kisan

Moong (मूंग)

Basic Info

भारत में मूंग ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। इसके दाने का प्रयोग मुख्य रूप से दाल के लिए किया जाता है, जिसमे 24-26% प्रोटीन, 55-60% काब्रोहाइड्रेट एवं 1.3% वसा होता है। दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ो में गठानें पाई जाती है जो की वायुमंडलीय नत्रजन का मृदा में स्थिरीकरण (38-40कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टेयर) एवं फसल की खेत से कटाई उपरांत जड़ो एवं पत्तियों के रूप में प्रति हैक्टेयर 1.5 टन जैविक पदार्थ भूमि में छोड़ा जाता हैं जिससे भूमि में जैविक कार्बन का अनुरक्षण होता है एवं मृदा की उर्वराशक्ति बढ़ाती हैं।

Seed Specification

बीज दर व बीज उपचार :-
खरीफ में कतार विधि से बुआई हेतु मूंग 20 कि.ग्रा./है. पर्याप्त होता है। बसंत अथवा ग्रीष्मकालीन बुआई हेतु 25-30 कि.ग्रा/है. बीज की आवश्यकता पड़ती है। बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम+केप्टान (1+2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।

बुवाई का तरीका :-
वर्षा के मौसम में इन फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु हल के पीछे पंक्तियों अथवा कतारों में बुवाई करना उपयुक्त रहता है। खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 से.मी. तथा बसंत (ग्रीष्म) के लिए 20-22.5 से.मी. रखी जाती है पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से.मी. रखते हुए 4 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।

Land Preparation & Soil Health

मूंग की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :-
मूंग के लिए नम एवं गर्म जलवायु कि आवश्यकता होती है। इसकी खेती वर्षा ऋतू में की जा सकती है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिए 25-32 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल पाया गया है। मूंग के लिए 75-90 से.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त पाए गए है। पकने के समय साफ मौसम तथा 60% आर्द्रता होना चाहिए। पकाव के समय अधिक वर्षा हानिप्रद होती है। 

मुंग की खेती के उपर्युक्त भूमि :-
मुंग की खेती के हेतु दोमट से बलुआ दोमट भूमियां जिनका पी.एच. 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम है। खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिए। 

भूमि की तैयारी :-
खरीफ की फसल हेतु एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए एवं वर्षा प्रारम्भ होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरांत खेत में पाटा चलाकर समतल करें। दीमक से बचाव के लिए क्लोरपायरीफॉस 1.5% चूर्ण 20-25 कि.ग्रा./हैक्टेयर ले मान से  खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए। ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिए रबी फसलों के कटने के तुरंत बाद खेत की तुरंत जुताई कर 4-5 दिन छोड़कर पलेवा करना चाहिए। पलेवा के बाद 2-3 जुताईयां देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बनावें। इससे उसमें नमी संरक्षित हो जाती है व बीजों से अच्छा अंकुरण मिलता है।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं उर्वरक :-
मुंग की खेती में अच्छे उत्पादन के लिए बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 15 - 20 टन / एकड़ की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए। रासायनिक खाद एवं उर्वरक की मात्रा किलोग्राम /हे. होनी चाहिए, नाइट्रोजन 20,फास्फोरस 20,पोटाश 20, गंधक 20, जिंक 20,
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश उर्वरकों की पूरी मात्रा बुवाई के समय 5-10 से.मी. गहरी कूड़ में आधार खाद के रूप में दें।
 
हानिकारक कीट एवं रोग और उनका रोकथाम
कीट नियंत्रण :-
मूंग की फसल में प्रमुख रूप से फली भ्रंग, हरा फुदका, माहू तथा कम्बल कीट का प्रकोप होता है। पत्ती भक्षक कीटों के नियंत्रण हेतु क्विनालफास की 1.5 लीटर या मोनोक्रोटोफॉस की 750 मि.ली. तथा हरा फुदका, माहू एवं सफेद मक्खी जैसे-रस सूचक कीटों के लिए डायमिथोएट 1000 मि.ली. प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. प्रति 600 लीटर पानी में 125 मि.ली. दवा के हिसाब से प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना लाभप्रद रहता है।

रोग नियंत्रण :-
मूंग में अधिकतर पीत रोग, पर्णदाग तथा भभूतिया रोग प्रमुखतया आते हैं। इन रोगों की रोकथाम हेतु रोग निरोधक किस्में हम-1, पंत मूंग-1, पंत मूंग-2, टी.जे.एम-3, जे.एम.-721 आदि का उपयोग करना चाहिये। पीत रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है इसके नियंत्रण हेतु मेटासिस्टॉक्स 25 ईसी 750 से 1000 मि.ली. का 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टर छिड़काव 2 बार 15 दिन के अंतराल पर करें। फफूंद जनित पर्णदाग (अल्टरनेरिया/ सरकोस्पोरा/ माइरोथीसियस) रोगों के नियंत्रण हेतु डायइथेन एम. 45, 2.5 ग्रा/लीटर या कार्बेन्डाजिम,डायइथेन एम. 45 की मिश्रित दवा बना कर 2.0 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर वर्षा के दिनों को छोड़कर खुले मौसम में छिड़काव करें। आवश्यकतानुरूप छिड़काव 12-15 दिनों बाद पुनः करें।

मूंग के प्रमुख रोग एवं नियंत्रण :-
पीला चितकबरी (मोजेक) रोग- रोग प्रतिरोधी अथवा सहनशील किस्मों जैसे टी.जे.एम.-3, के-851, पन्त मूंग -2, पूसा विशाल, एच.यू.एम. -1 का चयन करें। प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें। बीज की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कतारों में करें प्रारम्भिक अवस्था में रोग ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट करें। यह रोग विषाणु जनित है जिसका वाहक सफेद मक्खी कीट है जिसे नियंत्रित करने के लिये ट्रायजोफॉस 40 ईसी, 2 मिली प्रति लीटर अथवा थायोमेथोक्साम 25 डब्लू जी. 2 ग्राम/ली. या डायमेथाएट 30 ई.सी., 1 मिली./ली. पानी में घोल बनाकर 2 या 3 बार 10 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
सर्कोस्पोरा पर्ण दाग - रोग रहित स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें। खेत में पौधे घने नही होने चाहिए। पौधों का 10 सेमी. की दूरी के हिसाब से विरलीकरण करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब 75 डब्लू. पी. की 2.5 ग्राम लीटर या कार्बेन्डाइजिम 50 डब्लू. पी. की 1 ग्राम/ली. दवा का घोल बनाकर 2-3 बार छिड़काव करें।
एन्ट्राक्नोज - प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजों का चयन करें। फफूंदनाशक दवा जैसे मेन्कोजेब 75 डब्लू. पी. 2.5 ग्राम/ली. या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू डी. की 1 ग्राम/ली. का छिड़काव बुवाई के 40 एवं 55 दिन पश्चात् करें।
चारकोल विगलन - बीजापचार कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूजी. 1 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से करें। 2-3 वर्ष का फसल चक्र अपनाएं तथा फसल चक्र में ज्वार, बाजरा फसलों को सम्मिलित करें।
भभूतिया (पावडरी मिल्ड्यू) रोग -रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। समय से बुवाई करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर कैराथन या सल्फर पाउडर 2.5 ग्राम/ली. पानी की दर से छिड़काव करे।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण :-
मूंग की फसल में नींदा नियंत्रण सही समय पर नहीं करने से फसल की उपज में 40-60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है।  खरीफ मौसम में फसलों में सकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसेः सवा (इकाईनाक्लोक्लोवा कोलाकनम/कु सगेली), दूब घास (साइनोडॉन डेक्टाइलोन) एवं चौड़ी पत्ती वाले पत्थर चटा (ट्रायन्थिमा मोनोगायना), कनकवा (कोमेलिना वेघालेंसिस), महकुआ (एजीरेटम कोनिज्वाडिस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अर्जेंसिया), हजारदाना (फाइलेन्थस निरुरी) एवं लहसुआ (डाइजेरा आरसिस) तथा मोथा (साइप्रस रोटन्डस, साइप्रस इरिया) आदि वर्ग के खरपतवार बहुतायत निकलते हैं। फसल व खरपतवार की प्रतिस्पर्धा की क्रान्तिक अवस्था मूंग में प्रथम 30 से 35 दिनों तक रहती है। इसलिए प्रथम निंदाई-गुड़ाई 15-20 दिनों पर तथा द्वितीय 35-40 दिन पर करना चाहिए। खरपतवार नाशक पेंडीमिथिलीन 700 ग्राम/हैक्टेयर बुवाई के 0-3 दिन तक, क्युजालोफाप 40-50 ग्राम बुवाई के 15-20 दिन बाद छिड़काव कर सकते है।

सिंचाई एवं जल निकास :-
प्रायः वर्षा ऋतु में मूंग की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है फिर भी इस मौसम में एक वर्षा के बाद दूसरी वर्षा होने के बीच लंबा अन्तराल होने पर अथवा नमी की कमी होने पर फलियां बनते समय एक हल्की सिंचाई आवश्यक होती है। बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए। वर्षा के मौसम में अधिक वर्षा होने पर अथवा खेत में पानी का भराव होने पर फालतू पानी को खेत से निकालते रहना चाहिए जिससे मृदा में वायु संचार बना रहता है।

Harvesting & Storage

कटाई :-
मूंग की फलियों जब काली पड़ने लगे तथा सुख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। अधिक सूखने पर फलियों चिटकने का डर रहता है। फलियों से बीज को थ्रेसर द्वारा या डंडे द्वारा अलग कर लिए जाता है।

भण्डारण :-
कटाई और गहाई करने के बाद दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाने के उपरान्त ही जब उसमें नमी की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत रहे तभी वह भण्डारण के योग्य रहती है| भण्डारण के सूत के बोरे का उपयोग करे और नमी रहित स्थान पर रखें।


Crop Related Disease

Description:
Cercospora leaf spot कवक cercospora canescens के कारण होता है। यह एक बीज जनित कवक है जो 2 साल से अधिक समय तक मिट्टी में पौधे के मलबे पर जीवित रह सकता है। ऊंचा दिन और रात का तापमान, नम मिट्टी, उच्च वायु आर्द्रता, या भारी तूफान बारिश फंगस के प्रसार का समर्थन करता है।
Organic Solution:
बीजों के गर्म पानी के उपचार को अपनाया जा सकता है। नीम के तेल के अर्क के आवेदन भी प्रभावी हैं।
Chemical Solution:
10 दिनों के अंतराल पर दो बार mancozeb, chlorothalonil @ 1 g / L, या thiophanate मिथाइल @ 1 mL युक्त फफूंदनाशकों का उपयोग करें।
Description:
वायरस अक्सर बीज जनित होता है, जिससे रोपाई में एक प्राथमिक संक्रमण होता है। पौधे से पौधे तक द्वितीयक संक्रमण कीट वैक्टर के माध्यम से होता है जो पौधे के रस पर फ़ीड करते हैं। वायरस संक्रमण के समय के आधार पर अनाज की उपज को 35 से 81% तक कम कर सकता है।
Organic Solution:
ताजा छाछ और कैसिइन का रोग के संचरण पर प्रभाव पड़ता है। Mirabilis jalapa, catharanthus roseus, Datura metel, Bougainvillea spectabilis, Boerhaavia diffusa, और Azadirachta indica के कई पौधों के अर्क का क्षेत्र में वायरस की घटनाओं पर प्रभाव पड़ा।
Chemical Solution:
आमतौर पर इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस @ 5 एमएल / किग्रा के साथ बीज ड्रेसिंग की सिफारिश की जाती है। यौगिक 2,4-dixohexahydro-1,3,5-triazine (DHT) वायरस के संचरण में बाधा डालता है और इसकी ऊष्मायन अवधि को बढ़ाता है।
Description:
थ्रिप्स 1-2 mm लंबे, पीले, काले या दोनों रंग के होते हैं जो पौधों के ऊतकों पर फ़ीड करते हैं। वे पौधे के अवशेषों या मिट्टी में या वैकल्पिक मेजबान पौधों पर हाइबरनेट करते हैं। शुष्क और गर्म मौसम की स्थिति जनसंख्या वृद्धि का पक्ष लेती है, जबकि आर्द्रता इसे कम करती है।
Organic Solution:
कीटनाशक स्पिनोसेड आम तौर पर सबसे प्रभावी होता है, लेकिन विषाक्त हो सकता है, इसलिए, उन पौधों पर स्पिनोसेड लागू न करें जो फूल रहे हैं। नीम के तेल और प्राकृतिक पाइरेथ्रिन का भी उपयोग किया जा सकता है।
Chemical Solution:
प्रभावी कीटनाशकों में फिप्रोनिल, इमिडाक्लोप्रिड या एसिटामिप्रिड शामिल हैं, जो उनके प्रभाव को बढ़ाने के लिए पिपरोनियल बोटोक्साइड के साथ जोड़ा जा सकता है।
Description:
मूंग में जंग लगने का कारण फफूंद यूरोमेस फेजोली है, जो मिट्टी में या वैकल्पिक मेजबानों पर फसल के मलबे में जीवित रह सकता है। रात के समय भारी ओस के साथ संयुक्त गर्म तापमान, आर्द्र और बादल का मौसम संक्रमण फैलने का पक्षधर है।
Organic Solution:
फफूंदी वृद्धि के खिलाफ एक सुरक्षात्मक उपाय के रूप में साल्विया ऑफिसिनैलिस और पोटेंन्टिला इरेक्टा के पौधे के अर्क का अच्छा प्रभाव है।
Chemical Solution:
मैन्कोज़ेब, प्रोपीकोनाज़ोल, कॉपर, या सल्फर यौगिकों वाले कवकनाशी का उपयोग पर्ण स्प्रे आवेदन (आमतौर पर 3 ग्राम / एमएल पानी) के रूप में किया जा सकता है।

Moong (मूंग) Crop Types

You may also like

No video Found!

Frequently Asked Questions

Q1: क्या मूंग खरीफ की फसल है?

Ans:

चावल, मक्का, उड़द, मूंग दाल और बाजरा जैसी दालें खरीफ की प्रमुख फसलों में से हैं। जो उत्तर पश्चिमी मानसून के मौसम में बोए जाते हैं, जो अक्टूबर से शुरू होते हैं, उन्हें रबी या सर्दियों की फसल कहा जाता है। इन फसलों को सर्दियों की शुरुआत में बोया जाता है जो पूर्वोत्तर मानसून के साथ मेल खाता है।

Q3: किस मिट्टी में मूंग दाल उगती है?

Ans:

मूंग की दाल दोमट और लाल लेटराइट मिट्टी में विकसित होती है। उड़द की दाल आमतौर पर पृथ्वी की रेत में विकसित होती है। मसूर की दाल रेतीली मिट्टी वाले क्षेत्र में एक नियम के रूप में खोजी गई।

Q5: क्या मुंग दाल सेहत के लिए अच्छी होती है?

Ans:

मूंग की फलियाँ पोषक तत्वों और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती हैं, जो स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकती हैं। वास्तव में, वे हीट स्ट्रोक से रक्षा कर सकते हैं, पाचन स्वास्थ्य में सहायता कर सकते हैं, वजन घटाने को बढ़ावा दे सकते हैं और "खराब" एलडीएल कोलेस्ट्रॉल, रक्तचाप और रक्त शर्करा के स्तर को कम कर सकते हैं।

Q2: मूंग भारत में कहां उगा है?

Ans:

मूंग की दाल भारत के विभिन्न हिस्सों जैसे आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, यू.पी.।

Q4: हरे चने को उगने में कितना समय लगता है?

Ans:

हरे चने बुवाई के 60-90 दिनों के भीतर परिपक्व हो जाते हैं, जो पर्यावरणीय कारकों के साथ-साथ किस्म पर निर्भर करते हैं। कटाई तब की जानी चाहिए जब अधिकांश फली काली हो गई हो।

Q6: गर्मी में मूंग की खेती के लिए अनुकूल समय कौन सा हैं?

Ans:

ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिए अनुकूल समय मार्च से अप्रैल तक है। खरीफ की बुवाई के लिए पंक्ति में 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी का प्रयोग करें। रबी की बिजाई के लिए पंक्ति में 22.5 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 7 सेमी रखें। बीज को 4-6 सें.मी. की गहराई पर बोयें।