज्यादा एक के ऊपर नही रखना चाहिए। बीज के बोरों को ऊंचाई से नही फटकना चाहिए। बीज के बोरें न सीधे जमीन पर रखें और न ही दीवार पर सटाकर रखें। बोरियों मे भरकर रखा जा सकता है।


Crop Related Disease

Description:
पत्ती की कलियों और अन्य पौधों के मलबे के अंदर फंगल स्पॉन्सर ओवरविनटर। हवा, पानी और कीड़े आसपास के पौधों को बीजाणु पहुंचाते हैं। भले ही यह कवक है, लेकिन पाउडर फफूंदी सामान्य रूप से सूखे की स्थिति में विकसित हो सकती है। यह 10-12 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान पर जीवित रहता है, लेकिन 30 डिग्री सेल्सियस पर इष्टतम स्थिति पाई जाती है। नीच फफूंदी के विपरीत, अल्प मात्रा में वर्षा और नियमित रूप से सुबह ओस चूर्ण फफूंदी के प्रसार को तेज करता है।
Organic Solution:
सल्फर, नीम तेल, काओलिन या एस्कॉर्बिक एसिड पर आधारित पर्ण स्प्रे गंभीर संक्रमण को रोक सकते हैं।
Chemical Solution:
यदि उपलब्ध हो तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के साथ एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें। उन फसलों की संख्या के मद्देनजर जो कि ख़स्ता फफूंदी के लिए अतिसंवेदनशील हैं, किसी भी विशेष रासायनिक उपचार की सिफारिश करना मुश्किल है। Wettable सल्फर (3 g / l), हेक्साकोनाज़ोल, माइकोबुटानिल (सभी 2 मिलीलीटर / l) पर आधारित कवक कुछ फसलों में कवक के विकास को नियंत्रित करते हैं।
Description:
स्टेम रोट कवक कैफोफोरा ग्रेगाटा (Cadophora gregata) के कारण होता है। ब्राउन स्टेम रोट अधिक गंभीर होता है जब तापमान ठंडा होता है और मिट्टी की नमी मौजूद होती है। गैर-मेजबान फसल (मकई, छोटे अनाज, और चारा फलियां) के लिए फसल का रोटेशन रोगज़नक़ के स्तर को कम करेगा।
Organic Solution:
सहिष्णु और प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग | फसल चक्रण का पालन किया जाना चाहिए। पिछली फसल अवशेष नष्ट हो जाना चाहिए। • फसल अवशेषों को निकालना।
Chemical Solution:
2 किलो / हेक्टेयर पर मैनकोजेब का छिड़काव करें।
Description:
यह रोग आमतौर पर अंकुर अवस्था में दिखाई देता है। यह रोग पत्तियों में पानी की कमी के कारण होता है और यह मृदा जनित बीमारी है।
Organic Solution:
अपनी मिट्टी का परीक्षण करें और वनस्पति उद्यान में धीमी गति से रिलीज, जैविक उर्वरक का उपयोग करें। एक खरपतवार या प्राकृतिक शाकनाशी का उपयोग करके हाथ खींचना या धब्बों का इलाज करना - कई खरपतवार प्रजातियां रोग के रोगज़नक़ों की मेजबानी करती हैं।
Chemical Solution:
बीज राइजोम को रोपण के लिए रोग मुक्त खेतों से लेना चाहिए। बीज rhizomes 30 मिनट के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 200 पीपीएम के साथ इलाज किया जा सकता है और रोपण से पहले छाया सूख जाता है। एक बार जब रोग क्षेत्र में देखा जाता है, तो सभी बेड बोर्डो मिश्रण 1% या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.2% से भीगना चाहिए। माइकोस्टॉप एक जैविक कवकनाशी है जो फ़ुस्सैरियम के कारण होने वाले विल्ट से फसलों की रक्षा करेगा।

Coriander (धनिया) Crop Types

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Frequently Asked Questions

Q1: भारत में किस मौसम में धनिया उगाया जाता है?

Ans:

धनिया मुख्य रूप से भारत में रबी की फसल है और बुवाई अक्टूबर के मध्य में शुरू होती है और नवंबर के अंत तक फैलती है। फसल को 4-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

Q3: मैं घर पर धनिया कैसे उगा सकता हूं?

Ans:

आप पूर्ण सूर्य और अच्छी तरह से सूखा मिट्टी में 6.2 से 6.8 पीएच के साथ धनिया उगा सकते हैं। धनिया के बीज को मिट्टी में लगभग आधा से एक इंच गहरा बोयें। बीज को लगभग 6 इंच के अंतर पर रखें। बीजों के ऊपर मिट्टी को दबाएं और ठीक गीली घास की आधा इंच की परत के साथ कवर करें।

Q5: धनिया की खेती कहाँ की जाती है?

Ans:

धनिया एक वार्षिक सब्जीवर्गीय और जड़ी बूटी है, जिसकी खेती मुख्य रूप से इसके फलों के साथ-साथ कोमल हरी पत्तियों के लिए की जाती है। यह भूमध्यसागरीय क्षेत्र का मूल निवासी है। भारत में, यह आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान और मध्य प्रदेश में उगाया जाता है।

Q2: धनिया को उगने में कितना समय लगता है?

Ans:

धनिया का अंकुरण 3 सप्ताह तक होता है। पतले युवा पौधों को 20 सेमी के अलावा उन्हें अपने पूर्ण आकार में बढ़ने की अनुमति दें। उन्हें शुष्क अवधि में पानी दें और सुनिश्चित करें कि मिट्टी कभी सूख न जाए। यदि फूल उन्हें तुरंत हटा देते हैं - तो यह सुनिश्चित करता है कि पौधे नई पत्तियों के बढ़ने पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करें।

Q4: धनिया किस उर्वरक के लिए सबसे अच्छा है?

Ans:

धनिया मिट्टी को पसंद करता है जो थोड़ा अम्लीय है। पौधों के लगभग 2 इंच तक पहुंचने के बाद संतुलित 10-10-10 पानी में घुलनशील उर्वरक के साथ हर दूसरे सप्ताह में खाद डालें। मिट्टी को हल्के से नम रखें लेकिन जल भराव नहीं। जब पत्तियों की नियमित रूप से कटाई की जाती है, तो सीलेंट्रो सबसे अच्छा बढ़ता है।

Q6: क्या धनिया आंखों के लिए अच्छा है?

Ans:

धनिया आंखों के लिए अच्छा होता है। धनिया में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट आंखों की बीमारियों से बचाते हैं। यह नेत्रश्लेष्मलाशोथ के उपचार में एक अच्छा उपाय है।