kisan

Gram (चना)

Basic Info

चना एक प्रमुख दलहनी फसल है। चने को दालों का राजा कहा जाता है। पोषक मान की दृष्टि से चने के 100 ग्राम दाने में औसतन 11 ग्राम पानी, 21.1 ग्राम प्रोटीन, 4.5 ग्रा. वसा, 61.5 ग्रा. कार्बोहाइड्रेट, 149 मिग्रा. कैल्सियम, 7.2 मिग्रा. लोहा, 0.14 मिग्रा. राइबोफ्लेविन तथा 2.3 मिग्रा. नियासिन पाया जाता है। चने की पैदावार वाले मुख्य देश भारत, पाकिस्तान, इथियोपिया, बर्मा और तुर्की आदि हैं। इसकी पैदावार पूरे विश्व में से भारत में सबसे ज्यादा हैं और इसके बाद पाकिस्तान है।भारत में मध्य प्रदेश, राज्यस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और पंजाब आदि मुख्य चने उत्पादक राज्य हैं।

Seed Specification

चने का वर्गीकरण 
चने की खेती - कई गुणों से भरपूर चने को CHICKPEA व  BENGAL GRAM के नाम से भी जानते है। चने को दो जातियो में वर्गीकृत किया गया हैं-
साइसर एरिटिनम: देशी चना के नाम से जाना जाता है।
साइसर काबुलियम: इसे काबुली चना के नाम से जाना जाता है।

चने की उन्नत किस्में 
हरा छोला न०1, गौरव ( एच 75-35 ), राधे, चफा, के० 4, के० 408, के० 850, अतुल (पूसा 413), अजय (पूसा 408), अमर (203), गिरनार।

बीज की मात्रा
देशी चने की किस्मों के लिए – 70-80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
काबुली चने की जातियों के लिए _ 100-125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
देर से बुवाई करने पर – 90-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

बीज उपचार 
चने की फसल पर फंफूदजनित रोगों से बचाव हेतु थायरम व केप्टान की 0.25 यानीं 100 किलोग्राम बीज की मात्रा में 250 ग्राम दवा मिलाकर उपचारित कर लेना चाहिए। बीज में जल्द अंकुरण के लिए राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए।

बुवाई का समय
मैदानी क्षेत्रों में – 15 अक्टूबर से नवम्बर का प्रथम सप्ताह तक
तराई क्षेत्रों में – 15 नवम्बर से पूरे माह तक

अंतरण व दूरी
चने की बुवाई पौध से पौध की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखने पर अच्छी उपज मिलती है।

चने की बुवाई की विधि
बुवाई के लिए किसान डिबलर की मदद ले सकते है, डिबलर के माध्यम से जो निशान बनते है वह पर बीज को 5 से 8 सेंटीमीटर की गहराई पर बोये, किसान अगर चाहे तो बड़े एरिया के लिए सीडड्रिल और देशी हल से बुवाई कर सकते है।

Land Preparation & Soil Health

भूमि का चयन
चने की फसल कि उचित जल निकास वाली दोमट भूमि जो की समतल हो, इस तरह की मिट्टी को उपयुक्त माना गया है, चने की फसल बलुई दोमट,मटियार दोमट व काली मिटटी में सफतापूर्वक की जाती है। इसके पौधों के विकास के लिए भूमि का पीएच 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए, ताकि फसल की पैदावार अच्छी हो।

भूमि की तैयारी
भूमि पलटने वाले हल से 1 जुताई के बाद 2-3 जुताइयाँ देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करें। हर जुताई करने के बाद खेत में पाटा चलाकर भूमि को ढेले रहित बनाकर समतल बना लेना चाहिए।

जलवायु व तापमान
चना एक ऐसी फसल है जो ठन्डे व शुष्क मौसम की फसल में आती है। इसके अलावा चने के अंकुरण की अगर बात की जाये तो इसके लिए उच्च तापमान की जरुरत भी होती है। चने के पौधे के बेहतर विकास के लिए अत्यधिक कम व मध्यम वर्षा वाले अथवा 65 से 95 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त हैं।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद व उर्वरक
चने के पौधे में नाइट्रोजन को वायुमंडल से अवशोषित करने के लिए रायजोबियम नाम का बेक्टेरिआ होता है। चने में अंकुरण के बाद जीवाणुओं की ग्रंथियां बनने में 25-30 दिन लग जाते हैं, ऐसे में नाइट्रोजन की 15 से 20 किलोग्राम व 40 से 50 फॉस्फोरस तथा 40 से 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर देना चाहिए।

चने की फसल पर लगने वाले रोग व नियंत्रण
उकठा रोग - इसे फफूंदजनित रोग कहा जाता है। फसल में ये उकठा रोग फ्यूजेरियम अर्थोसोरैस नाम के कवक के जरिये होता है। पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है। तना काला पड जाता है। यह रोग चने के उत्पादन को लेकर बुरा असर डालता है, जिस पौधे या पत्ती में ये रोग लग जाता है, फिर ये पौधे की बढ़ोतरी पर रोकथाम लगा देता है।

बचाव व रोकथाम: बीजों को बुवाई से पहले थायरम अथवा केप्टान से उपचारित कर लेना चाहिए। चने की बुवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में ही करें। चने की खेती हेतु उकठा प्रतिरोधी किस्में जैसे अवरोधी, बी०जी०244, बी०जी० 266, ICCC 32, CG 588, GNG 146, इत्यादि का चयन करना चाहिए।
चने की रस्ट अथवा गेरुई - यह रोग Uromyces Cicerisarietira नामक कवक द्वारा होता है। रोग के भयंकर प्रकोप होने पर रोगी पत्ते मुड़कर सूखने लगते हैं। चने की फसल में इस रोग का ज्यादातर प्रकोप उत्तर प्रदेश,पंजाब,राज्यों में होता है।

बचाव व रोकथाम: बीजों को बुवाई से पहले थायरम अथवा केप्टान से उपचारित करे, इसके अलावा आप चाहे तो डायथेन एम् 45 की 0.2 प्रतिशत मात्रा को बुवाई के 10 दिन बाद छिडकाव कर सकते है।

चने का ग्रे मोल्ड रोग - इस फफूंदजनित रोग की उत्पत्ति Botrytis Cinerea नाम के कवक के कारण होती  है। यह चने के खेत में उत्तरजीवी के रूप में रहता है। उपज व दानों की गुणवत्ता दोनों पर बुरा प्रभाव डालता है।

बचाव व रोकथाम: बीजों को बुवाई से पहले थायरम अथवा केप्टान से उपचारित कर लेना चाहिए।

चने का अंगमारी रोग - इस रोग में पौधे पीले पड़कर सूख जाते हैं, इसका प्रकोप उत्तर-पश्चिमी भारत में बोये गये चने की खेती पर पड़ता है। इस रोग से प्रभावित पौधे की तने,पत्तियों व फलों पर छोटे-छोटे कत्थई धब्बे पड़ जाते हैं।

बचाव व रोकथाम: चने की अंगमारी प्रतिरोधी किस्म C 235 उगाना चाहिए। बीजों को बुवाई से पहले थायरम अथवा केप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण 
चने की फसल में खरपतवार की रोकथाम के लिए पहली गोडाई हाथों से या घास निकालने वाली चरखड़ी से बुवाई के 25-30 दिन बाद करें और जरूरत पड़ने पर दूसरी गोडाई बिजाई के 60 दिनों के बाद करें। खरपतवार की प्रभावशाली रोकथाम के लिए बुवाई से पहले पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति 200 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 3 दिन बाद एक एकड़ में  छिड़काव करें। कम नुकसान होने पर खरपतवारनाशक की बजाय हाथों से गोडाई करें या कही से घास निकालें। इस से मिट्टी हवादार बनी रहती है।

सिंचाई
चने की फसल में सिंचाई की उचित व्यवस्था होने पर बुवाई से पहले पहले एक बार पानी दें। इससे बीज अच्छे ढंग से अंकुरित होते हैं और फसल की वृद्धि भी अच्छी होती है। दूसरी बार पानी फूल आने से पहले और तीसरा पानी फलियों के विकास के समय डालें। अगेती वर्षा होने पर सिंचाई देरी से और आवश्यकतानुसार करें। अनआवश्यक पानी देने से फसल का विकास और पैदावार कम हो जाती है। यह फसल पानी के ज्यादा खड़े रहने को सहन नहीं कर सकती, इसके लिए अच्छे जल निकास की व्यवस्था करें।

Harvesting & Storage

चने की कटाई
बुवाई के लगभग 120-130 दिन बाद जब चने के दाने सख़्त हो जाएँ। हसियाँ व दराती की सहायता से फ़सल काट लें। औसतन चने की फ़सल में सभी कृषि कार्यों को मिलकर 150-170 दिन का समय लगता है।

चने की पैदावार उपज
चने की खेती से उपज औसतन –
असिंचित क्षेत्र में - 15-20 कुन्तल प्रति हेक्टेयर
सिंचित क्षेत्र में - 25-30 कुन्तल प्रति हेक्टेयर

भंडारण
सुखाने के पश्चात दानों में 10-12 प्रतिशत नमी रह जाने पर भंडार गृह में भंडारित कर दें।


Crop Related Disease

Description:
यह चना की खेती का प्रमुख रोग है| उकठा रोग का प्रमुख कारक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम प्रजाति साइसेरी नामक फफूद है| यह सामान्यतः मृदा तथा बीज जनित बीमारी है, जिसकी वजह से 10 से 12 प्रतिशत तक पैदावार में कमी आती है| यह एक दैहिक व्याधि होने के कारण पौधे के जीवनकाल में कभी भी ग्रसित कर सकती है|
Organic Solution:
1. चना की बुवाई उचित समय यानि अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक करें| 2. गर्मियों मई से जून में गहरी जुताई करने से फ्यूजेरियम फफूंद का संवर्धन कम हो जाता है| मृदा का सौर उपचार करने से भी रोग में कमी आती है| 3. पाच टन प्रति हेक्टेयर की दर से कम्पोस्ट का प्रयोग करें 5 फफूंदनाशी द्वारा बीज शोधित करके बुवाई करें| मिट्टी जनित और बीज जनित रोगों के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैवकवकनाशी) टाइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू पी या टाइकोडर्मा हरजिएनम 2 प्रतिशत डब्लू पी 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा को 60 से 75 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 7 से 10 दिन तक छाया में रखने के बाद बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से चना को मिट्टी बीज जनित रोगों से बचाया जा सकता है|
Chemical Solution:
5. कार्बेन्डाजिम 0.5 प्रतिशत या बेनोमिल 0.5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|

Gram (चना) Crop Types

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Frequently Asked Questions

Q1: छोले सबसे अच्छे कहाँ से उगते हैं?

Ans:

संयुक्त राज्य अमेरिका (15,000 एकड़) में ज़्यादातर छोले की तीली कैलिफोर्निया (8,000 एकड़) में है, लेकिन पूर्वी वाशिंगटन, इदाहो और मोंटाना के कुछ हिस्सों में अब इस फसल को सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है।

Q3: किस प्रकार की मिट्टी में चना उगाया जाता है?

Ans:

हालांकि, सबसे अनुकूल मिट्टी गहरे पीएच या 6.0 से 8.0 तक के पीएच के साथ सिल्ट मिट्टी के दोम हैं। एक उच्च पानी की मेज के साथ खारा मिट्टी और खेत चना के लिए उपयुक्त नहीं हैं। खेत की तैयारी: मृदा में खराब वातन के लिए चीकू के पौधे अत्यधिक संवेदनशील होते हैं।

Q5: चना उत्पादन में सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला राज्य कौन सा है ?

Ans:

चना की प्रति हेक्टेयर उपज आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक है, इसके बाद बिहार और गुजरात का स्थान है।

Q2: छोले का भारतीय नाम क्या है?

Ans:

देसी चना में छोटे, गहरे रंग के बीज और एक मोटा कोट होता है। वे ज्यादातर भारत में और भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य हिस्सों में और साथ ही इथियोपिया, मैक्सिको और ईरान में उगाए जाते हैं। देसी का अर्थ है "देश" या "देशी" हिंदी-उर्दू में; इसके अन्य नामों में काला चना (हिंदी-उर्दू में "काला चिकपा") या छोला बूट शामिल हैं।

Q4: छोले को उगने में कितना समय लगता है?

Ans:

चना को परिपक्व होने के लिए 90-100 दिनों की आवश्यकता होती है। अंतिम औसत ठंढ की तारीख से लगभग 4 सप्ताह पहले उन्हें घर के अंदर शुरू करें। इष्टतम मिट्टी का तापमान: 10 ° C (50 ° F)। स्थितियों के आधार पर 14-21 दिनों में बीज अंकुरित होते हैं।

Q6: विश्व में सबसे अधिक चना उत्पादन किस देश में होता हैं ?

Ans:

चना का सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में होता है। और दूसरा सर्वाधिक उत्पादक देश ऑस्ट्रेलिया हैं।