Basic Info
भारत विश्व में दलहनी फसलों के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। खरीफ की दलहनी फसलों में अरहर प्रमुख है। यह एक महत्वपूर्ण फसल है और प्रोटीन का स्त्रोत है। यह फसल ऊष्ण और उप ऊष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है। भारत देश में अरहर को अरहर, तुर, रेड ग्राम, व पिजन पी के नाम से जाना जाता है। अरहर का जन्म स्थान वैज्ञानिक भारत व दक्षिण अफ़्रीका मानते हैं। हम भारतवासियों के लिए यह बड़े गर्व की बात है। घर घर में प्रोटीन का मुख्य स्रोत के लिए मशहूर अरहर हमारे देश का पौधा है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश देश के प्रमुख अरहर उत्पादक राज्य हैं।
Seed Specification
अरहर की प्रसिद्ध किस्में :-
ऋचा २००० - अरहर की सदाबहार किस्म,उपास-120 (1976), आई.सी.पी.एल.-87 (प्रगति,1986), ट्राम्बे जवाहर तुवर - 501 (2008), जे.के.एम.-7 (1996), जे.के.एम.189 (2006), आई.सी.पी.-8863 (मारुती, 1986), जवाहर अरहर-4 (1990), आई.सी.पी.एल.-87119 (आषा 1993),आई.सी.पी.एल.-87119 (आषा 1993), बी.एस.एम.आर.-853 (वैषाली, 2001), बी.एस.एम.आर.-736 (1999), विजया आई.सी.पी.एच.-2671 (2010), एम.ए-3 (मालवीय, 1999), ग्वालियर-3 (1980),
बुवाई का समय :-
अरहर की बुवाई वर्षा प्रारम्भ होने के साथ ही कर देना चाहिए। सामान्यतः जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बोनी करें। बिजाई के लिए 50 से.मी. कतारों में और 25 से.मी. पौधों में फासला रखें।
बीज की मात्रा :-
अगेती किस्म के लिए 6 से 8 किलो ग्राम तथा पिछेती क़िस्मों के लिए भी 8 -10 किलो ग्राम बीज की मात्रा प्रति एकड़ उपयुक्त होता है।
बीज उपचार :-
बुवाई के पूर्व फफूदनाशक दवा 2 ग्राम थायरम या 1 ग्राम कार्बेन्डेजिम या वीटावेक्स 2 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। जैविक उपचार में ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम /किलो बीज और रायजोबियम कल्चर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर फिर बुवाई करें।
Land Preparation & Soil Health
भूमि :-
अरहर का अच्छे उप्तादन हेतु जीवांश युक्त बलुई दोमट वा दोमट भूमि अच्छी होती है। उचित जल निकास तथा हल्के ढालू खेत अरहर के लिए सर्वोत्तम होते हैं। यह फसल 6.5-7.5 पी एच तक अच्छी उगती है। अरहर की खेती के लिए लवणीय तथा क्षारीय भूमि अनुकूल नहीं होती हैं, अरहर की खेती काली मृदा में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है |
भूमि की तैयारी :-
अरहर की खेती के लिए बुवाई से पूर्व 2-3 बार खेत की अच्छी तरह से देशी हल या कल्टीवेटर से अच्छी तरह से जुताई करे, ताकि मिट्टी भुरभुरि हो जाये फिर इसके बाद पाटा चलाकर बुवाई के लिए खेत तैयार करें।
Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक :-
अरहर की खेती में बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 15-20 टन /एकड़ के हिसाब से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए ताकि उत्पादन में वृद्धि हो। रासायनिक उर्वरक में नाइट्रोजन 6 किलो (13 किलो यूरिया), फासफोरस 16 किलो (100 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट) और पोटाश 12 किलो (20 किलो एम ओ पी) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। ध्यान रहे रासायनिक उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार से ही प्रयोग में लाये।
हानिकारक कीट एवं रोग और उनके रोकथाम
हानिकारक कीट :-
मक्खी और फली का मत्कुण - इन कीटो की रोकथाम के लिए डायमिथोएट 30 ई.सी. या प्रोपेनोफास-50 के 1000 मिली. मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।
छेदक इल्ली और प्लू माथ और ब्लिस्टर बीटल - इन कीटो की रोकथाम के लिए इण्डोक्सीकार्ब 14.5 ई.सी. 500 एम.एल. या क्वीनालफास 25 ई.सी. 1000 एम.एल. या ऐसीफेट 75 डब्लू.पी. 500 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर छिडकाव करें।
हानिकारक रोग :-
पत्तों पर धब्बे - पत्तों के ऊपर हल्के और गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। बहुत ज्यादा बिमारी होने पर यह पेटीओल और तने पर हमला करती है। इसको रोकने के लिए बीज बिमारी मुक्त हो और बीज को थीरम 3 ग्राम या मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति किलो के साथ उपचार करें ।
उकटा रोग - यह फ्यूजेरियम नामक कवक से फैलता है। रोग के लक्षण साधारणतया फसल में फूल लगने की अवस्था पर दिखाई पडते है। सितंबर से जनवरी महिनों के बीच में यह रोग देखा जा सकता है। पौधा पीला होकर सूख जाता है । इसमें जडें सड़ कर गहरे रंग की हो जाती है तथा छाल हटाने पर जड़ से लेकर तने की उचाई तक काले रंग की धारिया पाई जाती है।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए गर्मी के समय खेत की अच्छी गहरी जुताई करना आवश्यक होती है। गर्मी में गहरी जुताई व अरहर के साथ ज्वार की अंतरवर्तीय फसल लेने से इस रोग का संक्रमण कम रहता है। और बीज उपचारित करके बुवाई करें।
बांझपन विषाणु रोग - यह बिमारी इरीओफाईड कीट के साथ होती है। इसके हमले से फूल नहीं बनते और पत्ते हल्के रंग के हो जाते हैं, इसको रोकने के लिए फेनाज़ाकुईन 10 % ई सी 300 मि.ली. प्रति एकड़ 200 लि. पानी में मिला कर छिड़काव करें।
फायटोपथोरा झुलसा रोग - रोग ग्रसित पौधा पीला होकर सूख जाता है। इसमें तने पर जमीन के उपर गठान नुमा असीमित वृद्धि दिखाई देती है व पौधा हवा आदि चलने पर यहीं से टूट जाता है। इसकी रोकथाम हेतु 3 ग्राम मेटेलाक्सील फफूँदनाशक दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण :-
अरहर के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 20-25 दिन में पहली निंदाई तथा फूल आने के पूर्व दूसरी निंदाई करें। खरपतवारनाशक पैंडीमैथालीन 2 ली. प्रति एकड. 150-200 ली. पानी में बुवाई से 2 दिन बाद डालें । खरपतवारनाशक प्रयोग के बाद एक नींदाई लगभग 30 से 40 दिन की अवस्था पर करना लाभदायक होता है। सकरी पत्ती या घास कुल खरपतवार के नियंत्रण लिए क्विजैलोफाप 5 ई.सी. टर्गासुपर 800-1000 मिली बुवाई के 15-20 दिन बाद प्रयोग करें।
सिंचाई :-
जहां सिंचाई की सुविधा हो वहां एक सिंचाई फूल आने पर व दूसरी फलियां बनने की अवस्था पर करने से पैदावार अच्छी होती है।
Harvesting & Storage
कटाई :-
80 प्रतिशत फलियों के पक जाने पर फसल की कटाई गड़ासे या हॅंसिया से 10 से.मी. की उॅंचाई पर करना चाहिए। तत्पश्चात फसल को सूखने के लिए बण्डल बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं। फिर चार से पॉच दिन सुखाने के पश्चात पुलमैन थ्रेशर द्वारा या लकड़ी के लठ्ठे पर पिटाई करके दानो को भूसे से अलग कर लेते हैं।
भण्डारण :-
भण्डारण हेतु नमी का प्रतिशत 10-11 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। भण्डारण में कीटों से सुरक्षा हेतु अल्यूमीनियम फास्फाइड की 2 गोली प्रति टन प्रयोग करे।
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