Nigella Seeds (कलौंजी)
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Nigella Seeds (कलौंजी)

कलौंजी (Nigella sativa) को "Black Cumin" Kalonji भी कहा जाता है, छोटे काले Kalonji बीज झाड़ियों पर होते है। जो व्यापक रूप से मध्य भारत में उगाया जाता है। कलौंजी रनुनकुलेसी कुल का झाड़ीय पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम “निजेला सेटाइवा” है, कलौंजी को देश के विभिन्न भागो में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसे मुख्य तौर पर इसके बीजों के लिए उगाते है जिनका प्रयोग मसाला के रूप में अचार में ,बीजो तथा उनसे तैयार तेल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में तथा सुगंध उद्योग में भी किया जाता है।

उन्नत किस्म: AZAD KALONJI: यह 1, N.R.C.S.S.A.N.1 की महत्वपूर्ण विविधता है।
इसके अलावा N.S 44- भी कलौंजी की एक लोकप्रिय किस्म है। यह कटाई के लिए लगभग 150-160 दिनों में तैयार हो जाती है। उत्पादन लगभग 4.5-5.5 टन / हेक्टेयर है।

जलवायु: कलौंजी एक ठंढी जलवायु की फसल है। इसे मुख्यता उत्तरी भारत में सर्दी के मौसम में रबी में उगाया जाता है इसकी बुआई व बढवार के समय हल्की ठंठी तथा पकने के समय हल्की गरम जलवायु की जरूरत पड़ती है।

भूमि: कलौंजी को जीवांश युक्त अच्छे जल निकास वाली सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। दोमट व बलुई भूमि कलौंजी की फसल उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त है। उचित जल निकास प्रबंध द्वारा इस फसल को भारी भूमि में भी उगाया जा सकता है। 

खेत की तैयारी: भरपूर उत्पादन के लिए भूमि को अच्छी तरह से तैयार करना जरूरी है। इसके लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में 2-3 जुताईया कल्टीवेटर से करके खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके पश्चात पाटा लगाकर मिट्टी को बारीक करकर खेत को समतल करें। अच्छे अंकुरण के लिए बुआई से पूर्व खेत में उचित नमी होना आवश्यक है। इस लिए खेत को पलेवा देकर बुआई करना अच्छा रहता है।

बुआई का समय: अक्टूबर माह में करना उचित है।

बीज दर: 7-8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

बीजोपचार: बीज जनित रोग जड़ गलन की रोकथाम हेतु बीज को 2.5 ग्राम/किलोराम बीज की दर से केप्टान या थीरम फफूदीनासी से उपचारित करना चाहिए।

बुआई की विधि: कलौंजी की बुआई छिटकवाँ विधि से या लाइनों में की जाती है परन्तु लाइनों में बुआई करना अधिक उपयुक्त रहता है अतः लेने की दूरी 30 सेमी रखकर बुआई करें। अंकुरण के पश्चात 15 से 20 दिन पश्चात पौधों की दूरी 15 सेमी कर दे। बीज को 1.5 सेमी से अधिक गहरा न बोये। अन्यथा बीज के जमाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। बुआई के समय यदि खेत में नमी की मात्रा कम हो तो हल्की सिचाई बुआई के उपरांत की जा सकती है।

खाद एवं उर्वरक: खाद एवं उर्वरक की मात्रा खेत की मिट्टी परिक्षण करवा कर ही देनी चाहिए। कलौंजी की अच्छी पैदावार के लिए 10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालना चाहिए इसके अतिरिक्त सामान्य उर्वरता वाली भूमि के लिए प्रति हेक्टेयर 40:20:15 NPK का तत्व के रूप में प्रयोग किया जाता है। नाइट्रोजन की मात्रा दो बराबर भागो में बुआई से 30 व 60 दिन के अंतर पर खड़ी फसल में सिचाई के साथ डालना चाहिए।

निराई गुड़ाई: कलौंजी की फसल लेने तथा खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए दो तीन निराई-गुड़ाई की जरूरत पड़ती है। लगभग हर 30 दिन के अंतर पर निराई गुड़ाई की जानी चाहिए। पहली निराई-गुड़ाई के समय फालतू पौधों को निकाल देवें।

सिचाई: फसल की जरुरत अनुसार सिंचाई कर देना चाहिए।

फसल सुरक्षा: मुख्य कीट व रोग निम्न है---
कटवा इल्ली - यह इल्ली पौधे को जमीन के पास से काटकर नुकसान पहुँचाती है। इसकी रोकथाम के लिए लोरोपाइरफास 20 ईसी दवा का 2.5 मिली / लीटर पानी के हिसाब से मिलाकर छिड़काव करें।

जड गलन: कलौंजी की मुख्य समस्या है इसके लिए रोग रहित बीज प्रयोग करें, बीज को उपचारित करके बोयें।

फसल कटाई: कलौंजी की फसल लगभग 120-140 दिन में पककर तैयार हो जाती  है, कटाई के लिए तैयार फसल को पूरे पौधे से उखाड़ लिया जाता है और खलिहान में 5-6 दिन तक सूखाने के लिए रखते है। सूखाने के पश्चात डंडे से पीटकर बीजों को अलग कर लेना चाहिए।

उपज: एक हेक्टेयर से औसतन 8-10 क्विंटल की उपज प्राप्त की जा सकती है।

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