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Sorghum (ज्वार)

Basic Info

भारत में बाजरा के बाद ज्वार मोटे अनाज वाली दूसरी महत्वपूर्ण फसल है जिसका धान्य फसलों में चॉवल, गेहूं, मक्का और बाजरा के बाद पांचवा स्थान है। उच्च तापमान तथा सूखा सहनशीलता के कारण यह फसल अधिक तापमान और बारानी क्षेत्रों की कम उर्वरता वाली मिटटी में आसानी से उगायी जा रही है गहरे जड तंत्र के कारण ज्वार मिटटी की निचली परतों से जल का अवशोषण कर लेता है, इस क्षमता के कारण इसको कम वर्षा वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है ज्वार की फसल मुख्यत: महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में उगायी जाती है।

Seed Specification

फसल किस्म
चारा उत्पादन हेतु भारत में ज्यादातर किसान ज्वार की स्थानीय किस्में लगाते है जो कम उत्पादन देने के साथ-साथ कीट एवं रोगों से प्रभावित होती है।
संकर किस्में - महाराष्ट्र - सी एस एच 14, सी एस एच 9, सी एस एच 16, सी एस एच 18, सी एस वी 13, सी एस वी 15, एस पी वी 699, कर्नाटक - सी एस एच 14, सी एस एच 17, सी एस एच 16, सी एस एच 13, सी एस एच 18।
संकुल किस्में: वी 13, सी एस वी 15, जी जे 35, जी जे 38, जी जे 40, जी जे 39, जी जे 41।
   
बीज की मात्रा
बुवाई के समय ज्वार के बीज की मात्रा 15-20 किलो प्रति हेक्टेयर। और गर्मी में चारा प्राप्त करे करने के लिए मार्च महीने में बुवाई की जाती है। बहुकटाई के लिए बीज की मात्रा 30 -40 किलो प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए।

बुवाई का समय
उत्तरी भारत में ज्वार की बुआई का उचित समय जुलाई का प्रथम सप्ताह है। जून के आखिरी सप्ताह से पहले बुआई करना उचित नहीं है, क्योंकि ज्वार की अगेती फसल में फूल बनते समय अधिक वर्षा की सम्भावना रहती है। देश के दक्षिणी राज्यों जैसेः महाराष्ट्रा, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु जहां ज्वार रबी के मौसम में उगाई जाती है, बुआई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर के मध्य करना अच्छा रहता है। 

बीज उपचार / नर्सरी
फसल को मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बीज को 300 मैश 4 ग्राम सल्फर चूरा और एजोटोबैक्टर 25 ग्राम प्रति किलो से बीज को बिजाई से पहले उपचार करें।

Land Preparation & Soil Health

भूमि
ज्वार की खेती के लिए दोमट व बलुई मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। उचित जल निकास वाली भारी मृदा में इसकी बुवाई की जा सकती है। भूमि का पी.एच. मान 6.5 से 7 उपयुक्त रहता है।

अनुकूल जलवायु
ज्वार गर्म जलवायु की फसल है, ज्वार की खेती समुद्रतल से लगभग 1500 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। ज्वार के अंकुरण के लिए न्यूनतम तापमान 9 से 10 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त होता है। पौधों की बढ़वार के लिए सर्वोत्तम औसत तापमान 26 से 30 डिग्री सेल्सियस पाया गया है। फसल में भुट्टे निकलते समय 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान फसल के लिए हानिकारक होता है।

जमीन की तैयारी
दो-तीन बार देशी हल या कल्टीवेटर से खेत की अच्छी तरह जुताई करके पाटा चला दें। जुताई के बाद खेत में गोबर की सड़ी खाद 100 क्विं./हें. की दर से खेत में डालकर अच्छी तरह मिला दें। जल निकासी का पूरा प्रबंध होना चाहिए।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
फसल के पौधों की उचित बढ़वार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। अत: बुवाई से पूर्व भूमि को तैयार करते समय ज्वार की फसल के लिए 10-15  टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त रासायनिक उर्वरक में 40 किलोग्राम फास्फोरस पूर्ण मात्रा और 80 किलोग्राम नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद छिड़क कर प्रयोग करे। काम वर्षा वाले स्थानों पर रासायनिक उर्वरको का आधी मात्रा का प्रयोग करें।

हानिकारक कीट एवं रोग और उनके रोकथाम
ज्वार की फसल में तना मक्खी और तना छेदक का प्रकोप होता है। इसकी रोकथाम के लिए  बुवाई के समय बीज के साथ 15 किलो प्रति हेक्टेयर फोरेट 10 प्रतिशत या कार्बोफ्यूरान 3 जी. दानो को डालना चाहिए। फफूंद से होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए मेंकोजेब 0.2  प्रतिशत का घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
25-30 दिनों की अवस्था पर वीडर कम कल्चर से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। एट्रोजीन (0.5-0.75 कि.ग्रा./हैक्टर 600 लीटर पानी) का जमाव से पूर्व छिड़काव फसल के लिए प्रभावी होता है। 

सिंचाई
ज्वार की फसल सामान्य तौर पर वर्षा पर आधारित फसल हैं। ज्वार के पौधों की उचित बढ़वार के लिए नमी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। सिंचित क्षेत्रो के लिए जब वर्षा द्वारा पर्याप्त नमी न प्राप्त हो तो समय समय पर सिंचाई करनी चाहिए। ज्वार की फसल के लिए 3-4 सिंचाई पर्याप्त होती है। ध्यान रहे दाना बनते समय खेत में नमी रहनी चाहिए। इससे दाने का विकास अच्छा होते है एवं दाने व चारे की उपज में बढ़ोतरी होती हैं। ज्वार की फसल के लिए सिंचाई देने की चार क्रान्तिक अवस्थाएँ होती हैं जो इस प्रकार हैं- प्रारम्भिक बीज पौध की अवस्था, भुट्टे निकलने से पहले की अवस्था, भुट्टे निकलते समय और भुट्टों में दाना बनने की अवस्था, उपरोक्त अवस्थाओं में पानी का अभाव होने पर ज्वार की पैदावार पर प्रतिकूल पभाव पड़ता है।

Harvesting & Storage

कटाई समय
फूल निकलने के 35-40 दिनों के बाद बाल के पकने पर इसकी कटाई करें। भुट्टों को 2 से 3 दिनों तक धूप में अच्छी तरह सुखाकर इसके दाना को भुट्टों से छुड़ाकर अलग कर ले।

कटाई के पश्चात् ज्वार के भुट्टों को खलिहान में कम से कम एक सप्ताह तक सूखने देना चाहिए भुट्टों की मड़ाई डण्डों से पीटकर, बैलों द्वारा दांय चलाकर या श्रेशर द्वारा कर लेते हैं मड़ाई के तुरंत बाद ओसाई करके दानों को भूसे से अलग कर लिया जाता है

उत्पादन
ज्वार की खेती यदि उपरोक्त उन्नत समस्त विधियां अपनाकर की जाए तो संकर ज्वार से सिंचित दशा में औसतन 35 से 45 क्विंटल दाना और 100 से 120 क्विंटल कड़वी एवं असिंचित (बारानी) क्षेत्रों में 20 से 30 क्विंटल दाने तथा 70 से 80 क्विंटल कड़वी प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है।


Crop Related Disease

Description:
अंकुरित पौधे इस बीमारी से संक्रमित होते हैं रोग बीजों के माध्यम से बढ़ता होता है ।
Organic Solution:
बीज को वीटावैक्स से उपचारित करें | कपड़े की थैलियों में घुलित कानों को इकट्ठा करें और इनोकुलम को निकालने के लिए इसे उबलते पानी में डुबोएं|
Chemical Solution:
रोग के प्रकोप को दबाने के लिए बीजों के कार्बोक्सिन (2 ग्रा/1 किग्रा. बीजों के लिए) के द्वारा उपचार की सलाह दी जाती है। प्रोपिकोनाजोल, मानेब या मांकोजेब का पत्तियों पर छिड़काव करने से भी संक्रमण कम होता है ।
Description:
लाल सड़न एक बहुत ही गंभीर बीमारी है । लाल सड़न मुख्य रूप से परिपक्व पौधे की एक बीमारी है गीला मौसम लाल सड़न रोग का पक्षधर है।
Organic Solution:
बीजों पर उपस्थित रोगजनक को समाप्त करने के लिए और लाल सड़न की संभावना को कम करने के लिए गर्म पानी के स्नान (जैसे, 50 डिग्री सेल्सियस पर 2 घंटों के लिए) का उपयोग किया जा सकता है। बीजों का उपचार करने के लिए चेटोमियम और ट्राइकोडर्मा वंश की फफूंद की कुछ प्रजातियां और स्यूडोमोनास जीवाणु की कुछ प्रजातियों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
Chemical Solution:
बीजों को 50-54 डिग्री सेल्सियस पर 2 घंटों के लिए कवकनाशक (जैसे, थिरैम) और गर्म पानी में डुबोकर रोगजनक को नष्ट करें। 1 किलो प्रति हेक्टेयर मैंकोज़ेब के साथ छिड़काव करें।
Description:
गर्म और गीले मौसम जैसी अनुकूल परिस्थितियां होने पर, ये महामारी उत्पन्न हो जाती है ।
Organic Solution:
इस रोगजनक के विरुद्ध कोई भी जैविक नियंत्रण उपाय उपलब्ध नहीं हैं।
Chemical Solution:
इस बीमारी के लिए प्रोक्लोराज़, इप्रोडायोनी, थियाबेंडाज़ोल और ट्राईज़ोल फंगिसाइड का इस्तेमाल किया जा सकता है।
Description:
यह पौधों के बीच सिंचाई, पानी, हवा, या दूषित कर्मचारियों एवं उपकरण के द्वारा फैलता है। इस रोग की गंभीरता गीले-नमीदार मौसम के दौरान सबसे अधिक होती है।
Organic Solution:
रासायनिक उपचार तांबे और तांबे के संयुक्त उत्पादों तक सीमित है ।
Chemical Solution:
रासायनिक उपचार तांबे और तांबे के संयुक्त उत्पादों तक सीमित है ।

Sorghum (ज्वार) Crop Types

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Frequently Asked Questions

Q1: भारत में सोरघम किसे कहा जाता है?

Ans:

सोरघम, (सोरघम बाइकलर), जिसे महान बाजरा, भारतीय बाजरा, मिलो, दुर्रा, ओरशेलु, ग्रास परिवार का अनाज अनाज का पौधा (पोएसी) और इसके खाद्य स्टार्च बीज कहा जाता है। भारत में सोरघम को पश्चिम अफ्रीका में ज्वार, चोलम या जोना के रूप में जाना जाता है, गिनी मकई के रूप में, और चीन में काओलियांग के रूप में।

Q3: सोरघम की बीज दर क्या है?

Ans:

सोरघम या ज्वार की खेती में बीज दर और बुवाई प्रति हेक्टेयर 35-40 किलोग्राम बीज की दर पर्याप्त है और बुवाई 25 पंक्ति की @ पंक्ति-दर-पंक्ति दूरी से की जानी चाहिए।

Q5: ज्वार कौन सी फसल होती है?

Ans:

ज्वार एक प्रमुख फसल है। ज्वार कम वर्षा वाले क्षेत्र में अनाज तथा चारा दोनों के लिए बोई जाती हैं। ज्वार जानवरों का महत्वपूर्ण एवं पौष्टिक चारा हैं। भारत में यह फसल लगभग सवा चार करोड़ एकड़ भूमि में बोई जाती है।

Q2: सोरघम को परिपक्व होने में कितना समय लगता है?

Ans:

आम तौर पर यह 15 से 20 दिनों के बाद मकई लगाने के बाद या 15 मई से जून के बीच शुरू होता है। जून की शुरुआत के बाद रोपण के रूप में अनाज की पैदावार कम हो जाती है। अधिकांश संकरों को परिपक्वता तक पहुंचने के लिए 90-120 दिनों की आवश्यकता होती है, इसलिए आपातकालीन फसल के रूप में देर से रोपण की सिफारिश नहीं की जाती है।

Q4: भारत में ज्वार का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?

Ans:

भारत में तमिलनाडु ज्वार का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।