Basic Info
सोयाबीन-[वैज्ञानिक नाम="ग्लाईसीन मैक्स"] सोयाबीन फसल (Soybean Crop) है। सोयाबीन भारतवर्ष में महत्वपूर्ण फसल है। यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है। सोयाबीन का उत्पादन 1985 से लगातार बढ़ता जा रहा है और सोयाबीन के तेल की खपत मूँगफली एवं सरसों के तेल के पश्चात सबसे अधिक होने लगा है। सोयाबीन एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है। इसके मुख्य घटक प्रोटीन, कार्बोहाइडेंट और वसा होते है। सोयाबीन में 38-40 प्रतिशत प्रोटीन, 22 प्रतिशत तेल, 21 प्रतिशत कार्बोहाइडेंट, 12 प्रतिशत नमी तथा 5 प्रतिशत भस्म होती है। विश्व का 60% सोयाबीन अमेरिका में पैदा होता है। भारत मे सबसे अधिक सोयाबीन का उत्पादन मध्यप्रदेश करता है। मध्यप्रदेश में इंदौर में सोयाबीन रिसर्च सेंटर है।
Seed Specification
उपयुक्त किस्मों का चयन :- राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र एवं विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा अलग क्षेत्रों के लिए वहाँ की कृषि जलवायु एवं मिट्टी के लिए अलग किस्मों का विकास किया गया है एवं किस्में समर्थित की गई हैं। उसी के अनुसार सोयाबीन किस्में बोई जानी चाहिए। इन किस्मों का थोड़ा बीज लाकर अपने यहाँ ही इसे बढ़ाकर उपयोग में लाया जा सकता है।
बुवाई का समय :-
जून के अन्तिम सप्ताह में जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय सबसे उपयुक्त है, बोने के समय अच्छे अंकुरण हेतु भूमि में 10 सेमी गहराई तक उपयुक्त नमी होना चाहिए। जुलाई के प्रथम सप्ताह के पश्चात बोनी की बीज दर 5-10 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए।
बीज की मात्रा :-
छोटे दाने वाली किस्में – 70 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर
मध्यम दाने वाली किस्में – 80 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर
बडे़ दाने वाली किस्में – 100 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर।
बीज उपचार :-
बुवाई से पहले सोयाबीन के बीजो को उपचारित करे। कार्बेन्डीजिम या थिरम 2 ग्राम / किग्रा बीज का 24hrs बीज के साथ उपचार करें या ट्राइकोडर्मा के टैल्क सूत्रीकरण के साथ 4 ग्राम / किग्रा बीज (या) स्यूडोमोनस फ्लोरेसेंस 10 ग्राम / किग्रा बीज का प्रयोग करें।
Land Preparation & Soil Health
मिट्टी परिक्षण :-
संतुलित उर्वरक व मृदा स्वास्थ्य हेतु मिट्टी में मुख्य तत्व- नत्रजन, फॉस्फोरस, पोटाश, द्वितीयक पोषक तत्व जैसे सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता, तांबा, लोहा, मैंगनीज, मोलिब्डेनम, बोरॉन साथ ही पी.एच., ई.सी. एवं कार्बनिक द्रव्य का परीक्षण करायें।
भूमि :-
सोयाबीन की खेती अधिक हल्की रेतीली व हल्की भूमि को छोड्कर सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है, परन्तु पानी के निकास वाली चिकनी दोमट भूमि सोयाबीन के लिए अधिक उपयुक्त होती है। जहां भी खेत में पानी रूकता हो वहां सोयाबीन ना लें।
जलवायु :-
सोयाबीन फसल के लिए शुष्क गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है, इसके बीजों का जमाव 25 डिग्री सेल्सियस पर 4 दिन में हो जाता है, जबकि इससे कम तापमान होने पर बीजों के जमाव में 8 से 10 दिन लगता है । अत: सोयाबीन खेती के लिए 60-65 सेमी. वर्षा वाले स्थान उपयुक्त माने गये हैं।
खेत की जुताई :-
वर्षा प्रारम्भ होने पर 2 या 3 बार बखर तथा पाटा चलाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिए। इससे हानि पहुंचाने वाले कीटों की सभी अवस्थाएं नष्ट होगीं। जहां तक संभव हो आखरी बखरनी एवं पाटा समय से करें जिससे अंकुरित खरपतवार नष्ट हो सके।
Crop Spray & fertilizer Specification
उर्वरक :-
सोयाबीन की बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद (कम्पोस्ट) 5 टन प्रति हेक्टेयर अंतिम बखरनी के समय खेत में अच्छी तरह मिला देवें तथा बोते समय 20 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस, 20 किलो पोटाश एवं 20 किलो सल्फर प्रति हेक्टेयर देवें। यह मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर घटाई बढ़ाई जा सकती है। गहरी काली मिट्टी में जिंक सल्फेट 50 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर एवं उथली मिट्टी में 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 5 से 6 फसलें लेने के बाद उपयोग करना चाहिए।
हानिकारक कीट और रोकथाम :-
सफेद मक्खी - सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए, थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफोस 300 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
तंबाकू सुंडी - यदि इस कीट का हमला दिखाई दे तो एसीफेट 57 एस पी 800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी को 1.5 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
बालों वाली सुंडी - बालों वाली सुंडी का हमला कम होने पर इसे हाथों से उठाकर या केरोसीन में डालकर खत्म कर दें । इसका हमला ज्यादा हो तो, क्विनलफॉस 300 मि.ली. या डाइक्लोरवास 200 मि.ली की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
पीला चितकबरा रोग - यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है। इससे अनियमित पीले, हरे धब्बे पत्तों पर नज़र आते हैं। प्रभावित पौधों पर फलियां विकसित नहीं होती। इसकी रोकथाम के लिए पीला चितकबरा रोग की प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें। सफेद मक्खी को रोकथाम के लिए, थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफोस 400 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
फफूंद नियंत्रण :-
सोयाबीन के पत्तों पर कई तरह के धब्बे वाले फफूंद जनित रोगों के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 50 डबलू पी या थायोफेनेट मिथाइल 70 डब्लू पी 0.05 से 0.1 प्रतिशत से 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए। पहला छिड़काव 30-35 दिन की अवस्था पर तथा दूसरा छिड़काव 40–45 दिन की अवस्था पर करना चाहिए।
बैक्टीरियल पश्चयूल नामक रोग को नियंत्रित - स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या कासूगामाइसिन की 200 पी.पी.एम. 200 मि.ग्रा; दवा प्रति लीटर पानी के घोल और कापर आक्सीक्लोराइड 0.2 (2 ग्राम प्रति लीटर) पानी के घोल के मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए।
विषाणु जनित पीला मोजेक वायरस रोग व वड व्लाइट रोग प्राय: - एफिड, सफेद मक्खी, थ्रिप्स आदि द्वारा फैलते हैं अत: केवल रोग रहित स्वस्थ बीज का उपयोग करना चाहिए। एवं रोग फैलाने वाले कीड़ों के लिए थायोमेथेक्जोन 70 डब्लू एव. से 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम की दर से उपचारित कर एवं 30 दिनों के अंतराल पर दोहराते रहें। रोगी पौधों को खेत से निकाल देवें। इथोफेनप्राक्स 10 ई.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर थायोमिथेजेम 25 डब्लू जी, 1000 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण :-
फसल के प्रारम्भिक 30 से 40 दिनों तक खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्यक होता है। बतर आने पर डोरा या कुल्फा चलाकर खरपतवार नियंत्रण करें व दूसरी निंदाई अंकुरण होने के 30 और 45 दिन बाद करें। 15 से 20 दिन की खड़ी फसल में घांस कुल के खरपतवारो को नष्ट करने के लिए क्यूजेलेफोप इथाइल एक लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा घांस कुल और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए इमेजेथाफायर 750 मिली. लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव की अनुशंसा है।
सिंचाई :-
खरीफ मौसम की फसल होने के कारण सामान्यत: सोयाबीन को सिंचाई की आवश्यकता नही होती है। फलियों में दाना भरते समय अर्थात सितंबर माह में यदि खेत में नमी पर्याप्त न हो तो आवश्यकतानुसार एक या दो हल्की सिंचाई करना सोयाबीन के विपुल उत्पादन लेने हेतु लाभदायक है। वर्षा ना होने पर उपयुक्त सिंचाई नमी के अनुसार सही समय पर की जा सकती है।
Harvesting & Storage
फसल की कटाई :-
जब सोयाबीन की फलियां सूख जाएं और पत्तों का रंग बदल कर पीला हो जाए और पत्ते गिर जाएं, तब फसल कटाई के लिए तैयार होती है। कटाई हाथों से या दराती से करें। कटाई के बाद फसल को 2-3 दिन तक धुप में अच्छी तरह से सूखा लेना चाहिए। सुखाने के बाद पौधों में से बीजों को निकालने के लिए थ्रेसर, ट्रेक्टर, बेलों तथा अन्य कृषि साधनों का प्रयोग करना चाहिए।
बीज भंडारण :-
सोयाबीन के बीजो अच्छी तरह धुप में सुखाने के बाद, बीजों को अच्छी तरह साफ करें। छोटे आकार के बीजों, प्रभावित बीजों और डंठलों को निकाल दें। बीज के भंडारण हेतु सुखी जगह का चयन करे और नमी से दूर रखे।